उद्यान विभाग में राज्य बनने से पहले शोध केंद्रों की स्थिति
चौबटिया कार्यरत अनुभाग
1. उद्यान
2. प्लानट ब्रीडिंग
3. भूरसायन
4. प्लान्टपैथालौजी
5. एन्टोमालाजी(कीट)
6. प्लान्ट फिजियोलाजी
7. भेषज(ड्रग)
8. मशरूम
9. कला एवं प्रचार प्रसार
केन्द्र पर एक मैट्रियोलाजी औबजर्बेट्री भी स्थापित की गई जिससे मौसम में होने वाली तब्दीलियां विशेष रूप से पाला, ओला पढ़ने, आंधी आदि की जानकारी एकत्रित की जा सके। विभिन्न अनुभागों का संचालन ख्याति प्राप्त वैज्ञानिकों द्वारा किया गया। जिनमें डॉ सुनील कुमार बोस, डॉ जितेन्द्रनाथ सेठ एवं डॉ आर के पाठक जो बाद में फैजाबाद कृषि विश्वविद्यालय के कुल पति भी रहे, द्वारा किए गए शोध कार्यों का आज भी समय-समय पर वैज्ञानिक जगत में उल्लेख होता है।
केन्द्र के वैज्ञानिकों द्वारा पांच सौ से अधिक शोध पत्र, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय शोध पत्रों में प्रकाशित किए गए। चौबटिया फल शोध केंद्र आगरा, कानपुर व कुमाऊं विश्वविद्यालय से विद्या वाचस्पति (पी एच डी) की उपाधि के लिए पंजीकृत किया गया, अब तक 25 व्यक्तियों ने इस केन्द्र पर शोध कार्य संपादित करके पीएचडी की उपाधि ग्रहण की है। मैंने भी वर्ष 1971-1979 तक इस शोध केंद्र पर ज्येष्ट शोध सहायक के रूप में सेवा की है। तथा यहीं पर कार्य करते हुए वर्ष 1979-80 में कुमाऊं विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है।
केन्द्र पर एक उच्च स्तरीय पुस्तकालय की भी सुव्यवस्थित व्यवस्था थी, जिसमें उद्यान से संम्बन्धित विभिन्न विषयों के उच्च कोटि की बारह हजार से भी अधिक पुस्तकों के साथ-साथ 15 देशी विदेशी शोध पत्रिकायें नियमित रूप से आती रही है। चौबटिया शोध केन्द्र से प्रोग्रेसिव हार्टि कल्चर के नाम से एक अंग्रेजी भाषा में त्रैमासिक पत्रिका नियमित रूप से प्रकाशित की जाती रही है। जिसमें शोध केंद्रों में चल रहे शोध प्रयोगों के परिणाम प्रकाशित किए जाते रहे हैं।
केन्द्र द्वारा 70 के दशक में अन्य पर्वतीय राज्यों हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, मणिपुर, सिक्किम तथा पड़ोसी देश भूटान, नेपाल, अफगानिस्तान को उच्च कोटि के फल पौध रोपण सामग्री उपलब्ध कराई गई। साथ ही इन राज्यों व प्रदेशों के प्रसार कार्यकर्त्ताओं को प्रशिक्षण दिया जाता रहा। शोध केंद्र द्वारा विकसित विभिन्न तकनीकी जानकारियां को
विभागीय अधिकारियों, कर्मचारियों व उद्यानपतियों तक पहुंचाने के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया जाता रहा है।
फल शोध केंद्र चौबटिया की कुछ अन्य मुख्य-मुख्य उत्कृष्ट उपलब्धियां
● चौबटिया पेस्ट बागवानों की पहली पसंद व प्रभाव कारी फफूंदी नाशक।
● सेब, नाशपाती, गुठलीदार एवं गिरीदार फलों के पौधों के प्रसारण हेतु मूल वृन्तों का चयन आज भी सेब के फल वृक्षों के लिए प्ररेऊ (मैलस बकाटा बेराइटी हिमालिका) नामक सेब की जगंली प्रजाति मूल वृन्त वाले पौधों की बागवानों द्वारा मांग रहती है।
● सेब की चौबटिया प्रिंसेज, चौबटिया अनुपम खुबानी की चौबटिया मधु और चौबटिया अलंकार उन्नतशील क़िसमें विकसित की।
● सभी पर्वतीय जनपदों का सर्वेक्षण कर मृदा परीक्षण किया तथा सोयल मैप तैयार किया।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सेवानिवृत्त प्रधान वैज्ञानिक, डॉ रतन सिंह चौहान ने भी चौबटिया शोध केन्द्र के बारे में लिखा है कि, मुझे भी इस प्रतिष्ठित फल शोध केंद्र चौबटिया पर 23/11/70 से 14/08/75 तक भू- रसायन अनुभाग में जयेष्ठ शोध सहायक तथा घाटी फल शोध केन्द्र श्रीनगर गढ़वाल में 18/08/75 से 03/04/85 तक मृदा विशेषज्ञ के पद पर कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैंने मृदा विज्ञानं में पीएचडी की उपाधि चौबटिया केंद्र पर शोध करते हुए पर्वतीय क्षेत्र की अम्लीय मिट्टियों के गुण, वर्गीकरण एवं चूने की आवश्यकता सम्बधी विषय पर वर्ष 1980 में आगरा विश्वविद्यालय से प्राप्त की।
परीक्षकों द्वारा कार्य की भूर-भूर प्रशंसा की गई। मुझे इस कार्य के लिए पुरुस्कृत भी किया गया। मुझे डॉ एसएस तेवतिया, डॉ बोस, डॉ सेठ, डॉ आर पी श्रीवास्तव, डॉ पाठक, डॉ एमएम सिन्हा (सभी निदेशक) के निदेशन में कार्य करने का अवसर मिला। इतना ही नहीं मेरे द्वारा किये गये शोध कार्यों के परिणाम स्वरुप मेरा चयन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद पर 1985 में हुआ। वहाँ से 2008 में प्रधान वैज्ञानिक के पद से सेवा निवर्त हुआ।
दुःख है कि, आज चौबटिया केंद्र बन्द होने की कगार पर है। 1935 से 1940 के मध्य डॉ मुखर्जी व डॉ दास द्वारा कृषि रसायन विज्ञान के क्षेत्र में किये गए कार्यो का शोध कार्य का प्रकाशन अंतराष्ट्रीय पत्रिकाओं का उदाहरण आज भी दिया जाता है। डॉ कुकसाल बधाई के पात्र है। जिन्होंने बहुत अच्छी जानकारी वर्ष 1932 से 2019 तक की अपने लेख से दी है। इस पर राज्य सरकार को गम्भीरता से सोचते हुए, आवश्यक कदम उठाने चाहिये। जिससे बागवानों का हित हो सके।