करतूत वन विभाग की, दर-दर भटकने को विवश गुज्जर परिवार। न्याय को तरसे
रिपोर्ट- मनोज नौडियाल
कोटद्वार। करतूत वन विभाग की, दर-दर भटकने को विवश गुज्जर परिवार। एक जून 2020 की शाम कोटद्वार लैंसडौन वन प्रभाग के अंतर्गत शुक्रो नदी के कम पार्ट नंबर-2 में रहने वाले चार गुज्जर परिवारों के घरों में वन विभाग द्वारा बिना पूर्व सूचना दिए गुर्जरों के घरों में तोड़फोड़ कर आग के हवाले कर उन्हें बेघर कर दिया था। जिसकी सूचना जब 2 जून 2020 को लालपुर की पार्षद लीला कंडवाल को मिली तो वह गुर्जर परिवारों को लेकर पहले तो कोटद्वार रेंज के रेंजर्स गुज्जरों की शिकायत लेकर ऑफिस पहुंची, जहां रेंजर शर्मा द्वारा पार्षद महिला के साथ अभद्र भाषा का व्यवहार कर गुर्जरों सहित प्रांगण में प्रवेश नहीं करने दिया गया था।
इसके बाद पार्षद गुज्जर परिवारों को लेकर थाने पहुंच कर वन विभाग के खिलाफ गुर्जरों के उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज कराने पहुंची थी। तबसे गुर्जर परिवार अपने छोटे-छोटे बच्चों महिलाओं और बुजुर्गों को लेकर बेलाडाट के समीप वन निगम के समीप खुले आसमान के नीचे प्लास्टिक के टेंटों मे रहने को विवश हैं। वन विभाग लैंसडाउन की कठोरता और आत्त्याचार यही नहीं थमा। उसके बाद वन कर्मियों ने बेघर गुज्जरों की बहु बेटियों से मारपीट और दुर्रव्यवहार तक किया।
लेकिन कोटद्वार पुलिस डेढ माह गुजर जाने के बाद भी हवा मे हाथ पैर चला रही है। वन विभाग का कहना है कि, गुर्जर उनके वन क्षेत्र मे वर्षों से अवैध रूप मे रह रहे हैं। लेकिन वन विभाग अपने झूठ के जाल मे स्वयं फंसता नजर आ रहा है। क्योंकि जिन गुर्जर परिवारों को वन विभाग अवैध ढंग से रहना बता रहा है वे गुर्जर परिवार 1975 से पहले से लैन्सडाउन वन प्रभाग मे रहते आ रहे हैं। जिसका प्रमाण वन विभाग द्वारा काटी गई वे रसीद हैं जो वन क्षेत्र मे वन गुर्जरों को उनके जानवरों के आधार पर काटी जाती हैं।
वैसे तो वन विभाग के उच्चाधिकारियों ने इस सम्बंध मे जांच शुरू तो की है। लेकिन डेढ माह गुजरने के बावजूद गूर्जरों के परिवारों के लिए बरसात के मौसम मे अस्थायी तौर पर ही सही सुरक्षित ठिकाना तो कर दिया होता। शायद आत्याचार करनेवाले वन कर्मचारियों के घर मे महिलाएं और बच्चे नही रहते इसलिए वे इतने कठोर हो चुके हैं।जंगल मे प्रकृति से न सीख लेकर हिंसक पशुओं से सीख ले रहे हैं।