बड़ी कार्यवाही: पाकिस्तानी शरणार्थियों को आवंटित भूमि पर बने पेट्रोल पंप का लाइसेंस निरस्त

पाकिस्तानी शरणार्थियों को आवंटित भूमि पर बने पेट्रोल पंप का लाइसेंस निरस्त

देहरादून। राजधानी दून में जिलाधिकारी (डीएम) सविन बंसल भूमाफिया पर कड़े प्रहार कर रहे हैं। अब जिलाधिकारी का डंडा पूर्वी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों (रिफ्यूजी) के लिए प्रेमनगर क्षेत्र में आवंटित सरकारी भूमि के अवैध कब्जे पर चला है।

यहां सरकारी भूमि पर खड़े किए गए आईओसी के पेट्रोल पंप का लाइसेंस मंगलवार को निरस्त कर दिया गया है। इसके साथ ही पेट्रोल पंप को सील करने की प्रक्रिया भी शुरू करा दी गई है।

जिलाधिकारी सविन बंसल ने करवाया सरकारी भूमि पर बने पेट्रोल पंप का लाइसेंस निरस्त।

प्रेमनगर के मौजा आर्केडिया ग्रांट में सरकारी भूमि पर करीब एक दशक से संचालित किए जा रहे केसरी फिलिंग स्टेशन की शिकायत प्रेमनगर निवासी तेजेंद्र सिंह ने अधिवक्ता आकाश यादव के माध्यम से दर्ज कराई थी। जिसमें बताया गया कि पेट्रोल पंप की भूमि की रजिस्ट्री प्रेमनगर क्षेत्र के आर्केडिया ग्रांट के खसरा नंबर 191 पर दर्शाई गई है।

जबकि इसका निर्माण पाकिस्तानी शरणार्थियों के लिए जिला सहायता एवं पुनर्वास कार्यालय की ओर से आवंटित भूमि पर कर दिया गया। जिसका स्वामित्व राजस्व विभाग के पास है।

सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे को देखते हुए जिलाधिकारी सविन बंसल ने उपजिलाधिकारी सदर और जिला पूर्ति अधिकारी से निरीक्षण आख्या तलब की थी।

जिसके क्रम में नायब तहसीलदार, पूर्ति निरीक्षक और राजस्व उपनिरीक्षक ने भूमि की जांच की। पता चला कि पेट्रोल पंप सरकारी भूमि पर अतिक्रमण कर खड़ा किया गया है।

लिहाजा, तत्काल प्रभाव से भूमि से पंप संचालक चरणजीत भाटिया का नाम खारिज करते हुए सरकारी आबादी (रिफ्यूजी कैंप) दर्ज की गई। वहीं, जिलाधिकारी के आदेश के क्रम में पंप की एनओसी निरस्त करने के साथ ही लाइसेंस भी रद्द कर दिया गया है।

पंप को विधिवत सील करने के लिए संस्तुति विस्फोटक नियंत्रक और इंडियन आयल कारपोरेशन (आइओसी) को भेजी गई है।

रिफ्यूजियों को आवंटन के बाद रिक्त भूमि पर गिद्ध दृष्टि

पूर्वी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के लिए जिला सहायता एवं पुनर्वास कार्यालय (डीआरआरओ) ने आर्केडिया ग्रांट में बड़े पैमाने पर भूमि आवंटित की थी।

आवंटन के बाद भी राजस्व विभाग/रिफ्यूजी कैंप के नाम पर जमीन शेष थी। लेकिन, इसकी सुध न लिए जाने पर 11 हजार 700 वर्ग गज भूमि हड़प ली गई।

25 करोड़ रुपए से अधिक के बाजार भाव वाली इस भूमि को फर्जी ढंग से कई बार बेचा गया। गंभीर यह कि राजस्व विभाग के कार्मिकों की मिलीभगत से क्रेताओं के नाम पर दाखिल खारिज तक करवा दिया गया।

पहली बार यह प्रकरण वर्ष 2010 में उजागर हुआ था। तब तत्कालीन उपजिलाधिकारी मनोज कुमार ने जांच में पाया था कि तत्कालीन पेशी मुहर्रिर संजय सिंह ने राजस्व अभिलेखों में छेड़छाड़ कराकर सरकारी भूमि को स्थानीय व्यक्तियों के नाम दर्ज करा दिया है।

तब पेशी मुहर्रिर पर कार्रवाई भी की गई थी। हालांकि, इसके बाद भी जमीन बिकती रही। पूर्व में तैनात थे जिलाधिकारी डा बीवीआरसी पुरुषोत्तम और सी रविशंकर कुछ दाखिल खारिज निरस्त भी किए गए, मगर पेट्रोल पंप पर कार्रवाई नहीं की गई थी।