उद्यान विभाग द्वारा अदरक उत्पादकों को समय पर नहीं दिया जा रहा उन्नत किस्म का बीज
डॉ राजेंद्र कुकसाल
देहरादून। उद्यान विभाग विगत 20-30 वर्षो से 10 से 15 करोड़ रुपए का अदरक बीज उत्तर पूर्वी राज्यों से दलालों के माध्यम से मंगाता आ रहा है। यह बीज कृषकों को न तो समय पर मिलता है और न ही इस बीज से अच्छी उपज प्राप्त होती है।हिमांचल प्रदेश की तरह राज्य में कभी भी अदरक बीज उत्पादन के प्रयास नहीं किए गए। राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में, नगदी फसल के रूप में अदरक का उत्पादन कई दशकों से किया जा रहा है। विभागीय आकडों के अनुसार 4,876 हैक्टियर में अदरक की कास्त की जाती है, जिससे 47,120 मैट्रिक टन का उत्पादन होता है।
अदरक की उन्नत किस्मों के बीज प्राप्त करने के मुख्य स्रोत
● आईआईएसआर प्रयोगिक क्षेत्र, केरल
● कृषि एवं तकनीकी विवि पोट्टांगी उडीसा
● डॉ वाइ.एस.परमार यूनिवर्सिटी आफ हार्टिकल्चर, नौणी सोलन, हिमांचल प्रदेश
उद्यान विभाग विगत 20-30 वर्षों से पूर्वोत्तर राज्यों असम, मणिपुर, मेघालय व अन्य राज्यों से सामान्य किस्म के अदरक को प्रमाणित/ ईमानदार बीज के नाम पर रियोडी जिनेरियो किस्म बता कर 10 से 15 करौड रुपये का अदरक प्रतिवर्ष क्रय कर राज्य के कृषकों को बीज के नाम पर बांटता आ रहा है।अदरक बीज के आपूर्ति करने वाले (दलाल) इन राज्यों की मंडियों से 10-15 रुपये प्रति किलो की दर से क्रय करते हैं, तथा अदरक बीज के नाम पर उद्यान विभाग 80 से 100 रुपये प्रति किलो की दर से इन दलालों के माध्यम से क्रय कर, राज्य में कृषकों को योजनाओं के अंतर्गत वितरित करता आ रहा है। जिस पर 50 प्रतिशत का अनुदान विभाग द्वारा दिया जाता है।
बता दें कि, अदरक बीज की खरीद पर कई बार सवाल उठे हैं, तथा विवाद भी हुए हैं। पूर्ववर्ती सरकार में भी अदरक बीज खरीद प्रकरण खूब चर्चाओं में रहा। समय-समय पर जब अदरक बीज खरीद पर सवाल उठते है, तो विभाग के एक-दो अधिकारियों को निलंबित कर, या बीज आपूर्ति कर्ता को ब्लेक लिस्ट कर प्रकरण वहीं समाप्त कर दिया जाता है।
अदरक बीज आपूर्ति कर्ता, ठेकेदार/आढ़ती (दलाल) न तो अदरक बीज उत्पादक होते हैं और ना ही किसी बीज आपूर्ति करने वाली फर्म के अधिकृत विक्रेता। सम्मपरीक्ष/ लेखा परीक्षा से बचने के लिए इसके द्वारा फ्रुट फेड हल्द्वानी नैनीताल या अन्य सहकारिता समितियों के बिल का प्रयोग किया जाता है। ये समितियां न तो अदरक उत्पादक होती है और ना ही बीज आपूर्ति करने वाली संस्था। इस प्रकार अदरक बीज क्रय में See act/उत्तराखंड पर्चेज रूल्स दोनों का उल्लंघन किया जाता है।
क्या कहना है कृषकों का
अधिकतर कृषकों का कहना है कि, स्थानीय उत्पादित अदरक बीज बोने से अधिक उपज प्राप्त होती है। विभाग द्वारा आपूर्ति अदरक बीज बोने पर कई तरह की बीमारियां/कीट फसल पर लगते हैं। अदरक उत्पादित क्षेत्रों में कुछ कास्तकार स्वयंम अदरक का बीज उत्पादित करते हैं। टिहरी जनपद के फगोट विकास खण्ड के अन्तर्गत आगरा खाल, कस्मोली, आगर आदि ग्राम सभाओं के अदरक उत्पादकों के साथ मैंने स्वंम बैठक की जिसमें हरियाली ग्रामीण कृषक, श्रमिक सहकारी समिति के अध्यक्ष हरीश चंद्र रमोला, ग्रामीण श्रमिक कृषक कल्याण सहकारी समिति आगराखाल के अध्यक्ष कुंवर सिंह रावत व अन्य कृषकों ने भाग लिया। स्थानीय रूप से उत्पादित अदरक बीज की मागं काफी रहती है। अन्य अदरक उत्पादित क्षेत्रों देहरादून के चकराता विकास नगर आदि क्षेत्रों में भी अधिकतर कास्तकार अदरक का बीज स्वयंम उत्पादित करते हैं।
ग्रामीण कृषक सहकारी समिति आगराखाल के अध्यक्ष व पूर्व क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष वीरेंद्र कंडारी का कहना है कि, इस बार शुरुआत में अदरक की अच्छी बिक्री हुई है। अगस्त माह में करीब एक करोड़ तक के अदरक की बिक्री हुई। यह सब स्थानीय बीज व कृषकों की मेहनत का परिणाम है। उन्होंने कहा कि, विभाग द्वारा आपूर्ति अदरक बीज समय पर नहीं मिलता। साथ ही उसमें कई तरह की व्याधियां व कीट लगे होते हैं। कन्डारी ने उद्यान विभाग को स्थानीय अदरक बीज उत्पादन को बढ़ावा देने व योजनाओं में स्थानीय अदरक बीज किसानों को वितरित करने की सलाह दी है।
अदरक बीज ग्राम विकसित कर अदरक उत्पादकों की आय कई गुना बड़ाई जा सकती है। उद्यान विभाग में केंद्र सरकार की कई योजनाएं- हार्टिकल्चर टैक्नौलाजी मिशन, परम्परागत कृषि विकास योजना आदि हैं। जिनके अन्तर्गत कृषकों को अदरक बीज उत्पादन हेतु सहायता दी जा सकती है। किन्तु उद्यान विभाग की रुचि अदरक बीज बाहर के राज्यों से ही खरीदने में रहती है। इसके विपरीत हिमाचल प्रदेश अदरक बीज उत्पादन में आत्मनिर्भर ही नहीं अन्य राज्यों को भी अदरक बीज की आपूर्ति करता है। साथ ही राज्य के बाहर से अदरक बीज क्रय पर प्रतिबंध लगा रखा है।
राज्य बनने पर आश जगी थी कि, विकास योजनायें राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार कृषकों के हित में बनेंगी। किन्तु दुर्भाग्य से राज्य को हिमाचल प्रदेश की तरह डॉ परमार जैसा दक्ष व अनुभवी नेतृत्व नहीं मिला, जिसका प्रशासकों ने खूब फायदा उठाया, योजनाएं वैसे ही चल रही है जैसे उतर प्रदेश के समय में चल रही थी। विभाग योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए कार्ययोजना तैयार करता है। कार्ययोजना में उन्हीं मदों में अधिक धनराशि रखी जाती है, जिसमें आसानी से संगठित/संस्थागत भ्रष्टाचार किया जा सके या कहैं डाका डाला जा सके।
उच्च स्तर पर योजनाओं का मूल्यांकन सिर्फ इस आधार पर होता है कि, विभाग को कितना बजट आवंटित हुआ और अब तक कितना खर्च हुआ। राज्य में ऐसा कोई सक्षम और ईमानदार सिस्टम नहीं दिखाई देता, जो धरातल पर योजनाओं का ईमानदारी से मूल्यांकन कर उनमें सुधार ला सके। योजनाओं पर प्रति वर्ष हजारों करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी उद्यान विभाग राज्य के अदरक उत्पादकों को समय पर उन्नत किस्म का अदरक बीज उपलब्ध नहीं करा पा रहा है। विभाग की योजनाओं में जब तक कृषकों के हित में सुधार नहीं किया जाता व क्रियावयन में पारदर्शिता नहीं लाई जाती कृषकों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी सोचना बेमानी है।