हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद कोतवाल ससपेंड। याचिका निस्तारित
उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने नैनीताल में 15 नवंबर को हुए जमीनी विवाद में एकतरफा कार्यवाही करने के आरोप में कोतवाल नैनीताल को सस्पेंड कर दिया है।
उच्च न्यायालय में दूसरे पक्ष ने याचिका दायर कर कोतवाल के एक वर्ग विशेष के दबाव में काम करने की बात कही थी। न्यायालय के सम्मुख वर्चुअली आए डी.जी.पी. ने कहा कि, कोतवाल को सस्पेंड करते हुए मामले में जांच कराई जाएगी।
नैनीताल के हांडी मांडी क्षेत्र में दो दिन पूर्व जमीनी विवाद को लेकर अधिवक्ताओं और स्थानीय लोगों के बीच भिड़ंत हो गई थी और मामला मल्लीताल कोतवाली पहुंच गया था।
कोतवाल ने अधिवक्ता पक्ष की शिकायत तो ली लेकिन मुकदमा दर्ज नहीं किया। जबकी स्थानीय लोगों की शिकायत के बाद महिला से छेड़छाड़ और अभद्रता का मुकदमा दर्ज कर अधिवक्ता के भाई को हिरासत में ले लिया।
अधिवक्ता पक्ष इसके खिलाफ सोमवार को उच्च न्यायालय की शरण में चला गया। आज अधिवक्ता पक्ष की तरफ से बार के अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता अवतार सिंह रावत ने न्यायालय में बहस की।
न्यायालय ने छुट्टी पर चल रही एस.एस.पी.नैनीताल को वर्चुअली जबकी कोतवाल को न्यायालय में उपस्थित होने को कहा। न्यायालय को संबंधित अधिकारी द्वारा सूचित किया गया कि, एस.एस.पी.ट्रेसेबल नहीं हैं, जिस पर मुख्य न्यायाधीश आर.एस.चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा कि खण्डपीठ नाराज हो गई।
खंडपीठ ने डी.जी.पी को दोपहर में वर्चुअली उपस्थित होने को कहा। डी.जी.पी ने न्यायालय को बताया कि, नैनीताल के कोतवाल को तत्काल प्रभाव ने निलंबित करते हुए मामले की जांच बैठा दी गई है।
इस बीच घटना के दौरान कोतवाली में हिंदूवादी नारेबाजी की बात सुनकर भी न्यायालय नाराज दिखी। न्यायालय ने इस याचिका को निस्तारित कर दिया है।