बिग ब्रेकिंग: हाईकोर्ट ने इस मामले का लिया स्वतः संज्ञान। दिए अहम निर्देश, रिपोर्ट तलब

हाईकोर्ट ने इस मामले का लिया स्वतः संज्ञान। दिए अहम निर्देश, रिपोर्ट तलब

नैनीताल। उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने भीमताल में हिंसक जानवर को मारने वाले आदेश का स्वतः संज्ञान लेते हुए वाइल्ड लाइफ इंडिया के एक्सपर्ट डॉक्टर पराग निगम को एक्सपर्ट कमेटी में लेने के निर्देश दिए हैं।

न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंडपीठ ने आज वन विभाग से कहा कि इसपर फिर से अपनी रिपोर्ट 28 दिसम्बर तक जमा करें। न्यायालय ने आदमखोर बाघ को चिन्हित करने के लिए एक एक्सपर्ट कमेटी गठित करने को कहा है और इस कमिटी में वाइल्ड लाइफ इंडिया के एक्सपर्ट डॉक्टर पराग निगम को भी सामील होंगे।

न्यायालय ने पूरे क्षेत्र की निगरानी ड्रोन कैमरे से कराने को कहा है। आज सुनवाई के दौरान वन विभाग ने न्यायालय को बताया कि आदमखोर बाघ है जबकि अन्य लोग इसे गुलदार बता रहे हैं।

अभी तक इसका पता तक नहीं चल सका है कि आदमखोर है क्या ? न्यायालय ने यह भी कहा है कि अगर यह चिन्हित किया जाता है तो उसे ट्रेंक्यूलाइज किया जाय। पिछली तिथि को न्यायालय ने वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन की धारा 11ए में उसे मारने के आदेश पर गुरुवार तक स्थिति स्पष्ट करने को कहा था।

मामले के अनुसार भीमताल में दो महिलाओं को मारने वाले हिंसक जानवर को नरभक्षी घोषित करते हुए उसे मारने के चीफ वाइल्डलाइफ वार्डेन के आदेश का स्वतः संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने सुनवाई थी।

खण्डपीठ ने वन अधिकारियों से गुलदार को मारने की अनुमती देने के प्रावधान के बारे में जानकारी ली तो वो ठीक से इसका जवाब नहीं दे सके।

उन्होंने कहा कि वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 11ए में खूंखार हमलावर जानवर को मारने की अनुमती दी जाती है । उन्होंने इसे पकड़ने के व पहचान करने के लिए 5 पिंजरे व 36 कैमरे लगा रखे है। जिसपर न्यायालय ने उनसे पूछा कि गुलदार था या बाघ था ? उसे मारने के बजाए रैस्क्यू सेंटर भेजा जाना चाहिए।

न्यायालय ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि हिंसक जानवर को मारने के लिए चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डेन की संतुष्टि होनी जरूरी है नाकि किसी नेता के आंदोलन की। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन की धारा 11ए के तहत तीन परीस्थितियों में किसी जानवर को मार सकते हैं।

उसे पहले उस क्षेत्र से खदेड़ जाएगा, फिर ट्रेंक्यूलाइज कर रैस्क्यू सेंटर में रखा जाएगा और अंत मे मारने जैसा अंतिम कठोर कदम उठाया जा सकता। लेकिन विभाग ने बिना जांच के सीधे मारने के आदेश दे दिए। उन्हें यही पता नही कि बाघ है या गुलद्वार। उसकी पहचान भी नही हुई।

न्यायालय ने यह भी कहा था कि घर का बच्चा अगर बिगड़ जाता है तो उसे सीधे मार थोड़ दिया जाता है। क्षेत्र वासियों के आंदोलन के बाद मारने के आदेश कैसे दे दिए किसने मारा आपको कोई पता नही।