युवाओं में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्तियां। सरकार को चलाना होगा जन जागरण अभियान
रिपोर्ट- मनोज नौडियाल
कोटद्वार। आये दिन अखबारों की सुर्खियां बनती आत्महत्याओं की खबरें समाज के विकास की त्रासद तस्वीर को बयां करती है। यह जीवन से पलायन का वह डरावना सत्य है जो दिल को दहलाता है, डराता है, खौफ पैदा करता है, दर्द देता है। इसका दंश वे झेलते हैं जिनका कोई अपना आत्महत्या कर चला जाता है। गौरतलब है कि कोटद्वार में पिछले डेढ़ महीने में 13 लोग आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर चुके हैं। जिसमें अधिकांश युवा वर्ग है। जिस कारण समाज में एक भय और चिंता का वातावरण बना हुआ है। वहीं समाज में लगातार बढ़ती आत्महत्याओं की घटना पर मनोवैज्ञानिक पुलिस और समाज के प्रबुद्ध लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी है।
क्या यह सब आज के भौतिकवादी जीवन सुविधावादी युग की देन है। इस पर मनोशिक्षक डॉ अमित कुमार जयसवाल का कहना है कि, युवाओं की आत्महत्या की तरफ बढ़ती प्रवृत्ति के पीछे मनुष्य का संयुक्त परिवार से एकल परिवार की तरफ बढ़ना भी है। आधुनिकता की इस भाग दौड़ में माता-पिता अपने बच्चों की तरफ ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। जिस कारण युवा एकांकी हो चुके हैं। उन्होंने अपने दोस्त के रुप में आज के आधुनिक गैजेट और सोशल मीडिया को अपना दोस्त बना लिया है। जिस कारण वह अपने मन का भाव किसी से प्रकट नहीं कर पाते और आत्महत्या जैसे कदम उठा अपनी जीवन लीला समाप्त कर देते हैं।
वहीं एएसपी प्रदीप राय भी क्षेत्र के युवाओं में बढ़ती आत्महत्याओं की घटनाओं से चिंतित नजर आए। उन्होंने कहा कि, पुलिस की अपनी सीमाएं होती हैं। आज समाज में युवाओं में बढ़ती आत्महत्या की खतरनाक प्रवृत्ति को रोकने के लिए मनोशिक्षको, मनोवैज्ञानिकों, समाज शास्त्रियों को आगे आना होगा। अब माता-पिता को केवल अभिभावक ही नहीं बल्कि अपने बच्चों का दोस्त बनना होगा। परिवार को समय देना होगा। युवाओं को आधुनिकता के साथ-साथ आध्यात्मिकता, सांस्कृतिक और सामाजिकता की ओर ले जाना होगा।
एडवोकेट अरुण कुमार भट्ट ने युवाओं में बढ़ती इस प्रवृत्ति को कोरोना महामारी से जोड़ते हुए कहा कि, जिस प्रकार से युवाओं की नौकरियां चली गई है। आर्थिक तंगी भी इसका बहुत बड़ा कारण है। वही सरकार को भी जनजागरण अभियान चलाने की आवश्यकता है।