एक्सक्लूसिव: आखिर राजीव जैन और उनसे जुड़े बिल्डर के घर क्यों हुई छापेमारी। पढ़ें….

आखिर राजीव जैन और उनसे जुड़े बिल्डर के घर क्यों हुई छापेमारी। पढ़ें….

देहरादून। निकाय चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस नेता राजीव जैन और उनसे जुड़े बिल्डर मानस लुंबा के ठिकानों पर आयकर विभाग की ताबड़तोड़ छापेमारी के राजनीतिक कारण तलाशे जा रहे हैं।

कांग्रेस के तमाम नेता इसे चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं, लेकिन साथ ही वह जवाब यह भी तलाश रहे हैं कि राजीव जैन ही क्यों? क्या वह कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के करीबी हैं या अब उनसे राजीव की दूरी बढ़ गई है।

दरअसल, यह सवाल इसलिए भी गूंज रहा है, क्योंकि राजीव जैन पिछले तीन से साढ़े तीन सालों से कंग्रेस संगठन से दूरी बनाए हुए हैं। वह कांग्रेस के तमाम कार्यक्रमों से भी अप्रत्याशित रूप से अनुपस्थित रहे।

दूसरी तरफ हरीश रावत सत्ता से दूरी के बाद भी निरंतर राजनीतिक गलियारों में अपने अंदाज में सक्रिय रहे हैं। लोकसभा चुनाव में जब हरिद्वार सीट से हरीश रावत के पुत्र वीरेंद्र रावत चुनाव लड़ रहे थे, तब भी राजीव जैन की कमी खलती रही।

हरीश रावत के मुख्यमंत्री रहते हुए राजीव जैन सलाहकार की भूमिका में भी नजर आए और उन्हें हरदा का खास माना जाता था। इस टैग को लेकर राजीव जैन भी खासे उत्साहित नजर आते थे।

फिर ऐसा क्या हुआ कि राजीव अचानक हरीश से दूर होते चले गए। दूसरी तरफ अपनी राजनितिक महारत के चलते हरदा विपक्ष में रहते हुए भी सत्ता पक्ष को प्रभावित करते रहे।

हाल के केदारनाथ चुनाव में जब हरक सिंह रावत ने वहां से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की तो प्रदेश कांग्रेस के वट वृक्ष हरदा का उन्हें अपेक्षित साथ नहीं मिल पाया। जिस कारण समीकरण बदले, भाजपा पूरे जोश के साथ चुनाव लड़ी और सीट कांग्रेस के हाथ से चली गई।

इस चुनाव में भी राजीव और हरीश का मेल नहीं हो सका। इस दौरान राजीव जैन राजनीती से प्रत्यक्ष रूप से अलग अपने कामकाज के मशगूल थे और आयकर का छापा पड़ गया।

बेशक समाचारों की सुर्खियों में राजीव जैन को हरीश रावत का करीबी बताया जा रहा हो, लेकिन यह प्रगाढ़ता अलग ही दिशा की प्रगाढ़ता की तरफ भी बढ़ती दिख रही है।

ऐसे में राजनीती के धुरंदर भी सिर खुजाते दिख रहे हैं कि जिस वक्त हरीश रावत से सरकार का कोई सीधा टकराव नहीं दिख रहा है, उस समय निकाय चुनाव से ठीक पहले दिल्ली की टीम का दून में धमकना क्या सामान्य है?

राजनीती के कुछ घाघ इसे हरदा से अलगाव के रूप में भी देख रहे हैं। लेकिन, यह कैसे संभव है। बिना आका की हामी के तो बिलकुल भी नहीं। यह राजनीती है, कान घुमाकर भी पकड़े जाते हैं।

यह भी कम संयोग नहीं कि जो भी हरदा जैसे सुगढ़ और सधी हुई शख्सियत के करीब रहा हो, वह चुंबक के समान ध्रुव की भांति अलग हो जाता है।

फिर चाहे बात हरीश रावत सरकार में सर्वाधिक पावरफुल रहे रंजीत रावत की हो, उनके कार्यकाल में प्रदेश अध्यक्ष रहे किशोर उपाध्याय की हो, हरीश धामी या पूर्व विधायक मयूख महर की हो।

खैर, यह बात तो राजनीतिक हलकों से गूंज रही चर्चाओं की है। बाकी राजीव जैन और उनसे जुड़े व्यक्तियों की बही कितनी सही है यह सच्चाई देर सबेर सामने आ ही जाएगी। लेकिन, इस रेड को सामान्य नहीं माना जा सकता।

क्योंकि, इसे पूरी तरह गोपनीय रखने के लिए सुरक्षा के लिए स्थानीय पुलिस की जगह सीआईएसएफ की हथियारबंद टीम उतारी गई थी और आयकर के स्थानीय अधिकारियों को भी इसमें शामिल नहीं किया गया। सभी कुछ दिल्ली से आए आयकर अधिकारियों ने अपने मुताबिक तय किया।