हाईकोर्ट की सख्ती। 12 साल से अस्थायी कर्मचारियों के भविष्य पर फैसला करे सरकार
नैनीताल। उत्तराखंड के सरकारी विभागों में उपनल और अन्य आउटसोर्सिंग एजेंसियों के माध्यम से वर्षों से काम कर रहे कर्मचारियों के नियमितीकरण का मुद्दा एक बार फिर अदालत की चौखट पर पहुंच गया है।
नैनीताल हाईकोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को कड़ा संदेश दिया है कि वह इन कर्मचारियों के भविष्य को लेकर जल्द निर्णय ले।
वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने कहा कि राज्य सरकार को पहले दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए आउटसोर्स कर्मियों के नियमितीकरण पर प्राथमिकता से विचार करना चाहिए।
अदालत ने यह टिप्पणी उस समय की, जब सरकार की ओर से बताया गया कि यह मामला राज्य कैबिनेट में विचाराधीन है और जल्द निर्णय लिया जाएगा।
मामला टिहरी जिले के पुनर्वास विभाग के कर्मचारियों से जुड़ा है, जो वर्ष 2013 से आउटसोर्स एजेंसी के माध्यम से कार्यरत हैं। इन कर्मचारियों ने कहा कि उन्हें मात्र ₹1700 मासिक मानदेय मिलता है और विभाग उनसे पूरा काम करवाता है।
उन्होंने बताया कि कई बार विभाग को नियमितीकरण के लिए आवेदन दिया गया, लेकिन अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया।
कर्मचारियों का कहना है कि हाईकोर्ट की खंडपीठ ने पहले ही राज्य सरकार को आदेश दिया था कि 2013 से कार्यरत आउटसोर्स कर्मियों के नियमितीकरण पर चार महीने के भीतर निर्णय लिया जाए, लेकिन इतने वर्षों बाद भी आदेश पर अमल नहीं हुआ।
सुनवाई के बाद अदालत ने निदेशक पुनर्वास विभाग को निर्देश दिए कि वे याचिकाकर्ताओं के प्रत्यावेदन पर गंभीरता से विचार कर जल्द फैसला करें। अदालत ने यह भी कहा कि लंबे समय से सेवा दे रहे कर्मियों को अनदेखा करना न्यायोचित नहीं है।
यह याचिका टिहरी निवासी सुबोध कुरियाल और अन्य आउटसोर्स कर्मियों ने दाखिल की है, जो वर्ष 2013 से पुनर्वास विभाग में कार्यरत हैं।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि वर्षों से सरकारी कार्यों में योगदान देने वाले आउटसोर्स कर्मियों की अनदेखी अनुचित है। सरकार को उनके नियमितीकरण पर ठोस नीति बनानी होगी ताकि राज्य में कार्यरत हजारों कर्मियों को राहत मिल सके।

