दिलों को झकझोरने की दास्तां “1232 किमी”, देखें जरूर। डिजनी हाॅटस्टार पर प्रवासी मजदूरों की घर वापसी की कहानी

दिलों को झकझोरने की दास्तां “1232 किमी”, देखें जरूर। डिजनी हाॅटस्टार पर प्रवासी मजदूरों की घर वापसी की कहानी

– प्रख्यात पत्रकार और निर्देशक विनोद कापड़ी ने डाक्युमेंट्री में उकेरा लाॅकडाउन का दर्द

– गुणानंद जखमोला
रेंगे तो वहीं जाकर, जहां पर जिंदगी है, गुलजार की इन पंक्तियों को यथार्थ में उतारने का काम किया है, वरिष्ठ पत्रकार और फिल्ममेकर विनोद कापड़ी ने। लाॅकडाउन में प्रवासी मजदूरों के दर्द को उकेरती “1232 किमी” डाक्युमेंट्री निश्चित तौर पर एक दस्तावेज है कि, किस तरह से कोरोना काल में हुए लाॅकडाउन ने लाखों मजदूरों को सड़को पर ला दिया। भूख, बेकारी और बेबसी के साथ अपने गांव लौट कर मरने की जिद लिए ये मजदूर दिन-रात सड़क पर चले। कोई पैदल तो कई साइकिल पर। कई लोगों को ट्रक ने कुचला तो कुछ को बसों ने। कुछ ट्रैन से कट मरे।

इस दर्द को सचे मायने में एक संवेदनशील इंसान ही समझ सकता है। विनोद कापड़ी बड़े और नामी पत्रकार के साथ बड़े फिल्ममेकर हैं और इससे भी अधिक वो एक अच्छे इंसान हैं। यही कारण है कि, जब हम लोग अपने घरों में दुबके हुए थे, वो वैगन आर में अपने एक साथी के साथ सड़क पर मीलों-मील चल रहे प्रवासी मजदूरों के दर्द को न सिर्फ कैमरे में कैद कर रहे थे बल्कि उनके घावों को मरहम लगा रहे थे। ये डाक्युमेंट्री महज दो लोगों ने ही शूट की है तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।

गाजियाबाद से बिहार के सहरसा तक एक हजार किलोमीटर से भी अधिक तक सात लोगों का साइकिल से इस सफर का फिल्मांकन किया गया है। विनोद कापड़ी के मुताबिक उन्होंने तीन चरणों में लाॅकडाउन का फिल्मांकन करने की कोशिश की। दिल्ली से कानपुर जा रही एक मां और उसकी तीन बेटियों को भी कवर किया। लेकिन रास्ते में वो बिछड़ गये। वो कहते हैं कि, ये दर्दनाक यात्रा थी। हजारों लोग सड़कों पर थे। किसी को खाना नहीं मिल रहा था तो कोई बीमारी में भी चल रहा था कि, अपने गांव पहुंच सके।

यह विनोद कापड़ी जैसे बड़े दिल वाले का काम है कि, फिल्म से हुई कमाई का एक बड़ा हिस्सा सातों मजदूरों को दिया गया। विनोद उन्हें अपने परिवार का हिस्सा मान रहे हैं। हमें याद है कि, राजस्थान के नागौर में कूड़े के ढेर में मिली नवजात को भी विनोद ने अपना लिया था। हालांकि वो बच नहीं पायी। विनोद ने ऐसा कर लाखों लोगों का दिल जीता था। उन्होंने लाॅकडाउन पर अंग्रेजी और हिन्दी में किताब लिखी है, जिसकी राॅयल्टी भी इन सातों मजदूरों को दी जाएगी।