पायलट की गेंद पर गहलोत का राजनीतिक सिक्सर। राजस्थान का सियासी माहौल हुआ गरम
– बिजेंद्र राणा
राजनीति में कब क्या हो जाए किसी को नहीं पता, और चाह कर भी कोई अनुमान नहीं लगा सकता कि, आगे क्या होने वाला है। बता दें कि, सचिन पायलट एक बड़ा नाम विगत कुछ दिनों से चर्चा में है। पायलट ने राजनीति के मैदान में राजनीतिक महत्वाकांक्षा का जो राजनीतिक बाउंसर गहलोत पर मारा उसे गहलोत ने सिक्स मारकर बाउंड्री पार करा दिया। गहलोत ने सही समय पर अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ एवं अनुभव का लाभ उठाकर सही समय पर मंत्रिमंडल विस्तार का निर्णय लेकर मैच में रोमांच बनाए रखा। अब गेंद पूरी तरह से पायलट के पाले में थी, परंतु पायलट ना छक्का मार सके और ना ही कांग्रेस ने उन्हें जो चौका मारने का अवसर दिया था उसे बाउंड्री पार करने में भी पायलट कामयाब नहीं हो सके। बावजूद इसके सभी को उम्मीद थी कि, पायलट एक अच्छे नाइटवॉचमैन बनकर मैदान में उतरेंगे और गेम को बचाने में सफल रहेंगे। परंतु हुआ इसके विपरीत ही पायलट स्वयं अपना हिट विकेट करके आउट हो गए।
प्रश्न यह उठता है कि, यदि पायलट बॉल पर छक्का नहीं मार सके परंतु इसके बावजूद पायलट के पास एक राजनैतिक चौका मारने का अवसर था। परंतु पायलट इस अवसर को भुना नहीं पाए और कांग्रेस के दिए हुए प्रपोजल को उन्होंने अस्वीकार कर दीया। अब प्रश्न यह उठता है कि, पायलट का राजनीतिक भविष्य क्या होगा? क्योंकि बीजेपी के साथ उनकी जुगलबंदी नहीं बन पाई और कांग्रेस ने उन्हें सारे सम्मानित पदों से पद मुक्त कर दिया है। दूसरा प्रमुख सवाल यह है कि, क्या पायलट पार्टी में पुनः वापसी करके हिट विकेट करने का आरोप अपने सर पर लेंगे या फिर एक नई राजनीतिक पारी खेलकर सेंचुरी बनने का इंतजार करेंगे।
नई पार्टी का गठन करना पायलट के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। क्योंकि राज्य का इतिहास गवाह है कि, राज्य में केवल दो ही दिग्गज पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस सत्ताधारी दल रहे हैं। इसके अलावा कोई भी क्षेत्रीय पार्टी आज तक राजनीति के इस मैदान में सफल नहीं हो पाई है। इसके अलावा तीसरा विकल्प पायलट के पास घर वापसी का होगा। जिसका निर्णय लेना पायलट को आसान नहीं होगा। क्योंकि पायलट भली-भांति जानते हैं कि, पार्टी में अब उनको वह सम्मान नहीं मिलेगा जो उनको पदासीन रहते हुए मिलता था और पायलट को यह भली-भांति ज्ञात हो चुका है कि, पार्टी में अब उनका कद उतना ही होगा जितना एक साधारण कार्यकर्ता का पार्टी में होता है। यदि सही मायने में बात की जाए तो राजगद्दी पायलट से सिर्फ एक कदम दूर थी, परंतु पायलट की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण राज गद्दी अब पायलट से हजारों मील दूर जा चुकी है।
सियासी समीकरण बता रहे हैं कि, गहलोत का कद अब पार्टी में पहले से कहीं गुना बढ़ गया है। साथ ही आने वाले चुनावों में नीति निर्णय एवं पार्टीहित के बड़े फैसले लेने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी। वही बात सचिन पायलट की करें तो पायलट पर लगा हुआ यह आरोप इतनी जल्दी नहीं धुल पाएगा। क्योंकि सर्वविदित है कि, पायलट को आलाकमान ने पूर्ण तरह से संतुष्ट करने की कोशिश की और अपना पूरा जोर पायलट की घर वापसी में लगा दिया परंतु पायलट नहीं माने और उसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। यदि हम पायलट के राजनीतिक इतिहास की ओर चलें तो यह प्रतीत होता है कि, पायलट को कांग्रेस ने अर्श से फर्श पर पहुंचाया। साथ ही 40 वर्ष की उम्र में जहां पार्टी कार्यकर्ताओं को विधायक का टिकट नहीं मिल पाता उस उम्र में पायलट एक लंबी राजनीतिक पारी खेल चुके थे।
परंतु इसे पायलट की राजनीतिक भूल कहें कि, उन्होंने स्वयं हिट विकेट करके मैच को अपने हाथ से गवा दिया। अब देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि, पायलट आगे क्या निर्णय करेंगे क्योंकि पार्टी में वापस जाकर क्या पायलट पुनः उसी स्थान से पारी की शुरुआत करेंगे जहां वह 15 साल पहले थे। देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि, पायलट क्या निर्णय लेते हैं। दूसरा महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि, क्या यह सही समय नहीं है कि दल बदल कानून की पुनः समीक्षा की जाए क्योंकि राजनीतिक दल जनता के मताधिकार का दुरुपयोग करके जनता के विश्वास के साथ धोखा कर रहे हैं। सरकार को दल बदल कानून के नियम कड़े करके इसकी पुनः समीक्षा करनी चाहिए।