श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय में आंसर शीट जांचने में घालमेल। गलत को बताया सही, कई जांचे ही नहीं
देहरादून। श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय बादशाही थौल (नई टिहरी) में उत्तर पुस्तिकाओं की जांच में बड़े स्तर पर गड़बड़ी पकड़ में आई है।
एक अपील की सुनवाई में यह बात सामने आई है कि परीक्षक गलत उत्तर पर भी पूरे अंक दे रहे हैं और कहीं उत्तरों की जांच तक नहीं की जा रही। प्रकरण इतिहास और राजनीती शास्त्र की उत्तर पुस्तिका के मूल्यांकन से जुड़ा है।
इस मामले में राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने कुलसचिव और परीक्षा नियंत्रक को नोटिस भेजकर व्यक्तिगत रूप से तलब किया है। वहीं, विश्वविद्यालय से ही संबंधित एक अन्य मामले में आयोग ने लोक सूचना अधिकारी पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया।
उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन का यह सच उस समय उजागर हुआ जब राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने सूचना अधिकार के तहत एक शिकायतकर्ता की इतिहास एवं राजनीति शास्त्र की उत्तर पुस्तिकाएं आयोग में तलब कर अपीलार्थी को उनकी प्रति उपलब्ध कराई।
दरअसल, राज्य सूचना आयोग में अधिवक्ता हिमांशु सरीन ने सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत हरिद्वार निवासी दीपक के लिए सूचना का अनुरोध पत्र श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय में दाखिल किया था।
उन्होंने बीए तृतीय वर्ष के राजनीति विज्ञान एवं इतिहास की उत्तर पुस्तिका की मांग की थी। तय समय के भीतर सूचना न दिए जाने पर प्रकरण सूचना आयोग पहुंचा। राज्य सूचना आयोग के निर्देश के क्रम में विश्वविद्यालय की ओर से उत्तर पुस्तिका उपलब्ध कराई गई।
दी गई सूचना के परीक्षण में यह तथ्य प्रकाश में आया कि उत्तर पुस्तिका में कई प्रश्नों को परीक्षक ने जांचा ही नहीं है। प्रेषित सूचना का मूल उत्तर पुस्तिका से मिलान किए जाने जाने पर गैर जिम्मेदाराना मूल्यांकन की पुष्टि हुई।
उदाहरण स्वरूप प्रश्नगत प्रकरण में राजनीति शास्त्र विषय की उत्तर पुस्तिका में कई प्रश्नों के उत्तरों को नहीं जांचा गया तो इतिहास विषय में एक प्रश्न मुस्लिम लीग का संस्थापक कौन था के सापेक्ष दिए गए गलत उत्तर ‘मुहम्मद अली जिन्नाह‘ को परीक्षक ने सही मानते हुए अंक दे दिए।
इस स्थिति पर आयोग ने परीक्षा नियंत्रक एवं कुलसचिव को आगामी सुनवाई की तिथि पर व्यक्तिगत उपस्थित होकर विस्तृत आख्या प्रस्तुत करने के निर्देश दिए।
राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन अत्यंत संवेदनशील विषय है। परीक्षक का सही मूल्यांकन न करना या लिखे प्रश्नों के उत्तरों की जांच न करना छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।
उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन में लापरवाही या जानबूझकर की गई गड़बड़ी किसी भी दशा में स्वीकार्य नहीं हो सकती।
एक ओर जब मूल्यांकन की पारदर्शी व्यवस्था की जरूरत पर बल दिया जा रहा है, वहीं राज्य के विश्वविद्यालय में मूल्यांकन की गैर जिम्मेदाराना व्यवस्था विश्वविद्यालय की कार्य संस्कृति एवं विश्वसनियता पर सवाल खडे़ करती है।
सुनवाई के दौरान आयोग के संज्ञान में लाया गया कि विश्वविद्यालय स्तर पर परीक्षा संबंधी समस्त कार्य परीक्षा नियंत्रक की देखरेख में संपन्न किए जाते हैं।
जो परीक्षक मूल्यांकन कार्य सम्पादित कर रहे हैं, वह मूल्यांकन के प्रति संवेदनशील एवं विश्वसनीय हैं या नहीं, यह देखना परीक्षा नियंत्रक का ही कर्तव्य है।
आयोग ने शिकायतकर्ता के क्षतिपूर्ति दिलाए जाने के अनुरोध के क्रम में लोक प्राधिकारी/कुलपति से आगामी सुनवाई पर इस आशय के स्पष्टीकरण की अपेक्षा की है कि, शिकायत में वर्णित परिस्थितियों में क्यों नहीं विश्वविद्यालय पर क्षतिपूर्ति अधिरोपित की जाए।
कुलपति की ओर से कुलसचिव के माध्यम से विश्वविद्यालय का पक्ष आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।