उद्यान विभाग की मशरूम उत्पादन योजना पहाड़ी क्षेत्रों में नहीं बढ़ पाई आगे
देहरादून। राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में मशरूम उत्पादन की संभावनाओं को देखते हुए पहाड़ी क्षेत्रों में रोजगार सृजन हेतु उद्यान विभाग द्वारा सहत्तर के दशक से मशरूम उत्पादन के प्रयास किए जा रहे है। 1969 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केन्द्र चौबटिया रानीखेत में मशरूम पर शोध/उत्पादन कार्य वैज्ञानिकों की देख-रेख में शुरू किया गया। बाद के वर्षों में मशरूम उत्पादन की योजनाओं को राज्य सैक्टर की योजनाओं में चलाया गया। गढवाल मंडल में भी 1973 में राजकीय घाटी फल शोध केंद्र श्रीनगर गढ़वाल में मशरूम उत्पादन में कार्य प्रारंभ किया गया।
इन्डो ढच प्रोजेक्ट के माध्यम से ज्योलीकोट नैनीताल में वर्ष 1980 से मशरूम उत्पादन का कार्य बड़े स्तर पर शुरू किया गया। जिसके अंतर्गत मशरूम की खाद बनाने हेतु पास्वराइज्ड टनल व स्पान उत्पादन हेतु प्रयोगशाला का निर्माण हुआ। राज्य बनने के बाद मशरूम उत्पादन की पहाड़ी क्षेत्रों में संभावनाओं को देखते हुए कुमाऊं मण्डल में ज्योलिकोट नैनीताल व गढ़वाल मंडल हेतु सेलाकुई देहरादून में मशरूम उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु प्रशिक्षण, कम्पोस्ट, स्पान उत्पादन केंद्र बनाए गए, जिनका उद्देश्य राज्य के मशरूम उत्पादकों को प्रशिक्षण देना तथा समय पर कम्पोस्ट व स्पान(मशरूम का बीज) उपलब्ध करवा कर स्वरोजगार सृजन करना था।
स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना के तहत कुमाऊं मण्डल में 20 करोड़ का प्रोजेक्ट मशरूम उत्पादन पर वर्ष 2002-03 में चलाया गया किन्तु अपेक्षित सफलता नहीं मिली। कहने का अभिप्राय यह है कि, योजनाओं पर करोड़ों रुपए खर्च करने पर भी पहाड़ी क्षेत्रों में कहीं भी मशरूम उत्पादन की कोई भी कार्यरत यूनिट नहीं दिखाई देती। मशरूम उत्पादन हेतु कुछ लोगों ने काफी प्रयास किए किन्तु समय पर बीज न मिलने के कारण व पूरी तकनीक की जानकारी न होने के कारण मशरूम उत्पादन में सफलता नहीं मिल पाई। जितना अखबारों व मीडिया में मशरूम उत्पादन के बारे में चर्चा होती है उतना पहाड़ी क्षेत्रों में तो नहीं दिखाई देता जब तक योजनाओं में धन होता है तभी तक चर्चाएं चलती है।
ढींगरी मशरूम में लोग पहाड़ी क्षेत्रों में अच्छा कार्य कर रहे हैं अपने व्यक्तिगत प्रयास से पवन काला द्वारा सुमाडी श्रीनगर गढ़वाल में ढींगरी मशरूम बीज उत्पादन की एक छोटी यूनिट लगाई गई है जो आस-पास के मशरूम उत्पादकों को बीज की आपूर्ति कर रहे हैं। ढींगरी मशरूम उत्पादकों को मार्केटिंग की समस्या है। अन्य क्षेत्रों में भी किसान मशरूम उत्पादन पर कार्य कर रहे हैं।
उद्यान विभाग के अतिरिक्त जलागम, ग्राम्य, उत्तराखंड ग्रामीण विकास समिति, आजीविका, जायका के साथ साथ सैकड़ों स्वयं सेवी संस्थाएं (मशरूम-मशरुम का खेल-खेल रहे हैं) मशरूम उत्पादन पर कार्य कर रहे हैं। आये दिन फेसबुक/व्हट्सअप, समाचार पत्रों में मशरूम प्रशिक्षण के फोटो सहित सफलता की कहानियां छापी जाती है। किन्तु वास्तविकता यही है कि, मशरूम उत्पादन के कार्यक्रम पहाड़ी क्षेत्रों में केवल प्रशिक्षण तक ही सीमित है। इनका मकसद केवल आवंटित बजट को खर्च करना है।
मुझे देहरादून में अपने मित्र डॉ संजय कमल मशरूम प्रसार अधिकारी के साथ डॉ मानवेन्द्र हर्ष मिश्रा की “अनुपम एग्रो मशरूम स्पान यूनिट” देखने का अवसर मिला। डॉ मिश्रा फ्लैक्स फूडस लिमिटेड लाल तप्पड़ देहरादून में मैनेजर कल्टिवेसन के पद पर 1996 से 2017 तक कार्यरत रहे। शुरू के वर्षों में उन्होंने स्पान लैब इन चार्जस, क्वालिटी कंट्रोल, कमप्रोसिंग आदि क्षेत्रों में कार्य किया। मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में उनका काफी अनुभव है। 2017 में कुवांवाला हरिद्वार रोड देहरादून में “अनुपम एग्रो” के नाम से मशरूम स्पान उत्पादन लैव” स्थापित की। इस लैब के निर्माण में बैंक की सहायता लेकर करीब एक करोड़ रुपए की लागत लगाई।
लैब में मशरूम स्पान की उत्पादन क्षमता एक टन प्रति दिन है। वर्तमान में 250-500 किलोग्राम उच्च गुणवत्ता के ढींगरी, बटन व मिल्की मशरूम बीज का उत्पादन प्रति दिन किया जा रहा है। जिसकी आपूर्ति उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पंजाब व हरियाणा के मशरूम उत्पादकों को मांग के अनुसार की जा रही है। राज्य में मशरूम बीज उत्पादन की इस तरह की उच्च तकनीक से निर्मित यह एक मात्र लैब है जिसमें ढींगरी, बटन व मिल्की मशरूम की उच्च गुणवत्ता वाले स्पान (मशरूम का बीज) का उत्पादन किया जा रहा है। डा. मिश्रा “एमएम मशरूम कन्सलटैन्सी सर्विसेज” के नाम पर मशरूम उत्पादन पर सलाह व प्रशिक्षण का कार्य भी करते हैं।
मशरूम उत्पादन में रुचि रखने वाले अभ्यर्थियों को एक बार अवश्य “अनुपम एग्रो मशरूम स्पान उत्पादन यूनिट” का भ्रमण कर मिश्रा के अनुभव का लाभ लेना चाहिए। आशा करनी चाहिए कि अब राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों के मशरूम उत्पादन को उच्च गुणवत्ता का मशरूम बीज समय पर उपलब्ध होगा, जिससे मशरूम व्यवसाय को गति मिलेगी।देहरादून व उसके आस पास के क्षेत्रों में कुछ लोग मशरूम उत्पादन पर अच्छा कार्य कर रहे हैं। सरकार की कोई दीर्घकालिक योजना न होने व उदासीनता के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में सरकारी व गैर संस्थाओं द्वारा मशरूम उत्पादन की योजनाओं पर करोड़ों रूपए खर्च होंगे के बाद भी इन क्षेत्रों में मशरूम उत्पादन प्रशिक्षण कार्यक्रमों तक ही सीमित है। इससे कोई दीर्घकालिक रोजगार सृजन नहीं हो पा रहा है।