विशेष रिपोर्ट: न दस्तावेज, न अधिकार। फिर भी सेना का कब्ज़ा! केसरवाला में फूटा गुस्सा

न दस्तावेज, न अधिकार। फिर भी सेना का कब्ज़ा! केसरवाला में फूटा गुस्सा

  • जन संघर्ष मोर्चा” ने खोला मोर्चा, कहा, सेना का नाजायज कब्ज़ा अब नहीं सहेगा गांव

देहरादून। रायपुर विकासखंड के ऐतिहासिक गांव केसरवाला (अब नगर निगम क्षेत्र में शामिल) में ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित करने और ज़मीन पर कथित तौर पर सेना द्वारा किए जा रहे अवैध कब्जे को लेकर मामला गरमा गया है।

जन संघर्ष मोर्चा अध्यक्ष व जीएमवीएन के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने रविवार को ग्रामीणों के साथ मौके पर पहुंचकर स्थिति का जायज़ा लिया। उन्होंने आरोप लगाया कि सेना नॉन-जेड ए भूमि (जो रक्षा क्षेत्र में नहीं आती) पर लगभग 100-120 वर्षों से अवैध कब्जा किए बैठी है, जबकि ज़मीनी दस्तावेज़ों में यह भूमि आज भी किसानों के नाम दर्ज है।

क्या है पूरा मामला?

  • सेना ने 1904 में 972.22 एकड़ और 1940 में 244.139 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया था।
  • लेकिन बाकी जमीन आज भी राजस्व अभिलेखों में किसानों के नाम दर्ज है।
  • ग्रामवासियों के अनुसार, सेना ने इन खेतों और संपर्क मार्गों पर कब्जा जमाया हुआ है, जिससे न तो सड़क बनाई जा रही है और न ही कोई सरकारी सुविधा पहुंच पा रही है।
  • ग्रामीण कच्ची और तालाबनुमा सड़क से गुजरने को मजबूर हैं।

सेना के पास नहीं हैं अधिग्रहण के दस्तावेज!

नेगी ने बताया कि वर्ष 2012 में रक्षा संपदा विभाग द्वारा खसरा नंबर 318, 340, 341 के मामले में साफ किया गया था कि सेना के पास इन नंबरों के कोई दस्तावेज मौजूद नहीं हैं।

इतना ही नहीं, 24 मई 2024 को जिलाधिकारी की अध्यक्षता में इस मुद्दे पर सभी विभागों की बैठक भी हो चुकी है, लेकिन कोई समाधान नहीं निकल सका।

मोर्चा लड़ेगा अंतिम दम तक: नेगी

नेगी ने ग्रामीणों को आश्वस्त करते हुए कहा कि यह मुद्दा मुख्यमंत्री दरबार, शासन-प्रशासन और न्यायालय तक उठाया जाएगा। उन्होंने कहा कि सेना का गैरकानूनी रवैया अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

मौके पर मौजूद रहे ये प्रमुख लोग

सूरत सिंह नेगी, प्रवीण शर्मा पिन्नी, कलम सिंह रावत, प्रेम दत्त चमोली, राजेश मनवाल, रघुवीर सिंह राणा, भानु नेगी, केदार सिंह नेगी, स्वरूप सिंह पंवार, भगत सिंह नेगी, मंगला पंवार, सोबती चमोली, सावित्री नेगी, मंजू नेगी, रजनी चमोली, कुसुम चमोली, प्रभा मनवाल, महेंद्र सिंह कंडारी, सूरज रमोला, तोताराम चमोली, प्यारेलाल चमोली, विपिन चमोला आदि ग्रामीण इस निरीक्षण में शामिल रहे।

77 साल बाद भी आज़ाद भारत में ऐसे गांव जहां जनता को अपने ही हक की ज़मीन और बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, यह तस्वीर तंत्र की संवेदनहीनता और लचर नीति व्यवस्था की पोल खोलती है।