एक नजर: 2022 के विधानसभा चुनावों में आखिर किस करवट बैठेगी कोटद्वार की राजनीति। पढ़े पूरी खबर…

2022 के विधानसभा चुनावों में आखिर किस करवट बैठेगी कोटद्वार की राजनीति। पढ़े पूरी खबर…

 

रिपोर्ट- मनोज नौडियाल
कोटद्वार गढ़वाल की राजनीति का राज्य बनने के बाद से लगातार केन्द्र बना रहा है। राज्य बनने से लेकर 2021 तक कोटद्वार राजनीति में बड़े चौंकाने वाले फैसले कोटद्वार की विधानसभा के लोगों ने दिए, जिससे अच्छे खासे सर्वेक्षण करने वालोें सहित राजनीतिक पार्टियों का मिशन तक गड़बड़ा गया।

गढ़वाल मंडल के राजनीतिक लोगों को राज्य की कमान संभालने का सबसे ज्यादा मौका मिला। परन्तु वह गढ़वाल सहित राज्य की जनता को अपनी राजनीतिक कुशलता को साबित नहीं कर पाए। जहां तक कोटद्वार विधानसभा की बात की जाए राज्य बनने के बाद पूर्व मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी को कोटद्वार की जनता ने दो बार मौका दिया।

सुरेंद्र सिंह नेगी को दोनों कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री का दायित्व भी मिला, यानि 10 साल में भी सुरेंद्र सिंह नेगी कोटद्वार की जनता को नहीं समझ पाए न ही कोटद्वार की मूल समस्याओं को…..! शायद यही कारण रहा कोटद्वार की जनता ने उन्हें नकार दिया। नेगी को दोनों बार ऐसे प्रत्याशियों से पराजय झेलनी पड़ी वह धुरंधर राजनीतिज्ञो के लिए अप्रत्याशित रहा।

नेगी की एक राजनीतिक भूल कोटद्वार नगरनिगम चुनाव में भाग लेने की रही। एक सीधी सादी महिला जिसे अपने राजनीतिक कैरियर में कभी राजनीतिक मंच पर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका नहीं मिला, जिस प्रकार शहर की दुर्दशा नगरनिगम बनने से कोटद्वार की हुई आज से पहले कभी ऐसी दुर्दशा कोटद्वार की नहीं हुई।

इस दुर्दशा के लिए मेयर से अधिक जिम्मेदारी पूर्व मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी की बनती है। उसका कारण मेयर की कार्यशैली में पूर्व मंत्री का हस्तक्षेप। कोटद्वार की नेगी जी से प्रभावित जनता का शहर की समस्याओं को लेकर मेयर से समाधान नहीं होने के बजाय पूर्व मंत्री से उम्मीद लगाना।

अब बात करें वर्तमान विधायक और कैबीनेट मंत्री हरक सिंह रावत की तो, निःसंदेह डा. रावत गढ़वाल मंडल के वे राजनीतिक खिलाड़ी हैं जो अपनी राजनीति की जमीन अपने विधानसभा क्षेत्र केवल फल यानि फसल बेचने के लिए करते हैं और बीज बोने की तैयारी दूसरी जमीन को खाद-पानी देकर तैयार करने में बाद के तीसरे चौथे वर्ष से शुरू कर देते हैं।

राजनीतिक विसात बिछाने में माहिर डा. रावत का अब तक के राजनीतिक कैरियर को देखा जाए तो उन्होंने अब तक किसी भी विधानसभा को दोहराया नहीं, वहीं जिस भी विधानसभा में उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी को पराजित किया उस पराजित प्रतिद्वंद्वी का राजनीतिक कैरियर भी समाप्त करने में पूरी ताकत लगा दी।

उदाहरण स्वरुप राज्य बनने के बाद उसने शिकार बने लैंसडाउन के विधायक भारत सिंह रावत, रुद्रप्रयाग से मातव सिंह कंडारी और अब कोटद्वार में पूर्व मंत्री को नगर निगम के जाल में उलझाकर मंत्री बनाम मेयर का राजनीतिक युद्ध का मैदान 2022 के लिए तैयार करवा दिया है।

2022 में कोटद्वार विधानसभा का चुनाव का मुख्य चुनावी मुद्दा विधानसभा का विकास बनाम नगरनिगम का विकास होगा। कोटद्वार में 2022 के लिए आम आदमी पार्टी भी जमीन तैयार करने में जुटी है, लेकिन यह न तो कोटद्वार और न ही गढ़वाल मंडल में कुछ बदल पाने में सक्षम हो पाएगी, कहीं भी ऐसा नजर आता नहीं। बसपा, यूकेडी,व निर्दलीय भी ज्यादा कुछ गढ़वाल मंडल में असरकारक साबित हो पाएंगे केवल हवा में तीर चलाने जैसा लगता है।

कोटद्वार विधानसभा का निर्णय बहुत कुछ दावेदारों के टिकट वितरण पर भी निर्भर करता है। कांग्रेस और बीजेपी के पास मजबूत दावेदारों की लम्बी लिस्ट है। यह पार्टी संगठन पर निर्भर करेगा कि, कौन दावेदार हैं…? जहां तक संगठन की बात करें बीजेपी सब राजनीतिक दलों पर भारी है।

कोटद्वार कांग्रेस में जिला अध्यक्ष की कार्यशैली और उनकी टीम कांग्रेस की लुटिया डूबोने के लिए काफी है, बीजेपी को तो सही कंडीडेट मिलने पर आधी जीत की बुनियाद कांग्रेस जिलाध्यक्ष ही काफी है। संगठन आम आदमी और बसपा भी मजबूत करने में जुटे हैं, जो भाजपा और कांग्रेस की चुनावी गणित को प्रभावित कर सकते हैं।