श्रम कानून में बदलाव कर श्रमिकों के साथ छलावा करने का काम कर रही केंद्र व राज्य सरकार
– श्रम कानून में बदलाव करने के विरोध में आम आदमी पार्टी ने दिया एक दिवसीय धरना
– श्रम कानून में बड़ा बदलाव करना केंद्र व राज्य सरकारों का मजदूर विरोधी चेहरा
देहरादून। कोरोना संकट से निपटने के लिए देश में जारी लॉकडाउन को करीब 2 महीने होने जा रहे हैं, लॉकडाउन की वजह से उद्योग-धंधे ठप पड़े हैं। देश और राज्य की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से बर्बाद हो रही है। उद्योगों को पटरी पर लाने की आड में देश के छह राज्य अपने श्रम कानूनों में कई बड़े श्रमिक विरोधी बदलाव कर चुके हैं। श्रम कानूनों में बदलाव की शुरूआत राजस्थान की गहलोत सरकार ने काम के घंटों में बदलाव को लेकर की।
आज इसके विरोध में आप कार्यकर्ताओं ने एक दिन का उपवास रख एक दिवसीय धरना दिया। साथ ही उन्होंने कहा कि, राज्य सरकार द्वारा औद्योगिक विवाद अधिनियम और कारखाना अधिनियम, ‘पेमेंट ऑफ वेजेज एक्ट 1936’ सहित प्रमुख अधिनियमों में संशोधन किए हैं। ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 को 3 साल के लिए रोक दिया गया है। श्रमिकों के 38 कानूनों में बदलाव किये गए है, जिससे ILO कन्वेंशन 87), सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार (ILO कन्वेंशन 98), ILO कन्वेंशन 144 और साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत आठ घंटे के कार्य दिवस का घोर उल्लंघन हो रहा है।
राज्य सरकार हवाला दे रही है कि, कोविड-19 के चलते उद्योग सेक्टर अत्यधिक दबाव में है। जहां आज भी मुख्य हाईवे रोड मजदूर लोग देश के अलग-अलग प्रदेशों से अपने-अपने प्रदेश, गांव, शहर पैदल चलते देखे जा सकते हैं। जहां एक ओर कोरोना वायरस की मार से पूरा देश जल रहा है। वही दूसरी ओर राज्य सरकार उद्योगों की हिस्सेदारी को लेकर चिंतिंत नजर आ रही है। लेकिन श्रमिकों की उद्योगों में योगदान का कोई जिक्र नहीं किया जा रहा है।
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उद्योगपतियों को नियमों के जरिए उद्योग बढ़ावा देने के लिए श्रमिकों से अब 8 घंटे की जगह शिफ्ट को 12 घंटे का कर दिया गया है।उद्योगपतियों को यह छूट दी जा रही है कि, वह सुविधा के अनुसार पाली (शिफ्ट) में भी बदलाव कर सकते हैं। जिस प्रकार कानून में संशोधन किया गया है उससे यह प्रतीत होता है कि, राज्य सरकार का यह निर्णय पूर्णता: श्रमिक विरोधी है। इसे लागू होने से श्रमिकों के अधिकारों का हनन होगा। राज्य सरकार द्वारा लेबर कानून के बदलाव से मुख्य संभावित खतरे पैदा हो गए हैं।
● उद्योगों को सरकारी व यूनियन की जांच और निरीक्षण से मुक्ति देने से कर्मचारियों/श्रमिकों का शोषण बढ़ेगा।
● शिफ्ट व कार्य अवधि में बदलाव की मंजूरी मिलने से कर्मचारियों/श्रमिकों को बिना साप्ताहिक अवकाश के प्रतिदिन 8 घंटे से ज्यादा काम करना पड़ेगा जो कि 8 घंटे काम के एक लम्बी लड़ाई के बाद प्राप्त हुए थे।
● श्रमिक यूनियनों को मान्यता न मिलने से कर्मचारियों/श्रमिकों के अधिकारों की आवाज कमजोर होगी और पूंजीपतियों का मनमानापन बढ़ेगा। मजदूरों के काम करने की परिस्थिति और उनकी सुविधाओं पर ट्रेड यूनियन कि दखल/निगरानी खत्म हो जाएगी।
● उद्योग-धंधों को ज्यादा देर खोलने से वहां श्रमिकों को डबल शिफ्ट करनी पड़ेगी जिससे शोषण बढ़ेगा।
● पहले प्रावधान था कि जिन उद्योग में 100 या ज्यादा मजदूर हैं, उसे बंद करने से पहले श्रमिकों का पक्ष सुनना होगा और अनुमति लेनी होगी। अब ऐसा नहीं होगा इससे बड़े पैमाने पर श्रमिकों का शोषण बढ़ेगा। उद्योगों में बड़े पैमाने पर छंटनी और वेतन कटौती शुरू हो सकती है।
● अब कानून में छूट के बाद ग्रेच्युटी देने से बचने के लिए उद्योग, ठेके पर श्रमिकों की हायरिंग बढ़ा सकते हैं। जिससे बड़ी संख्या में बेरोजगारी बढ़ेगी।
● मालिक श्रमिकों को उचित वेंटिलेशन, शौचालय, बैठने की सुविधा, पीने का पानी, प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स, सुरक्षात्मक उपकरण, कैंटीन, क्रेच, साप्ताहिक अवकाश और आराम के अंतराल प्रदान करने के लिए बाध्य नहीं होंगे, जो कि श्रमिकों के हित में नहीं है।
आज उपवास व धरने मैं बैठने वाले प्रमुख कार्यकर्ता
प्रदेश संगठन प्रभारी डीके पाल, प्रवक्ता रविन्द्र सिंह आंनद, मीडिया प्रभारी राकेश काला, राजेश बहुगुणा, विशाल चौधरी, अभिषेक बहुगुणा, सोमेश बुदकोटी, राजू मौर्य, धर्मेंद्र बंसल, विजय पाठक आदि मुख्य रूप से बैठे थे।