बिग ब्रेकिंग: सुप्रीम कोर्ट में ‘नन्हीं परी’ केस की फिर गूंज, उत्तराखंड सरकार बोली- दोषियों को मिले कड़ी सजा

सुप्रीम कोर्ट में ‘नन्हीं परी’ केस की फिर गूंज, उत्तराखंड सरकार बोली- दोषियों को मिले कड़ी सजा

देहरादून। पिथौरागढ़ की 7 वर्षीय मासूम ‘नन्हीं परी’ गैंगरेप और हत्या मामले में उत्तराखंड सरकार ने त्वरित संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय में 27 सितंबर को पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। इस याचिका का प्रारूपण एसपी सिटी हल्द्वानी प्रकाश चंद्र आर्या द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया है।

इस मामले की पैरवी के लिए राज्य सरकार ने भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को जिम्मेदारी सौंपी है। परिजनों ने सॉलिसिटर जनरल से भेंटकर सरकार के इस कदम पर संतोष जताया और उम्मीद जताई कि ‘नन्हीं परी’ को न्याय अवश्य मिलेगा। उन्होंने इस त्वरित कार्रवाई के लिए सरकार का आभार भी व्यक्त किया।

जिला प्रशासन की ओर से जिलाधिकारी विनोद गोस्वामी, उपजिलाधिकारी सदर मंजीत सिंह और पुलिस उपाधीक्षक गोविंद बल्लभ जोशी ने परिजनों से मुलाकात कर शासन-प्रशासन की ओर से हरसंभव सहयोग का भरोसा दिलाया।

सरकार का स्पष्ट मत है कि ‘नन्हीं परी’ को न्याय दिलाने में किसी भी स्तर पर ढिलाई नहीं बरती जाएगी। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दोषियों को कठोर दंड दिलाने की प्रक्रिया तेज की गई है।

यह है मामला

नवंबर 2014 में पिथौरागढ़ की मासूम बच्ची ‘नन्हीं परी’ अपने परिवार के साथ काठगोदाम में एक रिश्तेदार की शादी में आई थी। उसी दौरान वह लापता हो गई और पांच दिन बाद उसका शव गौला नदी किनारे जंगल में बरामद हुआ। जांच में दुष्कर्म और हत्या की पुष्टि हुई थी।

पुलिस ने तीन आरोपियों को नामजद किया, जिनमें से एक आरोपी मसीह को दोषमुक्त कर दिया गया। मुख्य आरोपी अख्तर अली को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी, जबकि दूसरे आरोपी प्रेमपाल को पांच साल की सजा हुई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सबूतों के अभाव में अख्तर अली को बरी कर दिया।

इसी फैसले के खिलाफ अब उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। सरकार का कहना है कि यह केवल एक बच्ची को न्याय दिलाने का प्रश्न नहीं, बल्कि पूरे राज्य की अस्मिता और सुरक्षा का सवाल है।