BKTC के वायरल पत्र पर विवाद
बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) के अध्यक्ष अजेंद्र अजय के सोशल मीडिया में वायरल हो रहे पत्र और विभागीय अधिकारियों की रिपोर्ट पर मामला गर्माता जा रहा है।
मामला बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति में कार्यरत एक कार्मिक राकेश सेमवाल की वरिष्ठता व एसीपी विवाद से जुड़ा हुआ है।
इस पूरे मामले में अध्यक्ष अजेंन्द्र अजय शासनस्तर पर समिति बनाकर जांच कराना चाहते हैं तो वहीं कार्मिक राकेश सेमवाल का कहना है कि, अध्यक्ष को गुमराह कर उन्हें झूठा फंसाया जा रहा है। वह हर प्रकार की जांच को तैयार हैं।
मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र ने 14 नवम्बर को प्रदेश के मुख्य सचिव को एक पत्र लिख कर समिति में कार्यरत एक कार्मिक राकेश सेमवाल की वरिष्ठता व एसीपी विवाद को लेकर शासन स्तर से वित्त, कार्मिक व न्याय विभाग की एक संयुक्त समिति गठित कर जांच कराने का अनुरोध किया है।
पत्र में कहा पत्र में बीकेटीसी अध्यक्ष ने लिखा है कि, उक्त कार्मिक की वरिष्ठता व एसीपी विवाद को पूर्व में देवस्थानम बोर्ड के समय तत्कालीन मुख्य कार्याधिकारी व आयुक्त गढ़वाल के साथ ही तत्कालीन वित्त नियंत्रक ने निस्तारित कर दिया था और इसकी जानकारी उक्त कर्मचारी को भी दे दी थी।
इसके बावजूद उक्त कर्मचारी द्वारा लगातार विभिन माध्यमों से अपनी पदोन्नति के लिए दवाब बनाया जा रहा है और इसके लिए कभी वकील के माध्यम से नोटिस भेज कर और कभी ट्रिब्यूनल का सहारा लिया जा रहा है। पत्र में यह भी कहा गया है कि उक्त कर्मचारी बीकेटीसी द्वारा की गयी कार्यवाही से संतुष्ट नहीं लगता है।
उक्त कार्मिक के रुख से बीकेटीसी के कामकाज में अनावश्यक गतिरोध पैदा हो रहा है। इसलिए शासन स्तर से ही इस प्रकरण की जांच की जाए। सोशल मीडिया में वायरल हुए पत्र को लेकर जारी एक बयान में बीकेटीसी के अध्यक्ष अजेन्द्र अजय का कहना है कि कार्मिक के वेतन विसंगति व पदोनत्ति से जुड़ा मामला विभिन्न माध्यमों से उनके संज्ञान में आया था।
उनके द्वारा जब इस पूरे प्रकरण की छानबीन की गई तो जानकारी मिली कि पूर्व में जब उत्तराखंड देवस्थानम बोर्ड था तब तत्कालीन मुख्यकार्याधिकारी और गढ़वाल कमिश्नर के स्तर से भी इस पूरे मामले का परीक्षण किया गया था। इसके साथ ही तत्कालीन फाइनेंस कंट्रोलर ने भी इस मामले का परीक्षण कर इसका निस्तारण किया था।
लेकिन जब शासनस्तर से भी इस मामले में कई पत्राचार चल रहे थे तो मैने शासन को ही अनुरोध किया है कि वह अपने स्तर से इस मामले का परीक्षण कराये। वित्त विभाग, कार्मिक और न्याय विभाग की संयुक्त समिति बनाकर इस मामले का परीक्षण कराया जाये।
वहीं इस पूरे मामले में कार्मिक राकेश सेमवाल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि माननीय अध्यक्ष जी का बिना कागजों के बोलना सरासर गलत है। हो सकता है अध्यक्ष जी को विभाग ने कुछ ऐसी जानकारी दी हो इस वजह से वह बोल रहे हों। अगर वह मुझसे मेरे बारे में पूछेंगे तो मैं सारी बात बता दूंगा।
अध्यक्ष जी ने पत्र के माध्यम से मेरे पर जो आरोप लगाये हैं वह उनकी जांच करा सकते हैं। मेरी जो प्रथम नियुक्ति हुई है वह मैनेजर पद पर हुई है। उसके बाद मुझे उच्च वेतनमान 5150-8000 का लाभ मिला। उत्तराखंड में प्रचलित नियमों के अनुसार उसके बाद मुझे एसीपी का प्रथम और द्वितीय लाभ मिला है।
इसके बाद भी अध्यक्ष अजेन्द्र अजय जी को अगर किसी प्रकार की कोई शंका है तो वह मेरी जांच करा सकते हैं। मैं इसके लिए न्यायालय भी जाउंगा, ट्रिब्यूनल भी जांउगा और सचिवालय में भी अपनी बात रखूंगा।
कार्मिक राकेश सेमवाल ने कहा ट्रिब्यूनल में मैने सीओ महोदय से बार-बार प्रार्थना कि इन्होंने पीपल कोटी में प्रबंधक पद पर मेरा तबादला कर दिया था जो सही नहीं था।
मैने कहा कि मुझे ओएसडी पद त्रिवेणीघाट, नैनीताल या हिमालय की चोटियों पर भेंज दें मैं जाने के लिए तैयार हूं। मैं प्रबंधक नहीं हूं मुझे ओएसडी पद पर ही तैनाती दी जाये। इन्होंने मेरा बेतन रोक दिया। जिसके बाद मुझे ट्रिब्यूनल का सहारा लेना पड़ा। वहां मैंने अपनी बात रखी जिसके बाद मेरे वेतन आहरण के आदेश ट्रिब्यूनल ने जारी कर दिये हैं।
राकेश सेमवाल की नियुक्ति वर्ष 1996 में सीजनल अनुचर/चौकीदार के रूप में हुयी थी। नियुक्ति के एक वर्ष बाद ही सेमवाल को व्यवस्थापक/अवर लिपिक के पद पर नियुक्ति दे दी गयी। इसके बाद वर्ष 2006 में सेमवाल को पदोन्नति देते हुए प्रवर लिपिक बना दिया गया।
वर्ष 2011 में उत्तराखंड शासन ने मंदिर समिति के व्यवस्थापकों के लिए गढ़वाल मंडल विकास निगम के प्रबंधकों की तर्ज पर वेतनमान स्वीकृत किया। उसके बाद तत्कालीन मुख्य कार्याधिकारी ने सेमवाल को 5400 का ग्रेड पे दे दिया गया।
विभागीय रिपोर्ट के मुताबिक उसकी शैक्षिक योग्यता मात्र इंटरमीडियट है। वहीं कार्मिक राकेश सेमवाल ने पत्र में अपने उपर लगे आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहा कि सबकुछ नियमों के अनुसार हुआ है। उनकी शैक्षिक योग्यता इंटरमीडियट नहीं स्नातक है।
वहीं इस पूरे मामले में गेंद अब शासन के पाले में है। देखना होगा कि शासनस्तर पर इस पूरे मामले में क्या निर्णय होता है।