विश्व महिला दिवस: समाज की शिल्पकार है महिला

समाज की शिल्पकार है महिला

 

वरिष्ठ पत्रकार- सलीम रज़ा
यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता’ मनुस्मृति के ग्रंथ में उल्लिखित श्लोक में नारी के सम्मान को बताया गया है। नारी अतयव महिला के कई रूप हैं। हर रूप में अलग-अलग श्रद्धात्मक भाव देखे जा सकते हैं। नारी एक मां है तो एक बहन भी है। नारी एक पत्नी है तो नारी एक औरत है। उसका सम्मान करना हमारा दायित्व भी बनता है। सर्वप्रथम सभी महिलाओं को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं। मैं यहां पर महिलाओं की दशा और दिशा को लेकर कहना चाहता हूं कि, महिलाओं के सम्मान में भाौतिकवादी विचारधारा महिलाओं के उत्पीड़न का कारक रही है। इसके लिए नारीवाद को लेकर रोजमेरी हेनेसी और क्रिस इंग्राहम का तर्क है कि, नारीवाद का भोतिकवादी रूप पश्चिमी मार्कसवादी विचार से विकसित हुआ है और कई अलग-अलग आन्दोलनों के लिए प्रेरित किया है। जो सभी पूंजीवाद की आलोचना में शामिल हैं, और महिलाओं के लिए विचारधारा के संबन्धों पर केन्द्रित हैं।

मार्कसवादी नारीवाद का तर्क है कि, पूंजीवाद महिलाओं के उत्पीड़न का मूल कारण है, घरेलू जीवन और रोजगार में महिलाओं के खिालाफ भेदभाव पूंजीवादी विचारधाराओं का ही परिणाम है। दरअसल नारीवाद सिद्धान्त का लक्ष्य लैंगिक असामनता को समझना है। नारीवाद सिद्धांत में जो विषय खोजे गये उनमें भेदभाव, रूढ़िवादिता, यौन उत्पीड़न और पितृसत्ता शामिल है। हम आज भी देख रहे हें कि, आजादी के 7 दशकों बाद भी नारी को लेकर पुरूषों की धारणा अलग-अलग है। लेकिन ये भी सत्य है कि, कोई भी देश तरक्की के सोपान तब तक नहीं चढ़ सकता जब तक उस देश की नारी पुरूष से कन्धे से कन्धा मिलाकर नहीं चलती। सदियों पहले महाभारत में भी यह लिखा गया था कि, ‘‘ समाज व शासन की सफलता इस तथ्य से समझी जानी चाहिए कि, वहां नारी व प्रकृति कितनी संरक्षित व पोषित है, उन्हें वहां कितना सम्मान मिलता है’’ लेकिन सवाल ये उठता है कि, हम उसका कितना अनुसरण करते हैं।

हम अपनी मानसिकता को क्यों नहीं बदल पा रहे हैं? क्या इन सारी बातों से हमारा कोई सरोकार नहीं है। मान भी लिया जाये कि, सरोकार होता तो आज के दौर में नारी और प्रकृति दोनो ही खतरे में नहीं होतीं। आज बाजारबाद की दुनिया में बाजार ही समाज के सारे नियमों को तय करता है। लेकिन बाजार का अपना कोई नियम नहीं होता है। अगर पनप रहे लैंगिक भेदभाव की बात करें तो बाजार ने लैंगिक भेदभाव की बुनियाद को और भी मजबूत किया है। बहरहाल अन्तर्रराष्ट्रीय महिला दिवस 2020 की थीम ‘आइ एम जेनेरेशन इक्यूलिटी’’ यानि दुनिया का हर व्यक्ति चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, समुदाय, लिंग या देश का क्यों न हो, सब बराबर हैं, खासतौर से महिलाऐं। वैसे तो भारत पुरूष प्रधान समाज है। लेकिन देखा ये जा रहा है कि, ये मिथक टूट सा गया है। क्योंकि अब पुरूष महिलाओं की हौसला अफजाई करते नजर आते हैं। लेकिन इन सबके बावजूद एक बात जो सबसे ज्यादा सुनी जा रही है कि, जबसे महिलाऐं शिक्षित और आत्मनिर्भर हुई है तब से परिवार और समाज के अन्दर विघटन जैसे हालात पैदा होते जा रहे हैं।‘

खैर जहां नारी की बात हो वहां सभी धर्मों को नारी सम्मान की बात करनी चाहिए। मैं किसी बात का अपवाद बनना नहीं चाहता लेकिन सत्य को किसी भी कीमत में झुठलाया नहीं जा सकता क्योंकि सत्य सदैव कड़वा होता है। इस सत्य को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि, इंसानी जीवन के विकास के लिए नारी की जवाबदेही तय है। इस नजरिये से देखा जाये तो इंसान को मुकम्मल और उसके अस्तित्व को बनाये रखना उसकी जिम्मेदारी है तो इस लिहाज से नारी ही सवोैच्च रही है। भले ही नारी आजाद हो या पराधीन लेकिन जिस तरह से मानव के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए जितना पुरूष उत्तरदायी है उतना ही नारी का योगदान है। ऐसे में नारी और पुरूष दोनों ही एक दूसरे के पूरक हुये। मैं इतना विस्तार से क्यों कह रहा हूं? क्या इसकी इजाजत है? कहीं ऐसा न हो इसको लेकर बहस और विवाद के दरवाजे खुल जायें? धर्म वो है जिससे संस्कार, रस्मो-रिवाज बाहर निकलकर आते हैं। जिसका अनुसरण और उसका पालन करना हर धर्म के व्यक्ति को अनिवार्य होता है।

अब जब धर्म के अनुसार इंसान चलता है तो जाहिर सी बात है कि, वो धर्म के प्रति समर्पण भाव रखता है और ये अतिवृद्धि उसे अंधविश्वास और अंधश्रद्धा की तरफ ले चलती है। फिर चाहे उसे अपना अस्तित्व भी कुर्बान क्यों न करना पड़े फिर ये बात सच ही हुई कि, इंसान धर्म की आड़ लेकर निरंकुश, और बर्बरता का माहौल लेकर उतर जाता है। धर्म को जानिए धर्म का ताल्लुक ही कर्म से है। धर्म एक दार्शनिक सोच नहीं है। बल्कि एक निश्चित विधान है। धर्म के लिए आप अपने हिसाब से परिभाषा नहीं दे सकते। क्योंकि धर्म को परिभाषा में बिल्कुल भी बांधा नहीं जा सकता। इसे बहस और वाद विवाद का मुद्दा बना लेने से उसके वास्तविक स्वरूप को न तो समझा जा सकता है और न जाना जा सकता है। हर धर्म में नारी की समानता की बात भले ही करी जाती हो लेकिन जहां स्त्रियों के प्रति रूख की बात आती है। वहां पर समानता की बात उपेक्षा का दंश झेलती है। धर्म को अपने-अपने हिसाब से परिभाषित करके नारी को उपभोग का सामान बनाकर रख दिया जिसके चलते नारी के विकास की बात करना सिर्फ धर्म ग्रंथों के पन्नों तक सिमट कर रह गई है।

आज नारी की जो दशा है। वो मनु स्मृति के श्लोक से बिल्कुल उलट है। जिसमें कहा गया है कि, नारी को सम्मान मिलना चाहिए। जिस घर मे नारी को सम्मान और उनकी अपेक्षानुरूप पूर्ति की जाती है उस घर पर देवताओं की कृपा बरसती है। लेकिन आज जो हालात नारी के हैं उसे देखकर ये ही लगता है कि, इंसान के संस्कारों में नारी के सम्मान के लिए सिर्फ दिखावा है। लेकिन मनन करने की इच्छा शक्ति कमजोर ही है। घटता लिंगानुपात इस बात का द्योतक है कि, नारी के प्रति पुरूष की सोच कितनी मजबूत है। क्या ये बात हलक से नीचे उतरती है कि, आज के कमप्यूटर, विज्ञान, प्राद्यौगिकी के युग में भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध को तरजीह देने का काम भी पुरूष की मर्जी के खिलाफ नहीं हो सकता। नारी की कहानी और सम्मान के लिए ये एक काला धब्बा है। अगर आज भी नारी को वो सम्मान और अधिकार नहीं दिये जाते तो ये पुरूषों की मानसिक कुंठा और अपने आपको प्रधान कहे जाने की झूठी पहचान को ढोना मात्र है।

आजकल महिलाओं के साथ दुराचार, बलात्कार, हत्या जैसे जधन्य अपराधों की बाढ़ सी आ गई है। जिसे देखकर लगता है कि, सशक्त पुरूष अपनी काम पिपासा में अपने धर्म ओर संस्कारों की तिलांजली दे रहा है। ये सच है कि, आज पुरूष ने महिला को मात्र अपने उपभोग का साधन और संतान पैदा करने की मशीन तक ही सीमित रखा है। आज के माहौल में पुरूषों के वर्चस्व को बनाये रखने के लिए महिलाओं की मर्यादा को तार-तार करने वाले विधान और संस्कार को ही महिला अपना धर्म समझने लगीं इस अज्ञानता के लिए भी पुरूष ही दोषी हैं। कितना भी समाज का माहौल बदले लेकिन महिलाओं के हालात जस के तस है। आज भी महिलायें पुरूषों के अत्याचार ओर जुल्म का कोपभाजन बन रही है। महिलाओं को यदि अपनी आजादी और अपने सम्मान को बचाना है तो उसे धर्म के बन्धन से निकलकर बाहर आना होगा। महिलाऐं अपने ऊपर हो रहे भेदभाव पूर्ण रवैये, अपने ऊपर हो रहे अत्याचार और उन्हें रीति रिवाजों संस्कारों की बेड़ी में बांधकर रखने से उन्हें गुस्सा होना लाजमी है। लेकिन उनके अन्दर आत्मविश्वास की कमी ने उन्हें असहाय बना दिया है। जिसकी वजह से वो ये सब सहन करने को मजबूर है।

अब तो महिलाओं के बारे में स्थिती साफ होती जा रही है कि, महिलाओं की आजादी, समानता और पहचान को प्रशस्त बनाने के रास्ते में धर्म बीच में आ ही जाता है। महिलाओं को सम्मान मंचों या कोरे भाषणों से नही दिलाया जा सकता। बल्कि हमें अपनी सोंच में बदलाव लाना पड़ेगा और ये दिखाना होगा कि, समानता के लिए महिलाओं को गुलामी और उनके ऊपर अधिकार जमाने वाली सोच को खत्म किया जाये। बहरहाल आज हमारे देश में महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। जहां आज पूरी दुनिया में महिलाऐं अपनी मंजिल खुद ही तलाशने में लगी हैं वे इतनी आत्मनिर्भर हैं कि, अपने बारे में वे खुद ही फैसला लेती हें। वो अब पुरूषों पर डिपेन्ड नहीं हैं। दूसरी तरफ महिलाओं को लेकर पुरूष भी अपना दायित्व समझने लगे हैं। लेकिन आज जब सरकार महिलाओं को आगे लाने के अपने अथक प्रयास कर रही है। फिर भी ग्लोबल जैन्डर गैप इन्डैक्स में भारत का मौजूदा स्थान बता रहा है कि, अभी भी महिला पूरी तरह से पुरूषों के अधीन ही है। महिला समाज की शिल्पकार है। उसके कई रूप हैं हम उसके जिस रूप को भी देखें तो हर रूप में श्रद्धा झलकती है। फिर उसके साथ अमानवीय व्यवहार कैसा? लिहाजा मंचों पर व्याख्यान देने भर से ही महिलाओं को स्थान और सम्मान नहीं दिलाया जा सकता, या फिर एक दिन के इस दिवस से महिलाओं की स्थिति में सुधार होने वाला है। नहीं उसके लिए हमें अपनी मानसिकता में बदलाव लाना पड़ेगा।