वन विभाग का सरकारी बंगला खस्ताहाल। राजस्व का नुकसान, सरकार ले संज्ञान
– आखिर वन विभाग कब लेगा घेस स्थित लाखों रूपयों की लागत से निर्मित बंगालें की सुध
– ट्रैक ऑफ दा ईयर का प्रवेश द्वार हैं घेस। बंगले का नही कोई रक्षक
रिपोर्ट- गिरीश चंदोला
थराली। विकासखंड देवाल के अंतर्गत पिछले साल ही घेस-बगजी-नागाड पर्यटक रूट को ट्रैक ऑफ दा ईयर घोषित करने के बावजूद पर्यटन रूट के प्रवेश द्वार घेस का डाक बंगला आज भी लावारिस हाल में पड़ा हुआ हैं।
किंतु विभाग हैं कि, इसकी दुर्दशा को दूर करना तों दूर रहा इसके रख-रखाव के लिए एक जिम्मेदार कर्मचारी तक को भी तैनात नही कर पा रहा हैं।
दरअसल, राज्य सरकार के द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहा हैं कि, राज्य को किस तरह से धार्मिक राज्य के साथ ही पर्यटक राज्य बनाया जा सकें। इसके लिए पूरे राज्य में पर्यटन विकास के लिए तमाम योजनाओं के साथ ही परियोजनाएं बना कर धरातल पर उतारने का प्रयास किया जा रहा हैं।
इसी के तहत प्राकृतिक सौंदर्य से आच्छादित, और पर्यटकों की नजरों से ओझल बनें हुए पर्यटक स्थलों की ओर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए सरकार के द्वारा पूरे राज्य के दुरस्थ पर्यटक क्षेत्रो के रूप में विकसित करने के लिए अलग-अलग पर्यटन रूटों को ट्रक ऑफ दा ईयर घोषित कर इस रूट में तमाम तरह की मूलभूत सुविधाओं को मुहैया कराने का प्रयास किया जा रहा हैं।
इसी के तहत चमोली जिले के दुरस्थ गांवों घेस से बगजी बुग्याल होते हुए नागाड तक करीब 20 किमी लंबे पैदल पर्यटक रूट की पहचान की है। इसके तहत पिछले साल ही राज्य सरकार ने घेस-बगजी-नागाड़ को ट्रेक ऑफ दा ईयर घोषित किया हैं। जल्द से जल्द योजनाबद्ध तरीके से सरकार के द्वारा इस पर पर्यटकों की सुविधा के अनुरूप मूलभूत सुविधाओं की स्थापना की योजना बनाई जा रही हैं।
जिसमे पर्यटन विभाग के बाद सबसे बड़ी जिम्मेदारी वन विभाग को निभानी है। किंतु अब प्रश्न उठने लगा हैं कि, क्या वन विभाग के भरोसे इस पर्यटन रूट का विकास हो सकता हैं? इस उठ रहे प्रश्न का बड़ा कारण घेस गांव के बीचों बीच दशकों पूर्व त्रिशूली वन विश्राम भवन के नाम से स्थापित दो सूटों का वन विभाग का गेस्ट हाउस बन रहा हैं।
दरअसल, लाखों रुपए की लागत से निर्मित गेस्ट हाउस लावारिस हालत में पड़ा हुआ हैं। जों कि वन विभाग की कार्यकुशलता को दरसाने के लिए काफी है। यहां पर ना तों कोई कर्मचारी तैनात किया गया हैं और ना ही इसके देख-रेख पर विभाग का कोई ध्यान हैं।
वर्तमान की स्थिति को देख लगता है कि, महिनों से इस बंगले का ना तों ताला खोला गया हैं और ना ही इसकी साफ-सफाई ही की हैं। ऐसी स्थिति में 20 किमी से अधिक लंबे रूट पर वन विभाग किस तरह से पर्यटकों को सुविधाएं देने के साथ जंगलों एवं बुग्यालों को संरक्षित कर पाएगा! बंगले की स्थिति को देख स्वत: अनुमान लगाया जा सकता हैं।
वहीं पूर्व पिंडर रेंज देवाल के वन क्षेत्राधिकारी त्रिलोक सिंह बिष्ट ने बताया कि, इस बंगले में विभागीय कोई भी चौकीदार तैनात नही हैं। इसके संचालन की वैकल्पिक जिम्मेदारी इस बीट के फारेस्ट गार्ड को सौपी गई है। साथ ही समय-समय पर अभावों के बावजूद यहां पर टूरिस्ट आते रहते हैं।
उन्होंने बताया कि, इस बंगले में पानी की व्यवस्था नही हैं। इस परिसर के चारों ओर चार दिवारी के अभाव में अवारा पशुओं का भी बंगले में आवागमन बना रहता हैं। इस संबंध में विभागीय उच्चाधिकारियों को कई बार अवगत कराया जा चुका हैं, किन्तु स्थिति जस की तस बनी हुई हैं।
हालांकि 2008 में इस बंगले में वृहद स्तर पर मरम्मत कार्य किए जाने की उन्होंने बात कही। इस बंगले की बनी हुई दुर्दशा अपनी लावारिस हालत का बखान करने के लिए काफी हैं।
त्रिशूली वन विश्राम भवन का नाम यूं ही नहीं लिखा गया हैं। दरअसल, जिस स्थान पर भवन का निर्माण किया गया हैं, वहां से त्रिशूल हिम पर्वत श्रृंखला का दृश्य देखते ही बनता हैं। इसके प्रचार-प्रसार से प्रति वर्ष हजारों प्रकृति प्रेमी/पर्यटक यहां पर खींचे आ सकतें हैं।