कुम्भ का आगाज, महानिर्वाणी अखाड़े की धर्मध्वजा स्थापित

कुम्भ का आगाज, महानिर्वाणी अखाड़े की धर्मध्वजा स्थापित

– मेला प्रशासन युवा पीढ़ी को कुंभ से जोड़ने का करेगा कार्य

रिपोर्ट- वंदना गुप्ता
धर्म नगरी हरिद्वार कुम्भ के रंग में रंग चुकी है। सभी अखाड़ो के साधु संतों ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है। हरिद्वार के कनखल स्थित महानिर्वाणी अखाड़े की छावनी में पूरे विधि विधान के साथ धर्मध्वजा की स्थापना की गई। इस दौरान जिलाधिकारी सी रविशंकर, मेलाधिकारी दीपक रावत, आईजी कुम्भ संजय गुंज्याल समेत अखाड़ा परिषद के महामंत्री हरी गिरी समेत बड़ी संख्या में साधु संत मौजूद रहे।

महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव रविंद्रपुरी महाराज ने कहा कि, महानिर्वाणी अखाड़े के इष्ट देव कपिल मुनि की धर्म ध्वजा स्थापित की गई है। धर्म ध्वजा को वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ ब्राह्मणों द्वारा शुभ मुहूर्त में इसे स्थापित किया गया। इस कार्यक्रम में अखाड़े के सभी पंच श्री महंत सभी सचिव के साथ मेला प्रशासन के अधिकारी मौजूद रहे। कोरोना महामारी को देखते हुए हमारे द्वारा सभी गाइडलाइन का पालन किया गया। किस धर्म की ध्वजा कभी रुकती नहीं है। उसको स्थापित करना अनिवार्य था। कुंभ की सुचारू रूप से व्यवस्था शासन-प्रशासन और संतो के सहयोग से चलें, उसकी शुरुआत आज हमारे द्वारा की गई है। आज से हमारा विधिवत कुंभ शुरू हो गया है।

वही मेलाधिकारी दीपक रावत ने कहा कि, महानिर्वाणी अखाड़े की धर्म ध्वजा की स्थापना उनकी छावनी में हुई है। धर्म ध्वजा की लकड़ियां हमारे द्वारा देहरादून के छिद्दरवाला से लाई गई। अब सभी अखाड़े धर्म ध्वजा स्थापित कर रहे हैं। धर्म ध्वजा स्थापित होने के बाद सभी अखाड़ों की कुंभ मेले की शुरुआत हो रही है। आने वाले सभी कार्य हमारे द्वारा विधिवत किए जाएंगे। सभी अखाड़ों की पेशवाई की तिथियां तय हो चुकी है। उसकी भी हमारे द्वारा तैयारियां की जा रही है। इनका कहना है कि, यह बहुत ही आनंद का विषय है। क्योंकि मुझे पहली बार सनातन परंपरा से जुड़ने का मौका मिला और हमारी आने वाली युवा पीढ़ी को इसकी जानकारी होनी चाहिए। इसके लिए हमारे द्वारा वेबसाइट बनाई जा रही है। उसमें हम कुंभ के अलग-अलग रूप के वीडियो डालेंगे। जिससे वो भी इस को जान सकें।

सभी अखाड़ों द्वारा धर्म ध्वजा स्थापित की जा रही है। धर्म ध्वजा स्थापित होने के बाद अखाड़ों का विधिवत कुंभ शुरू हो जाता है। धर्म ध्वजा स्थापित करने की सभी अखाड़ों में सदियों पुरानी परंपरा है। जिसको आज भी निर्वाह किया जा रहा है।