संपादकीय: यौन हिंसा मामलों पर समाज की संवेदनहीनता एक गम्भीर मुद्दा

यौन हिंसा मामलों पर समाज की संवेदनहीनता एक गम्भीर मुद्दा

 

– अपराधों और अपराधियों को किया जा रहा धर्म विशेष के चश्में से देखने का प्रयास….
– डॉ० रेड्डी के साथ घटित घटना सम्पूर्ण समाज के माथे पर कलंक….

वरिष्ठ पत्रकार- सलीम रज़ा….
देहरादून। हमारे देश में महिलाओं के यौन उत्पीड़न केस में हो रही उतरोत्तर वृद्धि इस बात को सोचने और समझने के लिए काफी नहीं है कि, महिला यौन उत्पीड़न मामले में समाज का संवेदनहीन होना चिन्ता का विषय हैं। दरअसल इंसान की सोंच जितनी व्यापक हुई है, उसकी मानसिकता उतनी ही तंग हो गई है। आज अपराधों और अपराधियों को भी धर्म विशेष के चश्में से देखने का प्रयास किया जा रहा है, जो बिल्कुल गलत है। जिस महिला के साथ हिंसक वारदात हुई वो किस धर्म की हैे ये मायने नहीं रखता, मायने ये रखता है कि, वो एक महिला है। वहीं अपराध करने वाले अपराधी का भी कोई धर्म नहीं होता वो सिर्फ और सिर्फ अपराधी है। लेकिन जब भी अपराधों को धर्म से जोडकर देखा जायेगा तो अपराध को रोकना दुश्कर होगा। कम से कम ऐसे संगीन मामलों में सर्व समाज को एकजुट होकर आगे आना चाहिए। कुछ दिन पहले हैदराबाद की पशु चिकित्सक डॉ० प्रियंका रेड्डी के साथ जो दिल दहला देने वाली घटना घटित हुई वो सम्पूर्ण समाज के माथे पर कलंक है। इसमें समाज को एकजुट होकर विरोध प्रकट करना चाहिए न कि समाज को बंटकर अपनी जुदा-जुदा राय देना चाहिए।

 

आपको याद होगा कि, जिस दिन हैदराबाद में हृदय विदारक घटना हुई उसी के बाद एक महिला का अधजला शव मिला तो उसी दिन झारखण्ड में एक ला की छात्रा का अपहरण करके एक दर्जन लोगों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया था। लेकिन सोशल मीडिया ने प्रियंका केस को हवा दी क्योंकि उस कांड में एक अपराधी धर्म विशेष से ताल्लुक रखता था। लेकिन झारखण्ड में महिला का शील भंग करने वाले एक धर्म विशेष से ताल्लुक नहीं रखते थे ऐसा क्यों और किसलिए? आज हमारे देश में अपराधियों, बलात्कारियों के इस वहशियाने कृत्य से ज्यादा बहस उनके धर्म को लेकर की जा रही है, क्या समाज को अपनी सोच में बदलाव नहीं लाना चाहिए? कि ये वक्त वहशी दरिंदों के धर्म को तलाशने का नहीं है, बल्कि तलाशना ये है कि, समाज में ये दहशत क्यों और किस वजह से पल रही है? मेरी ये बात कड़वी तो जरूर है, लेकिन बिल्कुल सत्य है। हमें इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि, अगर आप धर्म को तलाशने में लग जायेंगे तो जाहिर सी बात है आप एक संदेश को प्रचारित कर रहे है, जो ये तय कर देती है कि, दरिंदगी के खिलाफ अपनी आवाज उठाने में समाज टुकड़ों में बंटकर इस वीभत्स हादसे पर बोले या न बोले। ऐसे हालात में ध्यान रखिये की आप अपराधियों को कहीं शह देने का काम तो नहीं कर रहे हैं। समाज की जबावदेही बनती है कि, वो अपराधी का धर्म तलाशने की कोशिश न करें, बल्कि अपराध की जड़ों को तलाशने का काम करें और उसे जड़ से उखाड़ फेंकने का काम आहवान् करें।

 

आखिर कब तक इस समाज में महिलायें जुर्म सहती रहेंगी?क्या हमारे देश में मकहिलाओं के लिए कोई सम्मान नहीं है? आज की पीढ़ी अपनी सोच बदलने की कोशिश क्यों नहीं कर रही है? कई सालों में महिलाऔं के प्रति तेजी के साथ बढ़ रहे अपराधों के मामले प्रकाश में आये हैं, तो उससे भी ज्यादा यौन उत्पीड़न के मामले आये हैं, ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि महिलायें महफूज नहीं हैं। चाहें कोख में हो या सड़को पर’। आज से पांच साल पहले दिल्ली का निर्भया कांण्ड जिसने सभी की नींद उड़ा कर रख दी थी, ये वो दिल दहला देने वालाी घटना से लोगों में जो आक्रोश जागा था जिसने भारत समेत पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। इस घटना के बाद पूरा देश एकजुट होकर न्याय के लिए खड़ा हो गया था, उस प्रोटेस्ट से एक बार लगा था कि, अब शायद देश में ऐसे अपराधों का अन्त हो जायेगा। लेकिन ऐसा तो देखने को मिला नहीं, बल्कि ऐसी घटनाओं में और भी ज्यादा इजाफा होने लगा। भारत ही ऐसा देश है जहां नारी की इज्जत होती है। लेकिन अफसोस और दिल को दुखाने वाली बात है कि, भारत में ही महिलाओं के साथ और दूसरे देशों के मुकाबले अपराध ज्यादा होते हैं। महिलाओं के साथ घटित होने वाली इन घटनाओं के पीछे कुछ लोगों की सोच होती है कि, महिलाऐं अपने ड्रेस कोड में बदलाव लायें मैं ये जानना चाहता हूं ऐसी सोच रखने वालों से की महिलाओं की आजादी पर पाबन्दी क्यों? क्या इसके लिए हमारी सोच ही जिम्मेदार नहीं है?

 

ऐसे अपराधों में सबसे बड़ा हाथ नशे का है, एक तो आज की युवा पीढ़ी नशे की गोद में बैठकर अपने कुकृत्यों को अंजाम दे रही है। वहीं घटता लिंगानुपात भी इसका सबसे बड़ा कारण है। महिलाओं के प्रति दुष्कर्म जैसे अपराधों को रोकने के लिए समाज की सोच को बदलना बहुत जरूरी हैे। ऐसे जघन्य और हृदय विदारक घटनाओं पर घर में बैठकर राय देना बेहद आसान है। दरअसल डॉ० प्रियंका ही वहशी भेड़ियों की भेंट नहीं चढ़ी, बल्कि दो सालों में न जाने कितनी प्रियंका इन दरिंदों के काल का ग्रास बन चुकी हैं। अक्टूबर सन् 2017 में विशाखनतनम में एक बेसहारा और भूख से पीड़ित महिला के साथ सरे बाजार बलात्कार किया गया था।कितना शर्मनाक वो था जहां पर लोग इसका विरोश करने के बजाय उसका वीडियो बना रहे थे। दूसरी घटना वो थी जिसमें एक नाबालिक लड़की मुम्बई में ट्रेन से सफर कर रही थी और मनचलों की बदनीयती से बचने के लिए वह चलती ट्रैन से कूद गई थी। ऐसे कई मामले देखे गये है कि, सोशल मीडिया पर अर्ध नग्न करके महिलाओं के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है, और लोग उसे देखकर उसका बहिष्कार करने के बजाय मजा लेते है, ऐसे में उनकी संवेदनायें कहां चली जाती हैं। निर्भया दुष्कर्म ने एकबार पूरे समाज की संवेदनाओं को हिलाकर रख दिया था, लेकिन मुझे ऐसा लग रहा है कि, आजकल ये संवेदनायें इतनी कम हो गई हैं कि, अब उन पर ध्यान कम दिया जाने लगा है। क्योंकि आज कोई घटना घटित होती है तो कल उसे भुला दिया जाता है, ये हमारे समाज के लिए चिन्ता का विषय है। ऐसी बहुत सी घटनायें महिलाओं किशोरियों के साथ बच्चियों पर भी हो रही हैं जो मन को विचलित कर देती हैं।

 

मेरी राय से इन अपराधों पर सबसे ज्यादा कोई चीज हावी है तो वो नशा है। आपने देखा होगा की मानक को दर किनार करके ऐसी जगह शराब के ठेके आवंटित होते हैं, जहां आबादी होती है। इसके लिए कौन लोग जिम्मेदार है? वहीं दूसरा सबसे बड़ा कारण पोनोग्राफी भी है। जिससे ऐसी प्रवृति के लोगों में कामवासना जागती है। इसको न रोक पाना किसकी नाकामी है? बहरहाल कारण तो बहुत हैं। लेकिन सबसे बड़ा कारण पुरूषों और युवाओं में लैंगिक संबधों के मामले में संवेदनशील बनाने के प्रयास नाकाफी ही रहे हैं। इसके लिए कौन जिम्मेदार है? मेरा मानना है कि, लैंगिक संबधों पर समाज में एक स्वस्थ सोच पैदा करनी होगी। लेकिन इस सिम्त में बहुत ज्यादा प्रयास किया जाना अभी बाकी है। ऐसा लगता है कि, अब वक्त आ गया है समाज और सरकार दोनों कम से कम एसे जघन्य और घृणित मामलों में अपनी जिम्मेदारियों को सुनिश्चित करें। साथ ही प्री प्लांड होकर एक योजनावद्ध तरीके के साथ इसको रोकने के कार्य हों, मुझे आशा ही नहीं वरन् विश्वास है कि, कम वक्त में ही महिला यौन हिंसा पर लगाम लगाई जा सकेगी।