खुलासा: नियमों को ताक पर रख खनन भंडारण आवंटित। खनन माफियाओं को लाभ के लिए मानक नकारे

नियमों को ताक पर रख खनन भंडारण आवंटित। खनन माफियाओं को लाभ के लिए मानक नकारे

– नगर निगम क्षेत्र में खनन भंडारण प्रक्रिया में नियम ताक पर

रिपोर्ट- मनोज नौडियाल
कोटद्वार। नगर निगम क्षेत्र में खनन भंडारण स्टॉक थोक के भाव बांट दिए गए हैं। जिसमें मानकों को सिरे से नकारते हुए खनन माफियाओं को लाभ पहुंचाने का काम किया गया है। इस संबंध में क्षेत्र में भंडारणों को लेकर काफी हो हल्ला भी मचा, लेकिन प्रशासन ने गांधी जी के सिद्धांतों पर चलते हुए “ना देखेंगे, ना बोलेंगे ना सुनेंगे” विचारधारा पर काम करते हुए आम जनता को सिरे से नकार दिया। इस संबंध में क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता कमलेश कोटनाला ने सूचना के अधिकार के तहत 25 सितंबर 2019-20 में एक सूचना विभाग से मांगी। जिसमें विभाग द्वारा खनन भंडारण संबंधित नियमों को उजागर किया।

सरकार द्वारा किसी भी भंडारण के लिए सबसे प्रमुख नियम नदी तट से 300 मीटर की दूरी, वन भूमि से 50 मीटर की दूरी, राष्ट्रीय राजमार्ग राज्य मार्ग जनपथ मार्ग से दूरी 50 मीटर, ग्रामीण क्षेत्रों में मार्ग से दूरी 25 मीटर, धर्मस्थल से दूरी 50 मीटर, शैक्षणिक संस्थान से दूरी 50 मीटर बताए गए थे। नदी से दूरी के संबंध में पहाड़ी क्षेत्रों और मैदानी क्षेत्रों में अलग-अलग मानक बनाए गए हैं। पहाड़ी क्षेत्र में नदी से दूरी का मानक 50 मीटर तथा मैदानी क्षेत्र में यह दूरी के 300 मीटर रखी गई है। कोटद्वार नगर निगम क्षेत्र में जिला प्रशासन और राज्य सरकार ने नौ खंनन भंडारण स्वीकृत किए हैं।

सबसे गजब बात यह है कि, अधिकांश भंडारण मानकों को ताक पर रखकर आवंटित कर दिए गए हैं। कई जगह नदी से दूरी 1 किलोमीटर 2 किलोमीटर से 100 मीटर वन क्षेत्र से यह दूरी 100 मीटर जबकि यह दूरी वास्तविक दूरी से कहीं मेल नहीं खाती। कहीं-कहीं तो अजीब सा उत्तर मिला है, इसमें बंदोबस्ती नक्शा 1960 को आधार बनाकर दूरी को दरकिनार कर दिया गया है। एक कारनामा विभाग को देखने को मिला जिसमें विभाग द्वारा वर्तमान मे चल रहे कुछ भंडारणो का जिर्क तक नहीं किया गया।

जिसमें मोटाढांग मे रात दिन चल रहे भंडारण को क्यों छिपाने की कोशिश की जा रही है। सनेह क्षेत्र मे भी भंडारण स्वीकृति पा चुका है। लेकिन विवाद के कारण या लोगों के विरोध के चलते सनेह का खनन भंडारण अभी शुरू नहीं हुआ। कुछ ऐसे ही भंडारणो का नाम क्यों छिपाने की जरूरत हुई? क्या सत्ताधारी दल से जुडे प्रभावशाली लोगों से तो खनन भंडारण के तार तो नहीं जुडे हैं? अब देखना यह है कि, खनन भंडारण में अधिकारीयों की मिलीभगत है या सत्ता में बैठे राजनेताओं की भागीदारी।