दुर्भाग्य: हिमालयी राज्य में साइंस पालिसी नहीं

हिमालयी राज्य में साइंस पालिसी नहीं

– चिन्दी चोर नेता खाते रहे कमीशन, हिमालय रोता रहा
– हमने पैसे की माया समझी, हिमालय को नहीं

– गुणानंद जखमोला
ऋषिगंगा की जलप्रलय में 200 से भी अधिक लोगों की जलसमाधि हो गयी। दो प्रोजेक्ट पर लगभग 4000 करोड़ डूब गये। आज हमारी आर्मी, आईटीबीपी, पुलिस, एनडीआरएफ आदि जवान सुरंग में फंसे लोगों को बचाने के लिए जंग लड़ रहे हैं। हर बार आपदा में ये लोग देवदूत बनकर आते हैं। इनको सलाम। पर सरकारों को लानत है। जब चार हजार करोड़ की योजनाएं बने तो क्या हिमालय की दृष्टि से यह पता नहीं लगना चाहिए कि ये प्रोजेक्ट कितने दीर्घकालिक होंगे? इनका हिमालय पर क्या असर होगा? प्रकृति हमें इसके बदले में कया देगी?

ऋषिगंगा की उस संकरी वैली में एक भी अध्ययन नहीं किया जा सका। यहां से ट्रैकिंग संभव नहीं है और वाडिया के वैज्ञानिकों का जो दल गया है वो लाता होते हुए ग्लेशियर तक पहुंचेगा। वैज्ञानिकों का भी कहना है कि, यदि पावर प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले हिमालयी शोध भी हो जाता तो आपदाओं से बचा जा सकता है। सही बात यदि आप तीन हजार करोड़ का एक प्रोजेक्ट ला रहे हैं तो शोध के लिए एक-दो करोड़ क्यों नहीं खर्च करते? मुआवजा देने से अच्छा है कि, पहले शोध हो जाएं, ताकि मुआवजा देने की नौबत ही न आएं।

सच तो यह है कि, केदारनाथ आपदा के बाद भी सरकार नहीं जागी। हिमालय की छाती आज भी अवैैज्ञानिक तरीके से खोदी जा रही है। गौरा देवी के ऐतिहासिक गांव रैणी के लोग ऋषिगंगा प्रोजेक्ट के बम धमाकों से परेशान थे। स्वर उठे भी लेकिन सत्ता के गलियारे में इन स्वरों को सुनेगा कौन? प्रदेश में 200 से भी अधिक पावर प्रोजेक्ट हैं। निशंक के समय इन परियोजनाओं पर सवाल उठे थे, लेकिन पिछले दस साल में हुआ कुछ भी नहीं। हमारे चिन्दीचोर नेता तो कमीशन पर ध्यान देते हैं विज्ञान पर नहीं। केदारनाथ आपदा के बाद ही प्रदेश में विज्ञान नीति बन जानी चाहिए थी। लेकिन आज तक ऐसा नहीं हुआ। कमीशनखोर और विजिलेंस नेताओं-अफसरों की अदूरदर्शिता का खमियाजा पता नहीं हमें कब तक भुगतना पड़ेगा।