होनी चाहिए सरकार से लेकर सरकारी मशीनरी के लोगों की योग्यता जांच: बिष्ट

होनी चाहिए सरकार से लेकर सरकारी मशीनरी के लोगों की योग्यता जांच

– हाई कोर्ट का निर्णय पंचायत जनाधिकार मंच व उत्तराखण्ड की बड़ी जीत….

देहरादून। आज दिनांक- 19 सितंबर 2019 को स्थानीय प्रेस क्लब, उत्तराखण्ड, में “पंचायत जनाधिकार मंच” के संयोजक जोत सिंह बिष्ट ने पत्रकार वार्ता का आयोजन किया। पत्रकारों से बातचीत के दौरान बिष्ट ने कहा कि, आज हाई कोर्ट नैनीताल ने पंचायत जनाधिकार मंच की याचिका पर उत्तराखण्ड की जनता के पक्ष में एक अहम निर्णय दिया है। उत्तराखण्ड की सरकार के द्वारा बनाये गए काले कानून को आज मा० न्यायालय ने दुरुस्त करते हुवे 26 जुलाई 2019 से पहले जिनके 2 से अधिक बच्चे हैं, अब वो लोग भी पंचायत चुनाव लड़ सकते हैं।

 

 

संयोजक बिष्ट ने वार्ता को जारी रखते हुवे कहा कि, 19 सितंबर का दिन विश्व में घटित दो महत्वपूर्ण घटनाओं की वजह से अपने आप में खास दिन है। आज के दिन 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद जी ने जो ऐतिहासिक भाषण दिया, उसके लिए यह दिन हमेशा याद किया जाता है। आज ही के दिन 1893 में न्यूजीलैंड में महिलाओं को मतदान का अधिकार दिया गया था। ऐसे ही महत्वपूर्ण दिन में पंचायत अधिनियम संशोधन विधेयक 2019 के खिलाफ जो याचिका मेरे द्वारा मा० उच्च न्यायालय में दायर की गई थी, उस याचिका का फैसला आया है। जिस पर बात करने के लिए मैंने आप सभी साथियों को आमंत्रित किया है।

 

 

बताते चलें कि, पंचायत जनाधिकार मंच आपको याद होगा 26 जून 2019 को उत्तराखंड की भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने इस देवभूमि में एक ऐसा काला कानून बनाया था, जिसकी वजह से ग्राम सरकार, मध्यवर्ती सरकार और जिला सरकार के लिए चुने जाने वाले 66,000 नहीं बल्कि इस चुनाव में शिरकत करने वाले और शिरकत करने की इच्छा रखने वाले कई लाख लोगों को प्रभावित किया। उनके मूलभूत अधिकार से वंचित किया।

 

 

बता दें कि, जिस संस्था में किस राज्य में 66,000 से अधिक प्रतिनिधि चुने जाते हैं, उस संस्था के प्रतिनिधियों के भाग्य का फैसला उत्तराखंड की विधानसभा में मात्र डेढ़ मिनट में कर दिया गया। एक ऐसा काला कानून बनाया गया जिसमें न कोई समझ थी, न ही परंपरा का निर्वहन किया गया, न कानून का और न व्यावहारिक पक्ष का पालन किया गया। सरकार ने अपने अहम की तुष्टि के लिए इस कानून के माध्यम से राज्य की ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले दो से अधिक संतान के माता-पिता को चुनाव लड़ने से वंचित करने का फैसला दिया। पंचायत के प्रतिनिधियों के लिए शैक्षिक योग्यता का निर्धारण किया गया। लेकिन उसमें अन्य पिछड़ा वर्ग जिस वर्ग से पंचायतों में राज्य में 14% सीटों पर चुनाव लड़ते हैं, उनकी शैक्षिक योग्यता का उल्लेख नहीं किया गया।

 

 

इस बात पर भी विचार नहीं किया गया कि, शैक्षिक योग्यता के निर्धारण एवं दो से अधिक संतान वाले लोगों को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करने पर राज्य की आधी से अधिक ग्राम पंचायतें गठित नहीं हो पाएंगी। क्योंकि, ग्राम पंचायत सदस्य के लिए 55,000 पदों में से आधे से अधिक पद रिक्त रह जाएंगे। इसमें उन सारे बिंदुओं पर जिनका हवाला राज्य निर्वाचन आयोग ने अपने एक पत्र में करते हुए राज्य सरकार से जवाब मांगा है। विचार नहीं किया गया। और तो और राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले 98% से अधिक परिवार सहकारी समितियों के सदस्य होते हैं। उनको भी चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया गया था। जिस पर राज्य मंत्रिमंडल ने पुनर्विचार करने के बाद उन्हें चुनाव में भागीदारी करने का मौका दिया।

 

 

जोत सिंह बिष्ट ने कहा कि, बाकी गलतियों को सुधारने में सरकार और सरकार की मशीनरी ने कोई रुचि ली और यही कारण है कि, चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने सरकार से पांच बिंदुओं पर समाधान मांगा है। राज्य निर्वाचन आयोग का यह पत्र हमारी बातों की पुष्टि करता है कि, सरकार ने इस कानून को बनाने में पूरी गैर जिम्मेदारी का परिचय दिया। क्योंकि, इसमें सचिवालय के सेक्शन से लेकर लगभग 10 अलग-अलग स्तर पर पत्रावली को देखा और हस्ताक्षर करके आगे बढ़ाया है। उसके बाद भी यदि किसी एक व्यक्ति ने इन प्रश्नों की तरफ गौर नहीं किया तो फिर यह भी कहा जा सकता है कि, सरकार से लेकर सरकारी मशीनरी में जो लोग हैं, उनकी योग्यता की जांच होनी चाहिए।

 

 

आज इस प्रेस वार्ता में पंचायत जनाधिकार मंच के संयोजक जोत सिंह बिष्ट, संजय भट्ट, शांति रावत, रेनु नेगी, अमरजीत सिंह मुख्य रूप से उपस्थित रहे।