उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था बाल्यकाल के समीप: रावत

उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था बाल्यकाल के समीप

– राज्य में राजस्व के लगभग सभी स्त्रोत सूखे
– राज्य के राजस्व में 2017 से लगातार गिरावट

देहरादून। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस महासचिव हरीश रावत ने एक फेसबुक पोस्ट के माध्यम से कहा कि, उत्तराखंड व त्रिवेंद्र सिंह रावत, दोनों के लिये यह एक जटिल समय है। यदि हम अन्य राज्यों की तुलना में देखें, तो हमारी अर्थव्यवस्था अभी बाल्यकाल के आस-पास है। प्रत्येक राज्य में अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्र, काफी परिपक्व व मजबूत होते हैं। ऐसे राज्य बड़ा झटका झेल सकते हैं। हमारा प्रत्येक क्षेत्र, अभी हमारी तरह बाल्यकाल से आगे की ओर बढ़ रहा है। कोरोनाजन्य लॉकडाउन के स्काई लैव के झटके को हम, बिना केंद्र सरकार की विशेष मदद के नहीं सभाल सकते हैं। हमारी अर्थव्यवस्था एक छोटी अर्थव्यवस्था है। 42 हजार करोड़ रुपये वार्षिक बजट वाली अर्थव्यवस्था के लिये कोरोनाजन्य लॉकडाउन बहुत भारी है। राज्य के राजस्व के लगभग सभी स्त्रोत सूख गये हैं।

हरीश ने यह भी कहा कि, मार्च में जीएसटी की वसूली, अनुमान से बहुत कम रही होगी। शराब से होने वाली आय लगभग डेढ़ माह से शून्य है। पैट्रोल-डीजल की बिक्री घटने से बढ़ी हुई एक्साईज ड्यूटी का लाभ भी राज्य को नहीं मिल पाया है। खनन गतिविधियां बंद हैं, खनन से आय भी शून्य के निकट होगी, हो सकता है कुछ आय, रॉयल्टी के रूप में हासिल हुई हो। जमीन और संपत्ति आदि की बिक्री पर होने वाली आय भी शून्य के लगभग रही होगी। यूं तो राज्य के राजस्व में 2017 से लगातार गिरावट आ रही है। राज्य, केंद्रीय आर्थिक पैकेज के अभाव में विकासजन्य रोजगार की गतिविधियों के संचालन के लिये धन जुटाने की स्थिति में दिखाई नहीं दे रहा है। कुछ केंद्रीय परियोजना व विभागों में लंबित योजनाओं में कुछ काम अवश्य होगा अन्यथा मनरेगा के अलावा, शेष क्षेत्रों में नये रोजगार के अवसर पैदा करना कठिन कार्य है।

उत्तराखंड लॉकडाउन शिथिल होने की स्थिति में अपनी आर्थिक गतिविधियां कहां से प्रारंभ करे, इस संदर्भ में मनरेगा व समवर्ती रोजगारों के अलावा आंतरिक पर्यटन, परिवार आधारित छोटे उद्योग या उद्यम कृषि का परंपरागत क्षेत्र और बड़े उद्योग फार्मासिटिकल्स सैक्टर के लिए ध्यान देना चाहिए। ये ऐसे क्षेत्र हैं, जहां थोड़ा सा बढ़ावा, थोड़ी रियायतें, थोड़ा नीतिगत संवर्धन, राज्य की अर्थव्यवस्था को गतिशील बना सकता है और इस संदर्भ में हमें 24 घंटा विद्युत उपलब्धता के साथ सबसे सस्ती बिजली देने के अपने घोषित लक्ष्य में शिथिलता नहीं आने देनी है। राज्य, अपने औद्योगिक स्तर को यदि बनाये रखता है, तो हमें एक और अतिरिक्त लाभ उपलब्ध है। कांग्रेस सरकार, काशीपुर, सितारगंज, गदरपुर, पंतनगर, भगवानपुर के आस-पास सिडकुल को एक बड़ा लैंड बैंक देकर गई है, ये भविष्य में नये उद्योगों के लिये एक महत्वपूर्ण हो सकता है। इस समय मेरा ध्यान, इस क्षेत्र की ओर बिल्कुल नहीं है। हां मैं, शहरी क्षेत्रों से लगे हुये अर्द्धशहरी क्षेत्रों में भूमि के सर्किल रेट घटाने पर अवश्य बल दूंगा।

इस क्षेत्र में अनापेक्षित तरीके से निर्माण कार्य प्रारंभ हो सकता है, जो रोजगार दायक होगा। मनरेगा को आधार स्तंभ मानकर, उसके चारों तरफ, जल संग्रहण, कृषि, बागवानी, हॉर्टिकल्चर, पादप वृक्षारोपण, चौड़ी पत्ती और कास्ट व बांस कला आधारित शिल्प वृक्षारोपण, नींबू से लेकर चूलू प्रजाति के फलदार वृक्ष आदि आधारित गतिविधियों को संचालित करने पर हमको फोकस करना पड़ेगा और इसी के साथ हमें, पशुपालन दुग्ध उत्पादन, बकरी पालन, जैविक मांस उत्पादन, मछली पालन आदि की गतिविधियों को भी इसी के चारों तरफ केंद्रित करना पड़ेगा। इन विभिन्न गतिविधियों में कुछ गतिविधियां अगले 5 महीनों में लाभ देना प्रारंभ कर देगी। जैसे, मडुआ, झौंगरा, भट, राम दाना, मेथी, तिल, कद्दू-भुजेला, मूली आदि, जो 5 महीनों में अपना लाभ देना प्रारंभ कर देंगे। कुछ उत्पादन दो-तीन वर्ष में, कुछ व्यवसाय दो-तीन वर्ष के अंदर रिटर्न देना शुरू करेंगे और 4 साल व 4 साल से आगे लाभ प्रदान करेंगे। इस समय केवल कुछ बातों को संकेत के रूप में हरीश रावत ने कहा है। मगर इस कार्य हेतु राज्य सरकार को कुछ व्यवस्थाएं खड़ी करनी पड़ेंगी।

● पहला, न्यूनतम् आवश्यक कार्यशील पूंजी।
● दूसरा, भूमि की उपलब्धता व उसका सामूहिक करण।
● तीसरा, उत्पादों की सुरक्षा व्यवस्था व मार्केटिंग, इस हेतु कुछ नीतिगत निर्णय पहले से लिये गये हैं, कुछ और लेने पड़ेंगे। जैसे, लीज पर खेती देने का कानून बना हुआ है। मगर भू-हीनों के लिये भूमि आवंटन के कानून को नये सिरे से लागू करना पड़ेगा। छोटे कृषि यंत्रों, जैसे छोटा ट्रैक्टर, मडुआ थ्रेसर पर पहले ही 90% अनुदान मान्य है। उसको फिर से लागू करना पड़ेगा, तो कई मिसिंग लिंक टटोलने पड़ेंगे और जोड़ने पड़ेंगे। मगर इस हेतु आवश्यक है कि, कुछ गाँवों को लेकर ग्राम स्वरोजगार कमेटियां बने और उनके माध्यम से इस बड़े वैचारिक परिवर्तन को स्वरूप प्रदान किया जाय।

इन सब कार्यों के लिये धन, मनरेगा के अलावा विभिन्न विभागों के विभिन्न बजटों, कैंपा आधारित वनीकरण एवं जल संवर्धन योजनाओं व नाबार्ड से प्राप्त हो सकता है। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि, हम समय खोते जा रहे हैं। हमें अभी तक योजना तैयार कर देनी चाहिये थी, ताकि हम इस मई के महीने में उस पर क्रियान्वयन प्रारंभ कर देते। अब हम, 6 महीने पीछे जा रहे हैं और सबसे उपयुक्त समय को खो रहे हैं। हरीश ने यह भी लिखा कि, मैं अगले चरण में आपसे कृषि एवं कृषि उत्पादों और कृषि क्षेत्र एवं वन क्षेत्र की रोजगार संभावनाओं पर बातचीत करूंगा। मुझे, पर्यटन के क्षेत्र में भी राजी इनिशिएटिव गवा रहा है, इसका दुःख है।