केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के उत्तराखंड की वन भूमि की सुरक्षा के लिए सख्त निर्देश। पढ़ें….
- ऐतिहासिक गज़ट अधिसूचना 11 अक्टूबर 1952 का हवाला
देहरादूनउत्तराखंड की वन भूमि पर हो रहे अवैध कब्जों और कानूनी उल्लंघनों के खिलाफ केंद्र सरकार ने सख्त कदम उठाने का संकेत दिया है। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) को तत्काल हस्तक्षेप करते हुए राज्य में वन भूमि की सुरक्षा हेतु प्रभावी कदम उठाने के निर्देश दिए हैं।
यह निर्देश विकेश सिंह नेगी, एडवोकेट, देहरादून द्वारा भेजे गए पत्र के आधार पर जारी किया गया है, जिसमें राज्य में सरकारी-अधिग्रहित वन भूमि पर हो रहे अतिक्रमण की गंभीर स्थिति को उजागर किया गया था।
विकेश सिंह नेगी द्वारा 24 सितंबर 2024 को भेजे गए पत्र में देहरादून और अन्य क्षेत्रों में सरकारी वन भूमि पर अवैध कब्जे के बढ़ते मामलों की ओर ध्यान दिलाया गया था।
इसके साथ ही, उन्होंने 11 अक्टूबर 1952 की ऐतिहासिक गज़ट अधिसूचना का हवाला देते हुए यह बताया कि यह अधिसूचना वन भूमि की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी दस्तावेज है, जिसे लगातार अनदेखा किया जा रहा है।
गज़ट अधिसूचना 11 अक्टूबर 1952 का महत्त्व
1952 की इस गज़ट अधिसूचना में स्पष्ट किया गया था कि उत्तराखंड के कई क्षेत्रों में वन भूमि को संरक्षित किया जाए और इन पर किसी भी प्रकार के अतिक्रमण को गैरकानूनी माना जाएगा।
नेगी ने यह आरोप लगाया कि इस अधिसूचना के बावजूद, सरकारी अधिकारियों और स्थानीय निकायों ने गैरकानूनी रूप से वन भूमि पर कब्जे की अनुमति दी है, जो न केवल पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन है बल्कि राज्य के वन संसाधनों को भी खतरे में डाल रहा है।
यह गज़ट अधिसूचना स्पष्ट रूप से उन भूमि को वन क्षेत्र घोषित करती है, जो 8 अगस्त 1946 के बाद से सरकारी संपत्ति हैं, और जिन पर किसी भी प्रकार का निजी या सार्वजनिक कब्जा अवैध माना जाता है।
नेगी का कहना है कि इस अधिसूचना के तहत कई भूमि अब भी वन विभाग के अधीन होनी चाहिए, लेकिन कई स्थानों पर नगर पालिका या ग्राम पंचायत द्वारा उन भूमि को अन्य लोगों को आवंटित कर दिया गया है, जो कि पूरी तरह से गलत और गैरकानूनी है।
वन भूमि पर अवैध कब्जों के खिलाफ कार्रवाई की मांग
श्री नेगी ने अपने पत्र में यह भी अनुरोध किया है कि राज्य सरकार और वन विभाग तत्काल प्रभाव से कार्रवाई करते हुए उन जमीनों को वन विभाग के अधीन वापस लाएं, जो 11 अक्टूबर 1952 की गज़ट अधिसूचना के तहत संरक्षित होनी चाहिए थीं। इसके साथ ही, उन्होंने उन लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग की है जो इन जमीनों पर अवैध रूप से कब्जा किए हुए हैं।
पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव
श्री नेगी के अनुसार, इस अवैध कब्जे की समस्या ने न केवल उत्तराखंड की प्राकृतिक संपदा को नुकसान पहुँचाया है, बल्कि राज्य के पर्यावरण संतुलन को भी गंभीर खतरा पैदा किया है।
बढ़ते शहरीकरण और भूमि माफिया के सक्रिय होने के कारण हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँच रहा है। वन भूमि पर अनधिकृत कब्जों से स्थानीय निवासियों की आजीविका भी प्रभावित हो रही है, क्योंकि उनके प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा कर लिया गया है।
उन्होंने आगे कहा कि यदि राज्य सरकार इस मामले में समय रहते कदम नहीं उठाती, तो आने वाले समय में पर्यावरणीय और सामाजिक क्षति की भरपाई करना असंभव हो जाएगा।
मंत्रालय का जवाब: त्वरित जांच और कार्रवाई के निर्देश
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इस गंभीर मुद्दे को तुरंत संज्ञान में लेते हुए उत्तराखंड के प्रधान मुख्य वन संरक्षक को तत्काल जांच और आवश्यक कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
मंत्रालय के वन संरक्षण प्रभाग द्वारा 4 अक्टूबर 2024 को जारी किए गए पत्र में राज्य के वन अधिकारियों से कहा गया है कि, वे वन कानूनों और विनियमों के तहत तुरंत इस मामले की जांच करें और वन भूमि की सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाएं।
इसके साथ ही, उन्होंने यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि कार्रवाई की रिपोर्ट शीघ्रता से मंत्रालय और आवेदक, श्री विकेश सिंह नेगी को भेजी जाए।
वन संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल
1952 की गज़ट अधिसूचना और पर्यावरण कानूनों के संदर्भ में की गई यह पहल उत्तराखंड में वन संरक्षण और पारिस्थितिकी संतुलन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखी जा रही है।
विकेश सिंह नेगी के प्रयासों ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर एक बार फिर से ध्यान केंद्रित किया है और उम्मीद जताई जा रही है कि अब राज्य सरकार और वन विभाग इस दिशा में ठोस कदम उठाएंगे।