बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुलने और बंद होने पर 165 साल से बंद पड़ी परंपरा की होगी शुरुआत। पढ़ें….
रिपोर्ट- वंदना गुप्ता
हरिद्वार। ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य का विवाद अभी खत्म नहीं हुआ है। पीठ के शंकराचार्य स्वर्गीय स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य अविमुक्तेश्वरानंद पीठ के शंकराचार्य बनाए गए हैं, मगर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्रपुरी द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है।
मामला कोर्ट में विचाराधीन है, मगर इस बार बद्रीनाथ के कपाट बंद होने पर सालों पुरानी परंपरा को एक बार फिर शुरू किया जा रहा है, जो किसी कारण वर्षों पहले बंद हो गई थी, आखिर क्या थी वो परंपरा देखे हमारी इस रिपोर्ट में….
आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित किए गए ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुलने और बंद होने पर वहां मौजूद रहते थे, मगर 165 साल से यह परंपरा बंद थी, जिसे अब फिर से शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के स्वर्गवास होने पर ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य बनाए गए अविमुक्तेश्वरानंद द्वारा इसकी शुरुआत की जा रही है।
अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि, ज्योतिष मठ में सदियों से परंपरा रही कि, बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद और खुलने के वक्त शंकराचार्य पालकी में बैठकर वहां जाते थे। सन 1776 में शंकराचार्य राम कृष्ण जी महाराज के स्वर्गवास होने के बाद यह परंपरा बंद हो गई।
क्योंकि ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य का वहां पर निवास नहीं रहा। 165 साल यही परिस्थिति बनी रही, अब हमारे द्वार इस परंपरा की शुरुआत की जा रही है।
बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुलने और बंद होने पर शंकराचार्य द्वारा वहां मौजूद होने की बंद पड़ी परंपरा की शुरुआत होने पर संत समाज भी काफी उत्साहित नजर आ रहा है।
सिद्ध पीठ शाकुंभरी देवी के महंत सहजानंद ब्रह्मचारी का कहना है कि, इस परंपरा के शुरू होने पर संत समाज में खुशी का माहौल है। क्योंकि यह परंपरा हमारी सदियों पुरानी थी, इसको अब नवनियुक्त शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद द्वारा शुरू किया जा रहा है। इससे भक्तों में भी हर्षोल्लास देखने को मिल रहा है।