घोटाला:राशन विक्रेता, फल-सब्जी सहित गैस आपूर्ति में कर रहे घटतौली,उपभोक्ताओं को लगा रहे चूना

कोटद्वार।

कोरोना काल में भारी आर्थिक तंगी के बीच आम जनमानस अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए जीतोड़ मेहनत कर जैसे-तैसे परिवार के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ कर पा रहा है। वहीं अगर कोरोना पीरियड में अगर किसी का व्यवसाय बहुत कम प्रभावित हुआ है तो वह है राशन, फल-सब्जी और रसोई गैस आपूर्ति का। लेकिन कुछ मतलब परस्त और लालची प्रवृत्ति के व्यापारियों ने आमजन की जरूरतों की अनिवार्य उपभोक्ता वस्तुओं में कालाबाजारी और घटतौली कर उपभोक्ताओं को भारी चूना लगाने का काम शुरू कर दिया।

सबसे पहले राशन को ही ले लेते हैं, उसमें शामिल दाल, चावल, चीनी,तेल, साबुन और फल सब्जियां जो कि, दैनिक उपभोग की वस्तुएं हैं,उनकी घटतौली आम रही। एक उदाहरण से आप जान सकते हैं कि, अधिकांश पैकेट बंद राशन के पैकेट में लिखा है “भरते समय वजन” जिसे उपभोक्ता आंख बंद कर दुकान से ले जाता है।शायद कोई उपभोक्ता ही पैकेट का वजन करता हो।अगर किसी ने कर भी दिया तो व्यापारी अपनी गलती मानने के बजाय फर्म पर ठीकरा फोड़ उपभोक्ता से पूरे वजन का मूल्य वसूलता है, जबकि अधिकांश पैकेट में वजन कम मिलेगा।

सबसे ज्यादा वजन कम की शिकायत कपड़े धोने के साबुनों के बंद पैकेटों और खुले साबुन की तोल में देखने को मिल रही रही है। वहीं रसोई गैस सिलेंडर में तो घटतोली आम बात हो गई है।इस विभाग में तो शिकायत पर बाटमाप विभाग द्वारा कार्रवाई करने से परहेज़ है।

रसोई गैस सिलेंडर वितरण करने वाले सप्लायरों को वाहनों में तराजू रखना जरूरी है वहीं तोलकर देना भी अनिवार्य है, लेकिन सप्लायरों के लिए यह नियम लागू नहीं होता। बाट माप विभाग के लिए सप्लायर किसी नजदीकी रिश्तेदार से कम नहीं है।

वहीं फल-सब्जी की तोल से बाटमाप विभाग ने तो आंखें बंद की हुई है। जबकि अधिकांश फल-सब्जी व्यापारियों के बाट प्रमाणित नही है न मानकों पर खरा उतरने हैं गजब तो तब होता है ,जब कुछ विक्रेता पत्थर, नट-बोल्ट से ही वजन करते देखे जा सकते हैं। जब उपभोक्ता पूरे वजन का मूल्य दे रहा है तो उसे पूरे मूल्य का सामान भी मिलना चाहिए। कोटद्वार में बाटमाप विभाग का सटाफ आफीस में कम घर और अपने परिवार के कामो को ज्यादा तवज्जो देते नजर आते हैं। वैसे भी बाटमाप विभाग के अधिकारी कोटद्वार भाजपा संगठन और वनमंत्री के नजदीकी कार्यकर्ता के अग्रज जो है। “जब सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का।”