इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से मांगा जवाब
नई दिल्ली। उत्तराखंड सरकार से सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर और सख़्त सवाल किए है। बुधवार को कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से सवाल किया कि वन भूमि के डायवर्जन के लिए जमा किए गए प्रतिपूरक वनरोपण निधि (कैम्पा फंड) का इस्तेमाल आईफोन, लैपटॉप, फ्रिज और कूलर जैसी चीजों की खरीद में क्यों किया गया? कोर्ट ने राज्य सरकार को एक पखवाड़े के भीतर इस मामले में जवाब देने का आदेश दिया है।
यह मामला सीएजी (कैग) की रिपोर्ट के आधार पर सामने आया है। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि डिवीजनल स्तर पर 13.9 करोड़ रुपये का इस्तेमाल अस्वीकार्य गतिविधियों पर किया गया। इसमें आईफोन, लैपटॉप, फ्रिज, कूलर और स्टेशनरी जैसी चीजों की खरीद शामिल है।
इसके अलावा, राज्य योजना-हरेला, टाइगर सफारी कार्य, इमारतों के जीर्णोद्धार, व्यक्तिगत दौरे और अदालती मामलों पर भी फंड का गलत इस्तेमाल किया गया।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि कैम्पा फंड का इस तरह का डायवर्जन एक गंभीर मामला है। कोर्ट ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव को 19 मार्च तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
पीठ ने चेतावनी दी कि अगर संतोषजनक जवाब नहीं मिलता है, तो 20 मार्च को मुख्य सचिव को कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने का आदेश दिया जाएगा।
कैम्पा फंड का गलत इस्तेमाल
सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक, कालागढ़ टाइगर रिजर्व में टाइगर सफारी सड़क, वन विश्राम गृह के आधुनिकीकरण, वन रक्षक चौकियों और हाथी सुरक्षा दीवार के निर्माण जैसे कामों के लिए कैम्पा फंड के 2.7 करोड़ रुपये का डायवर्जन किया गया। सीएजी ने कहा कि ये गतिविधियां प्रतिपूरक वनीकरण निधि नियमों के तहत उचित नहीं थीं।
रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि राज्य में वनीकरण गतिविधियों से मिलने वाला रिटर्न बेहद कम है। वृक्षारोपण का औसत उत्तरजीविता प्रतिशत महज 33.5% था, जबकि यह 60-65% होना चाहिए।
नैनीताल, पिथौरागढ़ और रुद्रप्रयाग जैसे प्रभागों में यह दर और भी कम थी। इसका मुख्य कारण वृक्षारोपण से पहले मिट्टी की उचित देखभाल न किया जाना था।
सीएजी रिपोर्ट के अन्य खुलासे
- फंड जारी करने में अक्षमता और अप्रभावशीलता पाई गई।
- प्रतिपूरक वनीकरण निधि नियमों के अनुसार लेखांकन प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया।
- ब्याज देयता का निर्वहन नहीं किया गया।
- राज्य प्राधिकरण ने डायवर्सन और अस्वीकार्य खर्च को नियंत्रित करने में विफल रहा।
- सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए उत्तराखंड सरकार से पारदर्शी और संतोषजनक जवाब मांगा है।