सरकार को करनी चाहिए लॉकडाउन सामान्य होने तक छात्रों की फीस वहन
– सरकार झूठी उपलब्धियों के विज्ञापनों पर खर्च कर सकती है करोड़ों रुपया, तो इन छात्रों पर क्यों नहीं?
– विद्यालयों को लाभ-हानि रहित फार्मूला अपनाकर राहत दे सरकार
– गरीब अभिभावकों के रोजगार की निकट भविष्य में संभावनाएं बहुत कम
देहरादून। सरकार को विद्यालयों की फीस मामले में नो प्रॉफिट, नो लॉस के आधार पर विद्यालय प्रबंधन से वार्ता कर गरीब छात्रों की फीस की भरपाई लॉकडाउन सामान्य होने तक सरकारी खजाने से करनी चाहिए। आज जनसंघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने इस पर सवाल खड़े किए। नेगी ने कहा कि, प्रदेश के विद्यालयों में कार्यरत अध्यापकों/स्टाफ में से अधिकांश ऐसे हैं, जोकि विद्यालय द्वारा प्रदत्त वेतन पर ही निर्भर हैं, तथा लॉकडाउन की अवधि का वेतन विद्यालय प्रबंधन को चुकाना ही पड़ेगा। ऐसी स्थिति में विद्यालय प्रबंधन मुनाफा न कमा कर अपने अध्यापकों/स्टाफ की फीस आदि मामले में विचार कर सकते हैं, जिसकी भरपाई सरकार के खजाने से की जा सकती है।
नेगी ने बात को जारी रखते हुए कहा कि, सरकार जब अपनी झूठी उपलब्धियों के विज्ञापनों पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च कर सकती है, तथा डीजल, पेट्रोल, शराब आदि पर भारी राजस्व (सरकारी लूट) इकट्ठा कर सकती है, तो इन दो-तीन महीने की फीस का इंतजाम आखिर क्यों नहीं कर सकती? इसके अतिरिक्त कोरोना महामारी में संस्थाओं, कर्मचारियों व जनता से प्राप्त की गई दान की राशि का इस्तेमाल भी इस मुहिम में खर्च किया जा सकता है। क्योंकि अधिकांश अभिभावक किराए के मकान में रहते हैं तथा व्यवसायिक संस्थानों/औद्योगिक इकाइयों में कार्य कर व थोड़ा-बहुत व्यापार कर अपनी आजीविका चलाते हैं, लेकिन लॉकडाउन सामान्य होने व हैंड टू माउथ वाली स्थिति में इनको बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है तथा भविष्य में भी करना पड़ सकता है।