उद्यान विभाग द्वारा पुष्प उत्पादन की योजनाओं पर डाला जा रहा डाका

उद्यान विभाग द्वारा पुष्प उत्पादन की योजनाओं पर डाला जा रहा डाका

 

देहरादून। राज्य में कृषकों की आय दुगनी करने के उद्देश्य से उद्यान विभाग द्वारा पुष्प उत्पादन की कई योजनाएं चलाई जा रही है। योजनाओं में फूलों के हाइब्रिड बीज क्रय कर कृषकों को निशुल्क वितरित किए जा रहे हैं। गेंदे की खेती पर विशेष जोर दिया जा रहा है। इसके पीछे का कड़ुआ सच यह है कि, विभाग दस हजार रुपए से लेकर एक लाख रुपए प्रति किलो ग्राम की दर से बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियों से हाइब्रिड गेंदें का बीज क्रय कर कृषकों को निशुल्क वितरित कर रहा है। जिस पर बीज क्रय करने वालों (आहरण वितरण अधिकारियों) को 40% तक का कमिशन मिलता है।

गेंदे की व्यवसायिक खेती के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा पूसा नारंगी एवं पूसा बसंती दो किस्मों की संस्तुति की गई है। तथा गेंदे की खेती करने वाले कृषक इन्हीं किस्मों से गेंदे की व्यवसायिक खेती कर रहे हैं। इन किस्मों का प्रर्याप्त गेंदे का बीज संस्थान में 1200 से 1500 रुपए प्रति किलो ग्राम की दर से उपलब्ध रहता है। उद्यान विभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की दरों 1200-1500 रुपए प्रति किलो ग्राम से गेंदें फूल का बीज न क्रय कर बहु राष्ट्रीय कम्पनियों से दस हजार से एक लाख रुपए प्रति किलो ग्राम की दर से गेंदे के हाइब्रिड बीज अपने कमिशन के चलते खरीद रहा है। योजनाओं में खुले आम डाका डाला जा रहा है।

राज्य में लगता है जैसे कोई देखने वाला है ही नहीं, न पहले वाली सरकारों को विकास योजनाओं में कहीं भ्रष्टाचार दिखाई दिया न अब भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस कहने वालों को दिखाई दे रहा है। राज्य बनने पर आश जगी थी कि, विकास योजनायें राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार कृषकों के हितों को ध्यान में रख कर बनेंगी। किन्तु दुर्भाग्य से राज्य को हिमाचल प्रदेश की तरह, डॉ परमार जैसा दक्ष व अनुभवी नेतृत्व नहीं मिल पाया। जिसका प्रशासकों ने पूरा लाभ उठाया। योजनाएं वैसे ही चल रही है जैसे उतर प्रदेश के समय में चल रही थी। कृषकों की आवश्यकता अनुसार योजनाओं में सुधार नहीं हुआ।

विभाग योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए कार्ययोजना तैयार करता है। कार्ययोजना में उन्हीं मदों में अधिक धनराशि रखी जाती है जिसमें आसानी से संगठित/संस्थागत भ्रष्टाचार किया जा सके या कहैं डाका डाला जा सके। यदि विभाग को/शासन को सीधे कोई सुझाव/शिकायत भेजी जाती है तो कोई जवाब नहीं मिलता। प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री के समाधान पोर्टल पर सूझाव शिकायत अपलोड करने पर शिकायत शासन से संबंधित विभाग के निदेशक को जाती है। वहां से जिला स्तरीय अधिकारियों को, वहां से फील्ड स्टाफ को अन्त में जबाव मिलता है कि, किसी भी कृषक द्वारा कार्यालय में कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं है सभी योजनाएं पारदर्शी ढंग से चल रही है।

उच्च स्तर पर योजनाओं का मूल्यांकन सिर्फ इस आधार पर होता है कि, विभाग को कितना बजट आवंटित हुआ और अब तक कितना खर्च हुआ। राज्य में कोई ऐसा सक्षम और ईमानदार सिस्टम नहीं दिखाई देता जो धरातल पर योजनाओं का ईमानदारी से मूल्यांकन कर योजनाओं में सुधार ला सके।वर्तमान में चल रही योजनाओं से नौकरशाहों एवं योजनाओं में निवेश आपूर्ति कर्त्ताओं (दलालों) का ही आर्थिक लाभ हो रहा है। कृषकों के हित में जब तक योजनाओं में सुधार नहीं किया जाता व क्रियान्वयन में पारदर्शिता नहीं लाई जाती कितनी भी योजनाएं चला लो कृषकों की आय दुगनी होगी उम्मीद रखना बेमानी होगी।