सभी विपक्षी दलों से दस कदम आगे निकली आप

सभी विपक्षी दलों से दस कदम आगे निकली आप

– पूर्व आईएएस सुवर्धन और आईपीएस चौहान आप में शामिल
– आखिर क्षेत्रीय दल क्यों नहीं जोड़ पाए अच्छे लोग?

उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी तेजी से आगे निकल गयी है। प्रदेश स्तर पर अच्छा चेहरा न होने के बावजूद अच्छे लोग आम आदमी पार्टी से जुड़ रहे हैं। गत दिवस पूर्व आईएएस सुवर्धन और पूर्व आईपीएस अनंतराम चौहान ने आप ज्वाइन कर ली। पूर्व मेजर जनरल डॉ सीके जखमोला पहले ही पार्टी से जुड़ चुके हैं। आप ने पौड़ी में अच्छी सेंघ लगाई है। देवप्रयाग से यूकेडी नेता गणेश भट्ट को तोड़कर आप ने यूकेडी अध्यक्ष दिवाकर भट्ट को ललकारा है। आप की यह पिछले दो-तीन महीने की उपलब्धि है।

कांग्रेस आपसी रार में है और वैसे भी कांग्रेस यदि रात-दिन एक भी करे तो उसे 2022 में मुश्किल से ही कुछ और सीटें मिलेंगी। क्षेत्रीय दलों का बुरा हाल है। यूकेडी, उपपा, उनपा, उप्रपा, सर्वजन स्वराज समेत अधिकांश दलों के पास न नेता हैं और न विजन। सबसे अहम बात यह है कि, क्षेत्रीय दल जनता के सामने कोई पोलिटिकल एजेंड़ा लेकर गये ही नहीं। उनके पास रटी-रटाई समस्याएं और समाधान हैं, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं है। न सदस्य, न संसाधन, न फंड, न नीति और न नेता। इसके बावजूद एकजुट होने को तैयार ही नहीं हैं।

विचारणीय बात है कि, यूकेडी पिछले 20 साल में 20 अच्छे लोगों को पार्टी से नहीं जोड़ सकी है। गत वर्ष पूर्व आईएएस एसएस पांगती यूकेडी से जुड़े तो उनको पार्टी ने सर्वोच्च विशेषाधिकार समिति का अध्यक्ष बना दिया। मजेदार बात यह है कि, यह पद पार्टी संविधान में है ही नहीं। पार्टी का नया संविधान तैयार किया गया लेकिन उस पर चर्चा के लिए पार्टी नेताओं के पास समय नहीं है। यूकेडी में जो नेता हैं, वो किसी बाहरी नेता के आने से डर जाते हैं कि कहीं उनका सिंहासन छीन न लिया जाएं तो वो किसी को पार्टी में आने ही नहीं देते।

1997 से ही पार्टी के नेता एक-दूसरे के साथ सिर-फुटोव्वल की तर्ज पर लड़ते रहे हैं। ऐसे में यूकेडी जनाधार बना ही नहीं सकी। अभी यूकेडी ने सदस्यता अभियान चलाया तो जानकारी मिली कि पार्टी के 21 हजार सदस्य बने। यानी पार्टी के पास पिछले 20 साल में एक लाख सदस्य भी नहीं हैं। दूसरे क्षेत्रीय दलों के पास मुश्किल से एक हजार सदस्य भी नहीं होंगे। बेहतर होता कि ये सब दल मिलकर काम करते। लेकिन अहम और पदों की लड़ाई के आगे ये नेता और दल उसी डाल को काट रहे हैं, जिस पर बैठे हैं। यदि क्षेत्रीय दलों का यही हाल रहा तो यह तय मान लीजिए कि 2022 में भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच सीधा मुकाबला होगा।