गुड़ न्यूज़: घर संभालने के साथ ही तत्परता से ड्यूटी कर रही महिला पीआरडी जवान

घर संभालने के साथ ही तत्परता से ड्यूटी कर रही महिला पीआरडी जवान

– कोरोना महामारी में लोगों को जागरुक कर सुरक्षित रखना बताई प्राथमिकता

रिपोर्ट- मनाेज नाैडीयाल
कोटद्वार। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के खिलाफ पूरा देश जंग लड़ रहा है। लॉकडाउन व अनलाॅक – 1 में सभी लोग घरों में रहकर कोरोना से बचने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं प्रांतीय रक्षक दल जवान दूसरों को कोरोना से बचाने के लिए खुद की जान दांव पर लगा रहे हैं। कोरोना काल में ही सही उन्हें भरपूर ड्यूटी मिल रही है और उनके घरों में चूल्हे जल रहे हैं। 500 की दिहाड़ी में वह पुलिस के हमराह बनकर फंसे लोगों के मददगार बन रहे है। युवा कल्याण विभाग के जिले में करीब 800 प्रशिक्षित जवान हैं। इनमें से करीब 350 जवान सक्रिय व बिल्कुल फिट हैं। शांति सुरक्षा की ड्यूटी में ये अपनी अहम भूमिका निभाते हैं।

सामान्य दिनों में इनके लिए ड्यूटी का टोटा रहता है। पर इन दिनों कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने के बाद देश में सतर्कता बरती जा रही है। लॉकडाउन व अनलाॅक 1 में पीआरडी जवान अपनी ड्यूटी पूरी सिद्दत से निभा रहे हैं।जिसमें महिला पीआरडी जवान भी पीछे नहीं है। महिला पीआरडी जवान आरती अपने परिवार की जिम्मेदारियों के साथ-साथ आमजन की सेवा में लगी है। वैसे यदि आरती की बात करें तो आरती बचपन से ही अपने भाई-बहिनों में बडे होने का फर्ज निभाती आई है। जिन पर यह कहावत बिल्कुल सही बैठती है कि “पंखों से कुछ नहीं होता हौंसलों से उड़ान होती है, मंजिल उसको मिलती है जिसके सपनों में जान होती है”

बता दें कि, आरती का पूरा परिवार ठीक-ठाक था, लेकिन बीमारी के कारण अचानक से पिता की मौत हो जाती है। मां भी सदमे से लकवे की मरीज होकर थोड़े अर्से बाद दम तोड़ देती है। बच जाते है दो भाई और एक स्वयं आरती। परिवार बिखर गया था कोई सहारा नहीं था बड़ी बहिन आरती के मासूम कंधे पर जिंदगी का भारी बोझ आ गया था। भाई इतने छोटे थे कि भाई उसे पाल नही सकते थे।बेचारी का खुद का तो कोई सहारा नही था। ऐसे में मामा लोगों ने हमदर्दी दिखाई और महिने में कुछ खर्चा देने लगे जिससे आरती घर चलाती व खुद के साथ छोटे भाईयों को पढाती। जी हां ये किसी हिंदी फिल्म की पटकथा नहीं है।

ये हकीकत है पौडी गढ़वाल के रिखडीखाल क्षेत्र के गांव भयांसू में निवासरत आरती की। आरती महज चौदह वर्ष की आयु में अनाथ हो गई थी। उसने पहले पिता को बीमारी के कारण मरते देखा फिर सदमें मे जाती मां को। इतना होने के बावजूद उसने हिम्मत नहीं हारी। अनाथ आरती ने सिलाई का काम सीखकर अपनी और अपने छोटे भाईयों की न केवल परवरिश की बल्कि आज उन्हें इस काबिल बना दिया है कि, यह लोग अपने पैरो में खडे हो चुके है। आरती बताती है कि, उसने बचपन से ही संघर्षों के साथ जीवन जीना सीखा है। वह बताती है कि कोरोना महामारी में लोगों को जागरुक कर सुरक्षित रखना ही उनकी पहली जिम्मेदारी है। अपने के लिए तो सब जीते है जो दूसरों के लिए जीता है वहीं इंसान कहलाने योग्य होता है।