उपनल कर्मियों/आंदोलनकारियों पर सरकार का सितम, खनन कारोबारियों पर करम
– उपनल कर्मियों की राह में रोड़ा अटकाने को सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी
– आंदोलनकारी आरक्षण मामले में लचर पैरवी, खनन कारोबारियों के लिए विशेष पैरवी !
विकासनगर। सरकार कर्मचारियों/आमजन के हितों को लेकर बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन धरातल पर बिल्कुल इसके उलट है।
जी हां, शनिवार को जनसंघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने एक पत्रकार वार्ता के दौरान कहा कि, उपनल कर्मियों के मामले में मा० उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 12/11/2018 को जनहित याचिका सं० 116/2018 में सरकार को इन कर्मचारियों को नियमित करने, जी०एस०टी० व सर्विस टैक्स आदि न काटने के निर्देश दिये थे, लेकिन सरकार द्वारा इन कर्मचारियों की राह में रोड़ा अटकाने को उक्त आदेश के खिलाफ मा० सर्वोच्च न्यायालय में एस०एल०पी० दाखिल की गयी।
मा० सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उक्त आदेश पर दिनांक 01/02/2019 को रोक लगा दी गयी, जो कि आज भी लंबित है। नेगी ने कहा कि, राज्य आंदोलनकारियों के क्षैतिज आरक्षण मामले में सरकार की तरफ से की गई लचर पैरवी ने आंदोलनकारियों पर कुठाराघात करने का काम किया है।
सरकार मॉडिफिकेशन एप्लीकेशन एवं अपने नोटिफिकेशन को बचाने में नाकामयाब रही, यानी सरकार की मंशा आंदोलनकारियों के हितों की रक्षा करना कतई नहीं थी।
नेगी ने कहा कि, एक तरफ सरकार खनन कारोबारियों के हितों की रक्षा हेतु मा० उच्च न्यायालय, नैनीताल में योजित खनन कारोबार से जुड़ी दो जनहित याचिकाएं 104/2019 व 212/2019 में सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया को विशेष तौर पर पैरवी हेतु आबद्ध (एंगेज) करती है, लेकिन राज्य आंदोलनकारियों के मामले में कोई मजबूत पैरवी नहीं करती।
नेगी ने कहा कि, पूर्व में मा० उच्च न्यायालय द्वारा अपने आदेश दिनांक 26/08/13 व 01/04/14 के द्वारा आरक्षण पर रोक लगा दी गई थी तथा 07/03/2018 के द्वारा भी आदेश पर रोक लगा दी गई थी।
मोर्चा सरकार से मांग करता है कि, खनन माफियाओं/कारोबारियों की चिंता छोड़ उपनल कर्मियों के मामले में मा० सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा योजित एसएलपी वापस ले व आंदोलनकारी आरक्षण मामले में मजबूत पैरवी करे।