उत्तराखंड के इस क्षेत्र में बैठकी और खड़ी होलियों का अलग अंदाज़। मची धूम

उत्तराखंड के इस क्षेत्र में बैठकी और खड़ी होलियों का अलग अंदाज़। मची धूम

रिपोर्ट- सूरज लडवाल
चम्पावत के पाटी विकासखण्ड मुख्यालय सहित क्षेत्र के तमाम स्थानों में इन दिनों बैठकी होली की धूम मची हुई है। इसी सिलसिले में विकासखण्ड स्थित मष्टा संगीत कला समिति की साप्ताहिक होली का आयोजन समिति के सचिव महेश चन्द्र भट्ट के आवास पर किया गया।

कार्यक्रम का शुभारंभ सामाजिक कार्यकर्ता राजेन्द्र पुनेठा ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। सामूहिक गणेश वन्दना ” प्रथम सुमिर श्री गणेश, गौरी सुत प्रिय महेश ” के पश्चात बैठकी होली फ़नकार सीएस मौनी ने राग धमार में ” डमर ढप बाजन लागो री, ब्रज मोहन के द्वार ” होली का गायन किया।

इसी सिलसिले में संगीताचार्य केसी भट्ट ने राग यमन में ” संय्या नहीं घर, अबके न खेलूंगी होली ” से नायिका के विरह का वर्णन किया। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए प्रदीप पचौली ने राग काफ़ी में ” रेशमी अंगिया मेरी , श्याम हाथ न लगाओ ” की प्रस्तुति देकर महफ़िल में रौनक भर दी। कार्यक्रम में इसके बाद पंकज पचौली ने राग काफी में ” गाओ सुहागिन होली , फागुन ऋतु शुभ अलबेली ” से महफ़िल में चार चाँद लगाए।

सौरभ अवस्थी ने राग साहाना में ” आज पिया के गरवा लगूंगी , कलंक लगे सो लगे री ” होली गायन कर लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया। विशाल पचौली ने ” अब साँझ भई घर आओ लला, मुरली ना बजाओ विहारी ” की प्रस्तुति देकर श्रोताओं में भक्ति भाव की चेतना का संचार किया।

देर रात तक चली इस महफ़िल में शिक्षक रवीश पचौली, नरेन्द्र गहतोड़ी, एमएन पचौली ने संगीत स्वर लहरियों का आनन्द लिया। तबले में योगेश पचौली, प्रियांशु भट्ट, सौरभ और विशाल ने अपनी उंगलियों का जादू बिखेरा।

महाशिवरात्री को शिव मन्दिर रौलमेल में होगा खड़ी होली का आयोजन

दशकों से विकासखण्ड के नजदीकी शिवमन्दिर रौलमेल में महाशिवरात्री के दिन सायं करीब चार बजे से खड़ी होली का आयोजन किया जाता आ रहा है। इसी सिलसिले में इस वर्ष भी परम्परा और रीति रिवाजों को जीवंत रखने के लिए क्षेत्रीय लोग खड़ी होली गायन का आयोजन करेंगे।

बताते चलें कि, महाशिवरात्री के अवसर पर शिव मन्दिर में प्रातः करीब 6 बजे विधिवत पूजा अर्चना कर मन्दिर को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाता है। जिसके बाद मंदिर के नजदीकी कणकेश्वर त्रिवेणी में श्रद्धालु स्नान कर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं और उसके बाद ही शाम को खड़ी होली का गायन किया जाता है।