गजब: तमाम गाँवों को ब्लॉक मुख्यालय से जोड़ने वाला मोटरमार्ग बदहाल। ग्रामीण पलायन करने पर मजबूर

वाह सरकार: तमाम गाँवों को ब्लॉक मुख्यालय से जोड़ने वाला मोटरमार्ग बदहाल। ग्रामीण पलायन करने पर मजबूर

– गुरुद्वारा रीठासाहिब को भी सीधे जोड़ता है यह मोटरमार्ग
– बेहतर मोटरमार्ग न होने के कारण क्षेत्र से लगातार हो रहा है पलायन

रिपोर्ट- सूरज लडवाल
पाटी। विकासखण्ड मुख्यालय से तमाम गाँवों को जोड़ने वाला मैरोली सकदेना-टाकखंदक मोटरमार्ग की हालत कई वर्षों से बदहाल बनी हुई है। मोटरमार्ग में अधिकांश स्थानों पर सुरक्षा दीवारें, स्कवर और काचवे बने हुए हैं। लेकिन डामरीकरण की प्रक्रिया अब तक शुरू नहीं हो पाई है।

बताते चलें कि, अगर इस मोटरमार्ग पर डामरीकरण हुआ होता तो सुनटुकरा, सकदेना, दूबड़-कमलेख, टाक और बालातड़ी गाँवों को सीधा लाभ मिलता। इसके साथ-साथ इस मोटरमार्ग पर डामरीकरण होने पर भींगराडा, खरही, चल्थियां, रीठासाहिब, साल, मछियाड़, परेवा सहित करीब दो दर्जन से अधिक गाँवों के लोगों को ब्लॉक मुख्यालय पाटी पहुँचने के लिए कम दूरी तय करनी पड़ेगी।

लेकिन सरकारों की बेरुखी और जनप्रतिनिधियों की लापरवाही के चलते लगातार इस क्षेत्र की अनदेखी की जा रही है। बताते चलें कि, जहाँ एक ओर सरकार लगातार पलायन रोकने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर ग्रामीणों को सुविधाएं मुहैय्या न कराकर पलायन को बढ़ावा दे रही है।

गातव्य हो कि, एक समय थी, जब इस क्षेत्र में आलू और अदरक की रिकार्ड पैदावार हुआ करती थी, लेकिन उचित यातायात व्यवस्था न होने के चलते इस क्षेत्र से लोगों का पलायन लगातार बढ़ता रहा।

अब आलम यह है कि, अगर इस मोटरमार्ग में शीघ्र डामरीकरण नहीं किया जाता है तो, गाँवों में घर की रखवाली करने के लिए रुके हुए लोग भी पलायन करने की तैयारी कर रहे हैं। अगर सड़क सुविधा के अभाव में 21 वीं सदी में भी इन गाँवों से पलायन होता है तो सरकार की पलायन रोकने की मुहिम पर बट्टा लग जाएगा।

कई विद्यालय नहीं भेज पाते स्कूल बस

बदहाल मोटरमार्ग पर डामरीकरण न होने के चलते सुनटुकरा, सकदेना, दूबड-कमलेख और सकदेना क्षेत्र के बच्चों के लिए तमाम विद्यालय स्कूल बस नहीं भेज पा रहे हैं और इन गाँवों के लोगों का अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाने का सपना हकीकत में नहीं बदल पा रहा है।

जंगल में बदल रहे हैं खेत-खलियान और घर

उचित सड़क मार्ग न होने के कारण गाँवों से लगातार पलायन हो रहा है और हमेशा लहलहाने वाले खेत-खलियान बंजर होने की कगार पर पहुँच चुके हैं। हमेशा गुलजार रहने वाले घरों में भी अब इक्का-दुक्का लोग ही रहते हैं। इतना ही नहीं तमाम पलायन हो चुके घरों में अब झाड़ियों का कब्जा हो चुका है।

इन गांवों से लगातार हो रहे पलायन के लिए सरकार अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठा पायी है। लेकिन तमाम लोग अब भी कयास लगा रहे हैं कि, अगर मोटरमार्ग में डामरीकरण होगा तो शायद लोगों का पलायन बंद हो जाय।