महामारी के दौर में मुसीबत में पत्रकार, चुप्पी साधे संगठन

मुसीबत में पत्रकार, चुप्पी साधे संगठन। मुट्ठी भर जिंदादिल पत्रकार ही कर रहे हैं बीमार पत्रकारों की मदद

पत्रकार कोरोना वारियर घोषित हों और उनका इलाज सरकारी खर्च पर हो

– गुणानंद जखमोला
कोरोना में पिछलेे साल हमने अपना युवा पत्रकार साथी आशुतोष ममगाईं खोया तो इस साल वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र जोशी, युवा पत्रकार राहुल जोशी समेत आधा दर्जन पत्रकारों को खो चुकेे हैं। कई पत्रकार साथी अस्पतालों में जिंदगी के लिए जंग लड़ रहे हैं। इन पत्रकारों को भी एक अदद बेड के लिए बड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। कोरोना संक्रमित कई पत्रकारों की आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि, वो अस्पताल के एक दिन का खर्च भी नहीं उठा सकते। यहां तक कि आक्सीमीटर भी नहीं खरीद पा रहे हैं।

पत्रकार साथी अवधेश नौटियाल, कैलाश जोशी, चांद मोहम्मद, सुभाष गुसाईं, राहुल कोटियाल आदि कुछ ही गिनती के पत्रकार हैं जो कोरोना पीड़ित पत्रकारों और आम लोगों की मदद कर रहे हैं। आखिर पत्रकार संगठन, प्रेस क्लब आदि कब काम आएंगे? इनकी क्या भूमिका है? क्या ये पदाधिकारी और संगठन महज सरकार की चरणवंदना करने के काम आएंगे? इस प्रदेश के बड़े और दिग्गज पत्रकार कहलाने वाले कहां हैं, जो उमेश कुमार को ब्लैकमेलर कहते हैं। उमेश कुमार गांवों में आक्सीमीटर बांट रहे है और शहरों में आक्सीजन सिलेंडर दे रहे है। कोई बताएगा कि, सत्ता की चरणवंदना करने वाले पत्रकार कहां और किसकी मदद कर रहे हैं। जब मुसीबत में काम नहीं आना है तो ऐसे संगठनों का क्या करें? आखिर कब जागोगे तथाकथित पत्रकार संगठनों के बड़े पत्रकार? जब उनके परिजन या उन पर मुसीबत आएगी?

आज देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी समेत विभिन्न इलाकों में 100 से भी अधिक पत्रकार अस्पतालों में हैं। हमें एकजुटता के साथ पत्रकारों की मदद के लिए आगे आना चाहिए। पत्रकारों और उनके परिवारों को सामाजिक सुरक्षा मिलनी चाहिए। प्राथमिकता के आधार पर टीकाकरण, उनका कैशलेस इलाज और कैजुअलिटी पर 50 लाख मुआवजा मिलना चाहिए। लेकिन यह तभी संभव है जब हम इस मुद्दे पर एकजुटता के साथ सरकार से बात करें। वरना, यह सोच हमारे लिए घातक होगी कि जब हम कोरोना के शिकार होंगे तो अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर लेंगे। तब हो सकता है कि, आपका व्यक्तिगत प्रभाव आपको अस्पताल में एक अदद बेड भी नहीं दिलवा सकें।