सुरक्षा कड़ी, अदालत की तारीख बढ़ी। बनभूलपुरा भूमि केस में 9 दिसंबर को होगी सुनवाई
हल्द्वानी। बहुचर्चित रेलवे बनाम बनभूलपुरा भूमि अतिक्रमण मामले की सुनवाई आज सुप्रीम कोर्ट में होनी थी, लेकिन मामला सूची में न आने के कारण सुनवाई टल गई।
अब इस केस की अगली सुनवाई 9 दिसंबर को होगी। इस महत्वपूर्ण सुनवाई को लेकर हल्द्वानी से लेकर देहरादून तक प्रशासनिक हलचल तेज थी, क्योंकि इसे केस का संभावित टर्निंग पॉइंट माना जा रहा था।
आज की तारीख को लेकर स्थानीय निवासियों, प्रभावित परिवारों, रेलवे अधिकारियों और राज्य प्रशासन की निगाहें सर्वोच्च अदालत पर टिकी थीं, लेकिन सुनवाई आगे बढ़ने के कारण पूरे मामले पर थोड़ा और इंतजार बढ़ गया है।
शहर में कड़ी सुरक्षा, बनभूलपुरा बना हाई-सेंसिटिव ज़ोन
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले हल्द्वानी में सुरक्षा व्यवस्था व्यापक रूप से बढ़ा दी गई थी। जिला प्रशासन और पुलिस महकमा पूर्ण सतर्कता की स्थिति में थे। संवेदनशील बनभूलपुरा क्षेत्र में भारी पुलिस बल तैनात किया गया है।
- ITBP और SSB को रिज़र्व पर रखा गया
- मुख्य चौराहों, गलियों और प्रवेश मार्गों पर गहन जांच
- बाहरी लोगों और वाहनों की चेकिंग तेज
- पूरे नैनीताल जिले में सुरक्षा के अतिरिक्त प्रबंध
प्रशासन का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले किसी भी अप्रिय स्थिति को रोकने के लिए यह व्यवस्था की गई थी।
पिछली सुनवाई में क्या हुआ था?
14 नवंबर की सुनवाई में रेलवे, राज्य सरकार और प्रभावित परिवारों की ओर से विस्तृत पक्ष रखे गए थे। रेलवे ने अदालत को बताया कि रेलवे प्रोजेक्ट के लिए 30 हेक्टेयर भूमि आवश्यक है और अतिक्रमण जल्द हटाया जाना चाहिए।
वहीं प्रभावितों की ओर से वरिष्ठ वकीलों ने कई तर्क पेश किए:-
- रेलवे की भूमि आवश्यकता पहले कभी इस रूप में नहीं बताई गई।
- क्षेत्र में रिटेनिंग वॉल बनने के बाद रेलवे संरचनाओं को अब कोई खतरा नहीं है।
- पुरानी बस्ती को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत स्थानांतरण का प्रस्ताव व्यावहारिक नहीं है।
इन दलीलों का रेलवे की ओर से पेश अधिवक्ता ऐश्वर्या भाटी ने कड़ा विरोध किया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई 2 दिसंबर तय की थी, जो आज टलकर अब 9 दिसंबर हो गई है।
कोर्ट का अब तक का रुख
सुप्रीम कोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि रेलवे लाइन के पास रह रहे 4365 परिवारों का पुनर्वास सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिए थे कि,
- प्रभावित परिवारों के लिए वैकल्पिक भूमि की पहचान की जाए।
- रेलवे और केंद्र सरकार के साथ संयुक्त बैठक कर समाधान तैयार किया जाए।
- किसी भी कार्रवाई से पहले मानवीय आधार को प्राथमिकता दी जाए।
यह रुख बताता है कि कोर्ट अतिक्रमण हटाने के साथ-साथ पुनर्वास को भी समान महत्व दे रहा है।
क्या है पूरा मामला?
इस केस की शुरुआत वर्ष 2013 में हुई, जब उत्तराखंड हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई। इसमें दावा किया गया कि रेलवे स्टेशन के पास गौला नदी में अवैध खनन हो रहा है और इसी कारण 2004 में नदी पर बना पुल टूट गया था।
याचिका पर सुनवाई के दौरान रेलवे ने अदालत में दस्तावेज़ पेश किए-
- 1959 का नोटिफिकेशन
- 1971 का राजस्व रिकॉर्ड
- 2017 का भूमि सर्वे
इन सबके आधार पर रेलवे ने कहा कि विवादित भूमि रेलवे की है और इस पर वर्षों के दौरान अतिक्रमण हुआ है। हाईकोर्ट ने इस दावे को स्वीकार किया और अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया।
इसके बाद प्रभावित लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 2 जनवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट आदेश पर स्टे लगाते हुए पुनर्वास और मानवीय पहलू पर विस्तृत सुनवाई शुरू की। तब से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
सुनवाई अब 9 दिसंबर को होगी, और एक बार फिर पूरे हल्द्वानी और राज्यभर की नज़रें सर्वोच्च अदालत पर रहेंगी।


