पूर्णागिरी तहसील में अतिक्रमण पर प्रशासन की अनदेखी का खुलासा। शिकायतों का भी नहीं है कोई रिकॉर्ड
रिपोर्ट- मयंक पंत
देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी एक ओर जहां प्रदेश को अतिक्रमण मुक्त बनाने के संकल्प के साथ कड़े कदम उठा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर उनकी ही विधानसभा क्षेत्र की पूर्णागिरी तहसील में राजस्व विभाग का हाल देखकर यह दावा खोखला प्रतीत होता है।
एक RTI से खुलासा हुआ है कि, तहसील प्रशासन को न तो अपनी ही जमीन पर हुए अतिक्रमण की जानकारी है और न ही उसके विरुद्ध की गई शिकायतों या कार्यवाहियों का कोई रिकॉर्ड ही मौजूद है।
RTI के तहत मांगी गई जानकारी से साफ हुआ है कि तहसील प्रशासन की लापरवाही का आलम यह है कि मुख्यमंत्री पोर्टल और उपजिलाधिकारी कार्यालय में हुई शिकायतों तक की जानकारी उनके पास नहीं है।
इतना ही नहीं, तहसील में पूर्व में जारी किए गए नोटिस और अतिक्रमण के विरुद्ध की गई कार्यवाही का कोई उल्लेख सूचना में नहीं किया गया। यह स्थिति उस समय सामने आई है जब खुद मुख्यमंत्री अतिक्रमण के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर कार्य कर रहे हैं।
RTI में पूछे गए कुल 8 बिंदुओं में से केवल पहले बिंदु — तहसील पूर्णागिरी के सभी ग्रामों की सूची — पर ही पूर्ण सूचना दी गई।
दूसरे बिंदु में, ग्रामों की भूमि का पृथक-पृथक माप मांगा गया था, जिस पर प्रशासन ने सूचना देने की बजाय प्रार्थी को कार्यालय में आकर अवलोकन करने की सलाह दे दी।
सबसे गंभीर बात यह रही कि बिंदु संख्या 3 से 8 तक मांगी गई जानकारी — अतिक्रमित भूमि का विवरण, अतिक्रमण के विरुद्ध की गई कार्यवाही, और संबंधित शिकायतों का ब्योरा — पर या तो कोई जानकारी नहीं दी गई या फिर भ्रामक उत्तर दिए गए।
प्रशासन का दावा और जमीनी सच्चाई में फर्क
तहसील प्रशासन ने दावा किया है कि पट्टी कोटकेंद्री, बुडम और सूखीढांग में कोई अतिक्रमण नहीं है।
वहीं टनकपुर, बनबसा और चंदनी पट्टी के संबंध में कहा गया कि प्रशासन के पास किसी भी तरह की शिकायत या जानकारी नहीं है। यह तब है जब मुख्यमंत्री पोर्टल और एसडीएम कार्यालय में अतिक्रमण को लेकर लिखित शिकायतें दी जा चुकी हैं।
क्या प्रशासन ने जानबूझकर दी अधूरी जानकारी?
सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में अधूरी और असत्य सूचनाएं देने को लेकर आरोप लग रहे हैं कि प्रशासन या तो अज्ञानता का शिकार है या जानबूझकर जानकारी छुपा रहा है।
यदि शिकायतें दर्ज हैं और कार्यवाही के आदेश दिए गए हैं, तो उनका कोई रिकॉर्ड प्रशासन के पास न होना गहरी लापरवाही और प्रशासनिक शिथिलता को दर्शाता है।
मुख्यमंत्री की छवि को पहुंच रहा आघात
मुख्यमंत्री धामी को अतिक्रमण विरोधी सख्त कदमों और निर्णय लेने की क्षमता के कारण “धाकड़ धामी” की उपाधि दी जाती है।
मगर जब उन्हीं के विधानसभा क्षेत्र में अतिक्रमण को लेकर प्रशासन की यह स्थिति हो, तो सवाल उठना लाज़मी है कि प्रदेशभर में चल रहे अतिक्रमण विरोधी अभियान का असर जमीनी स्तर तक कितना पहुंचा है।