उद्यान विभाग के शोध केन्द्रों की स्थिति निंदनीय
देहरादून। वर्ष 2004 में इन शोध केंद्रों को गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय पन्त नगर के अधीन कर दिया गया। पुनः वर्ष 2012-13 में शोध केंद्रों को उद्यान विभाग के अधीन कर दिया गया। शोध केन्द्रों के अधिकतर वैज्ञानिक/अधिकारी सेवा निवृत्त हो गये है। नये पद भरे नहीं गये तथा उनको सुनियोजित ढंग से समाप्त कर दिया गया। आज अधिकतर अनुभागों में चतुर्थ व तृतीय क्षेणी के कर्मचारी बिना विज्ञान विषय पढ़ें वरिष्ठ वैज्ञानिकों/प्रशिक्षण अधिकारियों के पद सम्भाले हुए हैं। केन्द्र की सारी गतिविधियां बंद पड़ी है।
चौबटिया गार्डन जो फल शोध केंद्र चौबटिया का प्रायोगिक प्रक्षेत्र भी है। मैं वर्षों की मेहनत के फलस्वरूप विदेशों से व अन्य राज्यों से संकलित सेब, नाशपाती, आड़ू प्लम, खुमानी, चेरी आदि की विभिन्न किस्मों के हजारों फल वृक्षों को समूल काट कर नष्ट कर दिया गया। राज्य के हुक्मरानों ने कहीं भी इन बहुमूल्य बेशकीमती फलों की प्रजातियों को संकलित कर सुरक्षित नहीं रखा।
प्रयोग एवं प्रशिक्षण केन्द्र श्रीनगर
इस केन्द्र की स्थापना 1972 – 73 में उद्यान,भू- रसायन एवं मशरूम अनुभागों को खोल कर की गई राजकीय पौधालय श्रीनगर को इस शोध केंद्र का प्रयोगिक प्रक्षेत्र बनाया गया, जिसका उद्धघाटन स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के कार्य काल में बर्ष 1975 में किया। वर्ष 1979 मैं इस केन्द्र पर मुख्य उद्यान विशेषज्ञ का पद सृजित कर मंडलीय शोध केंद्र का दर्जा दिया गया तथा प्लान्ट ब्रीडिंग, पौध रोग व कीट अनुभाग भी खोले गए ।
प्रयोगिक प्रक्षेत्र पर किन्नो संतरा व अन्य नीम्बू वर्गीय फल पौधों की विभिन्न किस्मौ का रोपण किया गया साथ ही अनार आंवला , आड़ू (लो चिलिंग ) की विभिन्न किस्मौ का रोपण किया गया। इन प्रयोगों के काफी उत्साह बर्धक परिणाम रहे आड़ू, आंवला, संतरा व अनार की उन्नशील किस्मौ का चयन किया गया तथा क्षेत्र में लगाने की संस्तुति की गई। केन्द्र द्वारा स्थानीय कृषकों को उन्नतशील सब्जियों की पौध व फल पौध उत्पादन कर वितरित किया जाता रहा।
मृदा परीक्षण प्रयोगशाला में मृदा परीक्षण का कार्य तथा मशरूम का स्पान बनाकर मशरूम उत्पादकों को वितरित किया जाता रहा। राज्य बनने के बाद आज सभी अनुभाग बन्द पड़े हैं, प्रायोगिक प्रक्षेत्र की घेरबाड बर्ष 2013 जून में अलकनंदा में आयी बाड़ से छतिग्रस हो गई थी जो आज तक नहीं बनी, प्रक्षेत्र के एक हिस्से में नगर पालिका का कूड़ा डाला जा रहा है , तथा बाकी फार्म में आवारा पशुओं का आवागमन बना रहता है।
डुणडा, उत्तरकाशी
इस शोध केंद्र पर बादाम पिक्कनट व अखरोट फलौ की विभिन्न किस्मों को लाकर रोपण किया गया, तथा उन पर शोध कार्य किए गए। डा० मनमोहन सिन्हा जो बाद में उत्तर प्रदेश में उद्यान निदेशक के पद पर भी रहे के द्वारा कई बर्षौ तक यहां पर उद्यान बिशेषज्ञ के पद पर कार्य किया गया। आज भी इस फार्म में डा० सिन्हा के कार्यकाल में रोपित पिक्कनट की उन्नत किस्में फलत में हैं। राज्य बनने के बाद यह केन्द्र भी बन्द होने के कगार पर है कोई भी गति बिधि यहां पर नहीं चल रही है, बादाम के सभी पौधे समाप्त हो चुके हैं।
पिथौरागढ़- गैना/अंचोली
इस शोध केंद्र पर बादाम पिक्कनट व अखरोट फलौ की विभिन्न किस्मों को वाहर से लाकर रोपण किया गया, तथा उन पर शोध कार्य किए गए। डा० हीरालाल जो राज्य बनने पर कुछ समय के लिए उद्यान निदेशक के पद पर भी रहे द्वारा अखरोट पौधों के प्रसारण पर शोध कार्य किए गए।