खाकी को क्या अब छुटभैये चलाएंगे?

खाकी को क्या अब छुटभैये चलाएंगे?

 

देहरादून। पुलिस की नौकरी का एक जमाने मे इकबाल था, खाकी का ऐसा रौब था कि, अच्छे-अच्छे लोग खाकी को देख भर लेने से हो जाते थे, खामोश। मगर समय के साथ-साथ पुलिस के इकबाल में आ चुकी है भारी गिरावट। क्योंकि छोटे कर्मचारी अब मानने लगे हैं कि, प्रभावी कानूनी कार्रवाई करने का प्रयास किया तो उसे लाइन हाजिर या ससपेंड होकर इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। अब तो छुटभैये नेता भी क्या कोतवाल, क्या सीईओ और क्या कप्तान सबको चुटकी बजाते हुए हटवाने का भरने लगे हैं दम्भ।

 

 

उत्तराखंड बनने के बाद कुछ छुटभैये इतने बेलगाम हो गए हैं कि, वो पुलिस पर न केवल हावी होना चाहते हैं। बल्कि पुलिस को अपना गुलाम बनाने पर आतुर हैं। ऐसे ही एक छुटभैये हैं, कुर्सी पाकर हो गए हैं बेलगाम। अपने पद का फायदा उठाकर अपने अधिनिस्थों से मारपीट तक करवा देते हैं, और दूसरे पक्ष को इतना धुनवा देते हैं कि, उसकी जान पर बन आये और छुटभैये नेता जी की नाक इतने पर भी बड़ी नहीं होती। मारपीट के दोषियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई छुटभैये नेताजी को रास नहीं आती।

 

छुटभैये जी कुर्सी के नशे में कितने मदहोश हैं, इसकी बानगी इससे समझिए कि, वो कार्रवाई के विरोध में पुलिस के खिलाफ थाने के सामने अपने कारिन्दों और कुछ चाटूकारों को भेजकर न केवल पुलिस की कानूनी कार्रवाई का मखोल उड़वाते हैं, बल्कि उसकी शह पाकर उसके कारिन्दे न केवल क्षेत्रीय पुलिस बल्कि आला अधिकारियों तक के लिए अमर्यादित शब्दों का खुलेआम प्रयोग पुलिसकर्मियों के सामने करने से भी गुरेज नहीं करते।

 

तो साहब क्षेत्र में चल रही चर्चा भी सुन लीजिए। छुटभैये ने पूरे क्षेत्र में एक हवा बना रखी है कि, खाकी के एक बहुत बड़े साहब का आजकल वो सखा बन चुका है। उसी ताकत और दोस्ती के नशे में चूर होकर वह अपने क्षेत्र में मनमानी करने को आतुर है। उसकी चाहत सिर्फ यंही नहीं रुकी वो चाहता है कि, क्षेत्र पुलिस के लिए उसका हर आदेश पत्थर की लकीर हो चाहे वह गलत ही क्यों न हो? साथ ही हिंदी पिक्चरों को देखकर वो इतना पगला चुका है कि, चाहता है कि, पुलिस उसकी ड्योढ़ी पर जाकर उसे सुबह-शाम सलाम करे।

 

 

ऐसा सपना पूरा न होने के चलते उसने क्षेत्र की पुलिस को मान लिया है अपना दुश्मन, अब वो किसी भी तरह साम-दाम या दण्ड से क्षेत्र की पुलिस को बदलवाने में जुटा है। उसने पूरे क्षेत्र में खबर फैला दी है कि, वह महीने भर के भीतर क्षेत्र की पुलिस को बदलवाकर अपने मन मुताबिक पुलिस को लाएगा।

 

 

– अहम सवाल….

साहब, अब सवाल यहां उठता है कि, आखिर उसमे यह सब करने की हिम्मत कहाँ से आ रही है? कौन है जो उसकी ताकत बन रहा है? कौन है जो उसके काले कारनामों पर पर्दा डालकर उसे बड़ी पहुँच और रसूखदार बनाने पर अमादा है? क्या होगा उत्तराखंड की पुलिस का भविष्य? जब छुटभैयों के हौसले हो जाएंगे इतने बुलंद? क्या उत्तराखंड में खाकी इतनी हो गई है कमजोर की छुटभैयों की ड्योढ़ी में सलाम करके चलाएगी अपनी नौकरी?