ऊर्जा विभाग में 6 करोड़ का काम 9 करोड़ में, गजब के सीएम और गजब के ही उनके विभाग
– 365 दिन का काम, 21 दिन में पूरे करने वाले यूजेवीएनएल व कॉन्ट्रेक्टर ने तोड़ा गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड….
– काम आधे से भी कम और लागत 3 करोड़ से भी ज्यादा। काम की तो गारंटी ही क्या? 25 गुल ही छिपे हैं इन 25 गेटों के काम में घटिया काम की पोल खुलना हुआ शुरू। जबकि लागत तो तीन करोड़ कम होनी चाहिए थी
देहरादून। भृष्टाचार पर जीरो टॉलरेन्स वाली त्रिवेन्द्र सरकार की वफादार सचिव ऊर्जा के आधीन वैसे तो तीनों निगम और उरेडा में हुए घोटालों पर पिछले करीब तीन सालों से अब तक कार्यवाही के नाम पर ज़ीरो ही हासिल हुआ है, परन्तु अब तो गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ने का सम्मान भी इनके यूजेवीएनएल को अगर मिल जाये तो कोई अतिशयोक्ति न होगी।
क्योंकि ऐसे काम तो भगवान विश्वकर्मा और राम सेतु बनाने वाले त्रेता युग के महान इंजीनियर नल-नील भी नहीं कर सकते, जो इन्होंने कर दिखाया है। ऐसा गजब का कारनामा कर दिखाने वाले नाम के उज्ज्वल पर काम का एक ऐसा मामला प्रकाश में आया है, जिसकी तह में जितना घुसोगे उतना ही इस डैम में कुछ न कुछ नया ही नजर आएगा। हमें प्राप्त सूत्रों के अनुसार प्रख्यात डाकपत्थर बैराज में गतवर्ष दिसम्बर माह में टेण्डर आमंत्रित किये गए थे। इस निविदा पर डाउन स्ट्रीम ट्रेनिंग वॉल, डाउन स्ट्रीम रिवर ट्रेनिंग की विशेष मरम्मत सहित बैराज के गेटों के डाउन स्ट्रीम ग्लेसिस आदि काम होने थे।
उक्त कार्यों के लिये दो निविदाएं संख्या NCB/47/EE/PCM-DKP/UJVNL/2018-19 व निविदाएं संख्या NCB/48/EE/PCM-DKP/UJVNL/2018-19 आमंत्रित की गई थीं। ये कार्य क्रमशः 15 और 12 माह में पूर्ण होने थे। उक्त निविदाएं 7 फरवरी 2019 को खोली गई थीं। नियमानुसार निविदा का कॉन्ट्रैक्ट L-1 आने पर M/s पराग जैन को 6 करोड़ 87लाख 19 हजार सात सौ 60 रुपये में बड़े ही शातिराना ढंग से पूर्वनियोजित योजना के अनुसार आवंटित कर दी गयी और दो अन्य निविदादाताओं को टेक्निकल योग्यता में M/s स्टार कॉन इन्फ्रा प्रोजेक्ट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और M/s अपार इंफ्रास्ट्रक्टर प्रा. लिमिटेड को रिजेक्ट कर दिया गया?
बताते चलें कि, इस कार्य की टेंडर आई डी 2019_UJVL_14600_1 है। तथा इसका कांट्रेक्टर के साथ अनुबन्ध 28 मई 2019 को हुआ। ज्ञात हो कि, इस कार्य के वर्क शेड्यूल के अनुसार 27 किस्म के काम होने थे। इनकी जगह मात्र 11 किस्म के काम वह भी 365 दिन में पूरे किए जाने के स्थान पर मात्र 21 दिनों में ही कम्पलीट कर दिए गए। जबकि प्रायः देखने में ऐसा आता है की एक साल के काम दो-तीन साल में भी पूरे नही होते।
यह सभी बातें ऐसे ही हवा-हवाई में नहीं बल्कि अधिशासी अभियंता (सिविल) द्वारा जारी किये गए, कंप्लीशन सार्टिफिकेट दिनांक- 24/07/2019 से स्वतः ही स्पष्ट है। उक्त सर्टिफिकेट से यह भी साफ-साफ दिखाई पड़ रहा है कि, उक्त कार्य 29 मई 2019 को प्रारम्भ होकर 19 जून 2019 को 21 दिनों में ही संतोषजनक ढंग से पूरा भी हो गया। ज्ञात हो कि, इसके फाइनल भुगतान किए जाने का भी ताना-बाना तैयार हो चुका है।
गौरतालब है कि, उक्त कार्य की लागत में भी लगभग 3 करोड़ का इजाफा भी हो गया और छ करोड़ सतासी लाख उन्नीस हजार सात सौ साठ/- + जीएसटी 18% में होने वाला काम नो करोड़ तीस लाख से अधिक में जीएसटी सहित हुआ। वैसे तो उल्लेखनीय बहुत कुछ है। फिलहाल इसके quentetive discription of work में जिन 11 कामों का उल्लेख किया गया है। उसमें 11 वें नम्बर पर एक excavator/लोडर (जेसीबी) से 657 घण्टे का काम लिया जाना दर्शाया गया है। जबकि 21 दिनों में अगर चौबीसों घण्टे लगातार काम भी जोड़ कर मान लिया जाए तो 21 दिन में मात्र 504 घण्टे ही होते है। परन्तु यहां तो 27 दिन 3 घण्टे बन रहे हैं। इन सभी तथ्यों से जो अभी तक तथ्य सामने आए हैं।
उनसे स्पष्ट हो गया है कि, घालमेल कम नही बल्कि सब कुछ घालमेल और घोटाले के अंतर्गत ही हुआ है! यहाँ यह भी जाँच का विषय है कि, जिन 16 आइटमों का कार्य हुआ ही नहीं उनकी अगर कीमत को इसमें से कम किया जाए तो उक्त पर कार्य की लागत लगभग साढ़े तीन करोड़ कम आनी चाहिए, परन्तु यहां तो लागत कम होने की बजाय बढ़ गई है? काम के पश्चात एक बरसात का समय दिए बगैर और कामों की गुणवत्ता के टेस्टिंग बगैर संतोषजनक काम का प्रमाण पत्र किस-किस आधार पर सम्बंधित अधिशासी अभियंता द्वारा जारी कर दिया गया।
अगर विशेषज्ञों की यहां माने तो डाउन स्ट्रीम में लगाये जाने वाले केमिकल और मेटीरियल तो किसी भी युक्ति से इतने कम समय में पूरा किया ही नहीं जा सकता है, और किये गए काम को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि, मानकों के अनुसार न करके मात्र कागजों में ही किया गया हो अथवा आधा-अधूरा किया गया हो?
सूत्रों की अगर माने तो इस होनहार और चहेते कॉन्ट्रेक्टर के बहुत गहरे तार यूजेवीएनएल के वफादार इन इंजीनियरों से लेकर निगम के बड़े अधिकारियों और निदेशकों से भी जुड़े हुए हैं। उसी की बदौलत इस कांट्रेक्टर को दिए गए तमाम कामों में निविदा फिक्सिंग से लेकर कंपलीशन सार्टिफिकेट तक और भुगतान के गुल भी खूब खिलते रहे हैं।
भविष्य में इस विशाल जलाशय वाले डाकपत्थर बैराज पर कोई अनहोनी घटना इस लापरवाही के कारण होती है, तो उसका जिम्मेदार कौन होगा? जहाँ अभी काम पूरा हुए 6 माह भी नहीं बीते कि, पियर्स की नोज पर हुए घटिया कामों और गेटों की लीकेज होने से, पोल खुलती नजर आने लगी है, तथा जिन डाउन स्ट्रीम ग्लेसिस व बैराज के किनारे बनाये गए नाम मात्र के प्रयोग किये गये PICC मैटीरियल और स्पेशल केमिकल व कन्क्रीट सीमेंट, गब्लेंनाइजड स्टील व ग्रेनाइट के इस्तेमाल में साँठ-गाँठ के चलते हेराफेरी भी की गई है, साथ ही मिट्टी के काम में भी करोड़ो की करामात की गई है?
ऐसे में क्या गाढ़ी काली कमाई करने वाले जेई से लेकर जीएम तक कांट्रेक्टर से मिलकर करोड़ों का बंदरबाँट करने वालो से क्या और कैसे भरपाई हो पाएगी? उक्त प्रकरण के बारे में जब यूजेवीएनएल के वरिष्ठ अधिकारियों से सम्पर्क करने का प्रयास किया गया तो सम्बंधित अधिशासी अभियंता सहित निदेशक (ओएंडएम) सहित सभी कतराते नजर आए।
अभी तक के त्रिवेन्द्र रावत के कार्यकाल को अगर गहनता से देखा और परखा व चाटुकारिता को दरकिनार करके आंकलन किया जाए तो इस देवभूमि के भृष्टाचारियों पर मेहरबान त्रिवेन्द्र सरकार के ऊर्जा विभाग के तीनो निगमों व उरेडा के सैंकड़ों करोड़ों के विभिन्न घोटालों और भृष्टाचार के मामलों पर कार्यवाही के नाम पर मात्र अब तक कुंडली ही मारी जाती रही है। जानबूझकर जाँच और फिर जाँच तथा बाद में षड्यंत्र के तहत कोर्ट की आड़ लेकर य स्वार्थवश मौका देकर राम भरोसे चुप्पी ही साध ली जाती रही है।
यही नहीं जो जितना बड़ा घोटालेबाज है, उसे उतना ही बड़ा इनाम भी यहीं सीएम त्रिवेन्द्र के राज में भी घोटालेबाजों और भृष्टाचारियों को निदेशक और एमडी की नियुक्ति व विस्तार पर विस्तार का खेल-खेलकर, दिया जाता रहा है। बता दें कि, ऊर्जा के तीनों निगमों में निदेशकों को बार-बार विस्तार पर विस्तार और नई नियुक्तियों का जो नाटक चल रहा है, उसके पीछे की मंशा भी जग जाहिर है। अब देखना यह होगा कि, इस प्रकरण पर त्रिवेन्द्र सरकार व उनकी तथाकथित तेज तर्रार सचिव ऊर्जा का क्या रुख होता है?