सीएम त्रिवेन्द्र हुए गुजरातियों पर मेहरबान। बॉर्डर पर फंसे उत्तराखंडी परेशान
– सीएम साहब उत्तराखंड के प्रवासी कैसे “आवा अपण घौर”
देहरादून। उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के आदेश पर गोपनीय मिशन के तहत गुजरात के लोगों को घर पहुंचाने पर हुई छीछालेदर को लेकर अब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और यशपाल आर्य आमने-सामने आ गए हैं। क्योंकि फिलहाल ये दोनो जनता के निशाने पर हैं। मुख्यमंत्री और सचिव के लेवल पर आदेश हुए है। बात दे कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी गुजरात से धार्मिक कार्य के सिलसिले में हरिद्वार आने वाले यात्रियों को सरकार ने गुपचुप तरीके से बाकायदा लग्जरियस गाड़ियों को सैनिटाइज करके अहमदाबाद पहुंचा दिया था। इस पर सवाल उठे तो सीएम ने कहा कि, वापसी में वहां फंसे उत्तराखंड के प्रवासियों को उन बसों मे लाया जाएगा। किंतु वहां फंसे उत्तराखंड के लोगों को वापस लाने के लिए कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।
राज्य सरकार के आदेश पर गयी थी बसें
हालांकि त्रिवेंद्र सिंह रावत और यशपाल आर्य अब इस किरकिरी का ठीकरा अधिकारियों के सर फोड़ने के लिए बीच का रास्ता निकालते दिख रहे हैं और दोनों अधिकारियों को जवाब तलब करने की बात कह रहे हैं, पर यह बात साफ है कि, यदि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने और अधिकारियों ने परिवहन मंत्री यशपाल आर्य को पूछा होता तो यह नौबत ही नहीं आती। यशपाल आर्य ने भी कहा कि, यदि उन्हें इस प्रकरण की जानकारी दी गई होती तो गुजरात में फंसे हुए लोग वापस अपने घर जरूर पहुंच जाते।अब हालत यह हो गई है कि, गुजरात से लाकर हरियाणा के बॉर्डर पर छोड़े गए। इन लोगों ने जब पैदल चलना शुरू किया तो अब पैदल यात्रियों के लिए भी सीमाएं सील हो गई हैं। इससे यात्रियों को मुसीबत और बढ गई है। रिवर्स पलायन के लिए मुख्यमंत्री “आवा अपण घौर” जैसे डायलॉग बोलते थे। अब यह जुमला उन्हें उल्टा पड़ रहा है। जाहिर है कि, डबल इंजन की सरकार में यदि मुख्यमंत्री और यशपाल आर्य चाहते तो गुजरात का तीसरा इंजन जोड़ा जा सकता था। किंतु आपसी संवाद हीनता और दूसरे के मंत्रालय में हस्तक्षेप का खामियाजा आज मुख्यमंत्री को अपनी फजीहत के रूप मे तो भुगतना ही पड़ रहा है, किंतु यह आधे रास्ते में फंसे प्रवासियों पर भी भारी पड़ रहा है।