हाईकोर्ट ब्रेकिंग: पुरौला हिन्दू महापंचायत मामले में सरकार को सुरक्षा के कड़े इंतजाम के निर्देश। TV डिबेट और आपत्तिजनक नारे पर रोक

पुरौला हिन्दू महापंचायत मामले में सरकार को सुरक्षा के कड़े इंतजाम के निर्देश। TV डिबेट और आपत्तिजनक नारे पर रोक

नैनीताल। उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय में पुरौला हिन्दू महापंचायत पर रोक संबंधी जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने सरकार को सुरक्षा के कड़े इंतजाम करने को कहा है। न्यायालय ने याचिकाकर्ता और उससे जुड़े लोगों को टी.वी डिबेट और आपत्तिजनक नारे लगाने पर रोक लगा दी है।

मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ में आज उत्तरकाशी जिले के पुरौला में हिन्दू महापंचायत को रोकने संबंधी जनहित याचिका को सुना गया।

दिल्ली से मामले में ऑनलाइन जुड़ी महिला अधिवक्ता ने आरोप लगाए की पुलिस और प्रशासन कानून व्यवस्था बनाने में नाकामयाब है। उन्होंने कहा कि सोशियल मीडिया के माध्यम से पोस्टर और बैनर लगाकर एक धर्म विशेष के लोगों को धमकाया जा रहा है।

उन्हें दुकानें छोड़कर भगाया जा रहा है। कहा कि पोस्टर में भाई, बहन, पंडित, बाबा समेत सभी सनातनियों को महापंचायत में हिस्सा लेने को कहा गया है। याची के अधिवक्ता ने कहा कि पोस्टर लगाने और महापंचायत बुलाने वालों के खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ में दोपहर 11:45 बजे पुरौला में लव जिहाद के बाद बुलाई गई हिन्दू महापंचायत पर रोक संबंधी याचिका पर सुनवाई शुरू हुई। ऑनलाइन महिला अधिवक्ता ने अपनी बात रखी। जिसके बाद महाधिवक्ता एस.एन.बाबुलकर ने महिला की बातों को गलत बताया। महाधिवक्ता ने कहा कि ये शिकायतकर्ता और अधिवक्ता दिल्ली में बैठे हैं और वहां से सरकार को अस्थिर करना चाहते है। ये लोग अपने क्षेत्र की समस्याओं पर ध्यान दें और उन्हें सुलझाएं। हमारे प्रदेश में एक भी कॉम्युनल राइट्स का मामला अभी तक दर्ज नहीं है और ये लोग इसे बिगाड़ना चाहते हैं। महाधिवक्ता ने कहा कि पुरौला नहीं पूरी उत्तरकाशी जिले में सुरक्षा कड़क कर दी गई है और पुरौला में धारा 144 लगा दी गई है।

जानकारी के अनुसार मामले में 15 जून को लव जिहाद के बाद प्रस्तावित महापंचायत से ग्राम प्रधान संगठनों के हाथ खींचने के बाद, इसे विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे हिंदूवादी संगठनों ने उठा लिया था। उत्तरकाशी जिले में एक धर्म विशेष की संस्कृति और धर्म की सुरक्षा के लिए प्रोटेक्शन(सुरक्षा)की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी ऊत्तराखण्ड के डी.जी.पी.से जरूरी कदम उठाने को कहा था।

मामले के अनुसार सिएशन फ़ॉर द प्रोटक्शन ऑफ सिविल राइट्स के सदस्य अधिवक्ता शाहरुख आलम ने बुधवार की दोपहर को उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी की खण्डपीठ के समक्ष पुरोला में उपजे साम्प्रदायिक तनाव के बीच 15 जून को हिन्दू संगठनों द्वारा बुलाई गई महापंचायत पर रोक लगाने के लिए याचिका मेंशन करते हुए बताया कि उन्होंने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की अवकाश कालीन खण्डपीठ के समक्ष अपील की थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस याचिका को सुनने से इंकार करते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने को कहा।

शाहरुख के अनुसार मुख्य न्यायधीश ने इस याचिका को सुनने की मंजूरी देते हुए उन्हें रजिस्ट्री में याचिका दायर करने के निर्देश दिए। आज देर शायं तक याचिका दायर नहीं हो सकी और गुरुवार 15 जून की डेली कॉज लिस्ट में यह मामला सूचीबद्ध नहीं है। उम्मीद जताई जा रही है कि याचिका कल दायर होकर, इसमे सुनवाई हो सकती है।

शाहरुख आलम ने न्यायालय को बताया कि पुरोला की एक नाबालिग लड़की को दो युवकों ने बहला फुसलाकर भगाने के बाद पुरोला में साम्प्रदायिक तनाव बना है, हालांकि आरोपी गिरफ्तार हो चुके हैं । इसके बाद पुरोला से धर्म विशेष की दुकानों को खाली कराया जा रहा है और उन दुकानों के बाहर धार्मिक संगठन ने चेतावनी भरे पोस्टर लगाए हैं । उन्होंने महापंचायत में धार्मिक संगठनों के नेताओं द्वारा “हेट स्पीच” दिए जाने की आशंका जताई जिससे साम्प्रदायिक माहौल खराब होगा।

खंडपीठ ने आज मामले में सरकार से सुरक्षा व्यवस्थाओं को और भी चाक चौबंद करने को कहा है, साथ में याची व उनके साथियों से टी.वी.डिबेट और आपत्तिजनक नारों से दूर रहने को कहा है। मामले में ली सुनवाई तीन सप्ताह बाद होनी तय हुई है।