उत्तराखंड में बेरोजगारी चरम पर, जिला सेवायोजन कार्यालयों में पंजीकृत हैं नौ लाख बेरोजगार
– प्रदेश में 20 साल में भी नहीं बनी रोजगार नीति। शिक्षित होने पर यूं ही इतरा रहा उत्तराखंड
– राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव और नौकरशाहों के निकम्मेपन का खमियाजा भुगत रहे युवा।
– गुणानंद जखमोला
उत्तराखंड राज्य अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने गत वर्ष नवम्बर माह में 854 पदों पर आवेदन मांगे थे। इसकी परीक्षा मई में आयोजित होनी है, लेकिन यह परीक्षा टल सकती है। कारण, इन पदों के सापेक्ष में 2 लाख 19 हजार उम्मीदवार हैं। अब आयोग को परीक्षा के लिए केंद्र ही पर्याप्त केंद्र नहीं मिल रहे, साथ ही अन्य इंतजाम करने में भी दिक्कत आ रही है। यह है बेरोजगारी का आलम। प्रदेश के सभी जिला सेवायोजन कार्यालयों में लगभग नौ लाख बेरोजगार पंजीकृत हैं। कोरोना काल में होप पोर्टल पर 16 हजार बेरोजगारों ने पंजीकरण कराया।
2019 के अंत में केंद्रीय श्रम बल सर्वेक्षण में प्रदेश में बेरोजगारी दर करीब 14 प्रतिशत आंकी गई है। 2017 में प्रदेश के नियोजन विभाग की ओर से किए गए सर्वे में सामने आई बेरोजगारी दर से यह करीब तीन गुना अधिक है। 2003-04 में यह दर मात्र 2.1 प्रतिशत थी। रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2019 में प्रदेश में बेरोजगारी दर 14.2 पाई गई। उस समय बेरोजगारी का राष्ट्रीय औसत 9.2 प्रतिशत था। कुल काम करने वाले लोगों का प्रतिशत भी मात्र 23 पाया गया। इस हिसाब से प्रदेश में 2003-04 की तुलना में बेरोजगारी सात गुना हो गई। सरकारों ने हमें साक्षर दिखाने में कोई गुरेज नहीं किया। इतराए कि केरल के बाद हम सबसे अधिक साक्षर हैं, लेकिन रोजगार नीति ही नहीं बनाई। फिर पलायन तो होगा ही।
श्रम मंत्री हरक सिंह रावत ने भी विधानसभा में स्वीकार किया कि, प्रदेश में रोजगार नीति नहीं है। प्रधानमंत्री कौशल विकास केंद्रों, आईटीआई, पालीटेक्निक समेत अधिकांश की माली हालत और संसाधन खस्ताहाल हैं। जब प्रदेश में रोजगार नीति नहीं होगी। राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण होगा। नेता, अफसर, ठेकेदार और दलालों की चैकड़ी भ्रष्टाचार में जुटी होगी तो रोजगार की सुध भला कौन लेगा?