प्राकृतिक आपदाएं: आखिर क्यों उत्तराखंड की पर्वतीय श्रृंखला हो रही है कमजोर
– खतरा अभी टला नहीं, अभी और आ सकती है प्राकृतिक आपदाएं- पर्यावरण वैज्ञानिक
रिपोर्ट- वंदना गुप्ता
हरिद्वार। उत्तराखंड के पहाड़ हमेशा ही संवेदनशील रहे हैं और कई बार उत्तराखंड में बड़ी प्राकृतिक आपदाएं आई है जिसमें कई लोगों ने अपनी जान गवाई है। आखिर क्यों उत्तराखंड के पहाड़ इतने संवेदनशील होते हैं और क्या कार्य किया जाए जिस कारण उत्तराखंड के पहाड़ों में होने वाली आपदाओं को रोका जा सकता है। क्या चमोली जिले में नंदा देवी गलेशियर टूटने से मची तबाही को टाला जा सकता था, पर्यावरण वैज्ञानिक इस त्रासदी को काफी बड़ी त्रासदी बता रहे हैं और आने वाले वक्त में भी इस तरह की बड़ी त्रासदी होने का खतरा जता रहे हैं। आखिर क्या है उत्तराखंड के पहाड़ों की सच्चाई देखिए हमारी इस खास रिपोर्ट में…
बताते चलें कि, उत्तराखंड के पहाड़ काफी संवेदनशील माने जाते हैं और इसी कारण कई बार प्राकृतिक आपदाओं के कारण लाखों लोगों ने अपनी जान गवाई है। मगर उसके बावजूद भी सरकारों द्वारा विकास के कार्यों के नाम पर पहाड़ों को खोकला किया जा रहा है और यही कारण है कि, लगातार उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाएं आ रही है। पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ बीडी जोशी का कहना है कि, जब मौसम परिवर्तन होता है उस वक्त दो ग्लेशियरों के बीच की चट्टानों में दरारे हो वह जलवायु परिवर्तन के साथ खिसक जाती है। क्योंकि उसके नीचे काफी पत्थर होते हैं यह निर्भर करता है कि, ग्लेशियर कितना बड़ा है और उसमें कितना पानी है ग्लेशियर धीरे-धीरे ही पिघलते हैं और इससे जितने भी बांध निर्माणधिन हो या बने हुए हैं उस पर असर पड़ता है।
क्योंकि पानी के साथ बड़े-बड़े पत्थर भी बहकर जाते हैं, जब ग्लेशियर टूटता है तो उसे रोकना नामुमकिन होता है। इनका कहना है कि, ग्लेशियर के आसपास अगर निर्माण कार्य के लिए ब्लास्ट किया गया हो तो इसे आस-पास की चट्टाने भी प्रभावित होती है। बारिश होने पर उसका पानी भी दरारों में भर जाता है और यह ग्लेशियर पर काफी दबाव बनाता है। इस कारण ग्लेशियर टूटकर गिरने लगते हैं इनका कहना है कि, बांध बनाने के लिए उसकी नींव काफी मजबूत होनी चाहिए और अगर नीव कमजोर होगी तो बांध के टूटने का खतरा बना रहता है। इस आपदा में टूटे गए बांध का विषय जांच का है कि, उसकी नींव मजबूत थी या नहीं। क्योंकि बांध की दीवारें 30 से 40 फुट मोटी होनी चाहिए वो पानी के प्रेशर को सह लेती है नहीं तो पानी का प्रेशर उसको तोड़ देगा।
पर्यावरण वैज्ञानिक विधि जोशी का कहना है कि, केदारनाथ और बद्रीनाथ तक भारत सरकार द्वारा सड़कों का निर्माण कराया जा रहा है। इसको लेकर कई बार चर्चा हो चुकी है कि, सड़कों का चौड़ीकरण कितना होना चाहिए क्योंकि हिमालय क्षेत्र काफी संवेदनशील है और इसकी पहाड़िया काफी कच्छी है। क्योंकि पहाड़ों पर काफी पर्यावरण का नुकसान हो रहा है। पिछले कई वर्षों में देखने को मिला है पहाड़ों पर पर्यावरण को बचाने के लिए कई आंदोलन किए गए हैं। इनका कहना है कि, पहाड़ों के निचले इलाकों में वन क्षेत्र होगा चाहिए और इस प्रकार की प्राकृतिक आपदा को रोकने में वन काफी कारगर साबित होते हैं।
इस आपदा से सरकार को शिक्षा लेनी चाहिए कि, पहाड़ों पर पर्यावरण को बढ़ाना है। साथ ही पहाड़ों पर सड़कों का चौड़ीकरण कितना करना है। जिससे पहाड़ों का कटाव कम किया जाए। उत्तराखंड में कई बांधों का निर्माण किया जा रहा है। उसके ऊपर सरकारों को विचार करना होगा कि, बांधों से कितना नुकसान हो सकता है। इनका कहना है कि, पहाड़ों के बीच सुरंगे बनाई जा रही है। इससे भी पहाड़ कमजोर हो रहे हैं। सरकारों को सुरंगे कम बनाकर सड़कों का निर्माण करना चाहिए, जिससे इस तरह की आपदाओं को रोका जा सके।
बीडी जोशी का कहना है कि, पिछले 10 वर्षों में देखने को मिला है कि, उत्तराखंड में कई प्राकृतिक आपदाएं आई है। इसमें केदारनाथ आपदा काफी बड़ी थी, आज की आपदा में भी देखने को मिल रहा है कि, प्राकृतिक ग्लेशियर के टूटने से हुई है। पहले इस तरह की प्राकृतिक आपदा कम होती थी, मगर अब लगातार प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही है और इसका सबसे बड़ा कारण है कि, पहाड़ों कई निर्माण कार्य किए जा रहे हैं। इस पर विचार करने की जरूरत है और तुरंत ही इन कार्यों पर रोक लगानी चाहिए और बहुत ही गहन अध्ययन के बाद ही कार्य को स्वीकृति देनी चाहिए।
बीडी जोशी का कहना है कि, यह त्रासदी काफी बड़ी हो सकती थी, मगर वक्त रहते ही अधिकारियों और सरकार ने इस त्रासदी को रोकने के लिए कार्य शुरू कर दिए थे और मौके पर तुरंत व्यवस्थाएं पहुंचा दी गई थी। साथ ही तमाम गंगा किनारों पर अलर्ट जारी कर दिया गया था। इसका काफी लाभ देखने को मिला है और इस कारण बड़ी विपदा को टाला गया है। जिसे ज्यादा जनहानि नहीं हुई मगर अभी पूरे आंकड़े पता नहीं चल सके हैं कि, कितनी जनहानि हुई है यह दो-तीन दिन में पता लग जाएगा
उत्तराखंड में लगातार प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही है। क्योंकि इस वक्त उत्तराखंड में कई विकास के कार्य किए जा रहे हैं और पहाड़ों में सुरंगे बनाई जा रही है और सड़कों का चौड़ीकरण का कार्य चल रहा है। साथ ही कई बांधों का भी निर्माण किए जा रहे हैं और यही कारण है कि, उत्तराखंड के पहाड़ काफी कमजोर हो रहे हैं और इसी कारण इस तरह की प्राकृतिक आपदाएं उत्तराखंड में आ रही है। जिससे लोगों को भी अपनी जान गवनी पड़ रही है। अब राज्य और केंद्र सरकार को भी इन घटनाओं से सबक लेना चाहिए। जितने भी निर्माण कार्य किए जा रहे हैं उसका पहले पूरा अध्ययन किया जाए, उसके बाद ही कार्य किए जाए। जिससे प्राकृतिक आपदाओं को रोका जा सके।