दादा और पिता ने उड़ाई शहीद के नाम की खिल्ली
– शहीदों के नाम पर बस स्टैंड महज एक दिखावा….
– शहीदों की शहादत पर दिखावा करते परिजन….
देहरादून। यूँ तो राजनीतिक दौर में दिखावा और ढोंग करना सभी सरकारें बखूबी जानती है। शहीदों की शहादत पर उनके परिवार वालों और परिजनों को महज एक आश्वासन या दुनिया भर में दिखाने के लिए कुछ न कुछ कार्य करवा दिए जाते है। कहीं शाहिद स्मारक तो कहीं बस स्टैंड बना तो दिए जाते है। लेकिन उनकी देख-रेख का जिम्मा न तो कोई अपने सर लेता है और न ही शायद कभी कोई लेगा। क्योंकि, हमारे देश की राजनीति का स्तर इतना गिर चुका है जिसमें ऐसे छुटभैय्या नेता भरे हुए है, जिनको सिर्फ बड़े नेताओं की आवभगत करना आता है या फिर फ़ोटो खिंचवाकर सोशल मीडिया पर अपलोड करके अपनी घटिया राजनीति चमकना होता है।
पाठकों को बता दें कि, भोपाल पानी थानों रोड, रायपुर में एक बस स्टैंड जो की मौजूदा समय में झरझर अवस्था में है। आज अचानक वहाँ से गुजरते हुए इस बस स्टैंड पर नजर पड़ी तो देखने पर पाया कि, बस स्टैंड अन्दर से पूरी तरह गन्दा है, गन्दगी की वजह से उसमें मच्छर पनप रहे है, और साथ ही बड़ी-बड़ी झाड़ियां भी उग रखी है। जिस वजह से न तो कोई घनी दोपहरिया में बस स्टैंड के अन्दर बैठ सकता है और न ही बरसात के मौसम में इसके अन्दर खड़ा होकर बारिश से बचा जा सकता है।
सवाल यह उठता है कि, आखिर दिखावे के लिए क्यों यह निर्माण किये जाते है? आखिर क्यों शहीदों के नाम पर दिखावा करके उनके नाम मिट्टी में मिलाए जा रहे है।
गौरतालब है कि, इस बस स्टैंड का निर्माण खुद शहीद के दादा और पिता द्वारा किया गया था। शहीद पोते और बेटे के नाम को मिट्टी में मिलाने में जीत सिंह रावत (दादा) और मंगल सिंह रावत (पिता) खुद इसके जिम्मेदार है।
यहाँ सरकार का जिक्र इसलिए किया गया, क्योंकि, जब एक जवान शहीद होता है तब सरकार द्वारा शाहिद के परिजनों को मुआवजा और घर में से किसी एक व्यक्ति को उसकी जगह या अन्य किसी सरकारी विभाग में नौकरी दी जाती है। इसलिए सरकार का फर्ज बनता है कि, वह इन सभी बातों को ध्यान मे रखें और अगर शहीद के नाम पर सरकार से पैसा लेकर शहीद के परिजनों द्वारा ऐसा कोई निर्माण कार्य किया जाता है, जिससे उसकी शहादत और सम्मान में आने वाले समय में कोई सवाल उठे तो इस पर सरकार को उक्त के परिजनों के खिलाफ कार्यवाही या जुर्माना लागू करना चाहिए।