उत्तराखंड पेयजल निगम में 2,660 करोड़ का कथित घोटाला उजागर, CAG रिपोर्ट छुपाने पर सवाल तेज
रिपोर्ट- राजकुमार धीमान
देहरादून। उत्तराखंड पेयजल निगम में 2,660.27 करोड़ रुपये के भारी-भरकम घोटाले का खुलासा हुआ है। यह आरोप किसी राजनीतिक मंच से नहीं, बल्कि भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट के आधार पर लगाए गए हैं।
आरटीआई कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता विकेश नेगी ने दावा किया कि वर्ष 2016 से 2025 के बीच निगम ने निर्माण और विकास कार्यों में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं कीं और हजारों करोड़ रुपये की धनराशि गोलमाल की गई। इस संबंध में विस्तृत शिकायत मुख्यमंत्री को भेजी गई है।
विधानसभा से CAG रिपोर्ट छुपाने पर सवाल
अधिवक्ता नेगी ने गंभीर आरोप लगाया कि पेयजल विभाग से संबंधित CAG रिपोर्ट अब तक विधानसभा में प्रस्तुत ही नहीं की गई। न रिपोर्ट रखी गई और न उस पर चर्चा हुई।
उन्होंने कहा कि यह जनता के अधिकार वाली सबसे महत्वपूर्ण वित्तीय रिपोर्ट को जानबूझकर सिस्टम से छिपाने की कोशिश है।
वित्तीय वर्षवार गड़बड़ियों के चौंकाने वाले आंकड़े
CAG रिपोर्ट के अनुसार पेयजल निगम में जिन वर्षों में ऑडिट हुआ, वहां भारी अनियमितताएं पाई गईं, जबकि दो वर्षों—2017–18 और 2018–19—में ऑडिट ही नहीं किया गया।
वर्षवार अनियमितताएं (₹ करोड़ में):
- 2016–17: 92.41
- 2017–18: ऑडिट नहीं
- 2018–19: ऑडिट नहीं
- 2019–20: 656.05
- 2020–21: 829.90
- 2021–22: 43.48
- 2022–23: 96.99
- 2023–24: 803.00
- 2024–25 (मई तक): 38.41
कुल संदिग्ध राशि: ₹ 2,660 करोड़ 27 लाख
कोरोनाकाल में भी करोड़ों की हेराफेरी का दावा
शिकायत के अनुसार कोविड महामारी के दौरान, जब पूरा राज्य संसाधनों की कमी से संघर्ष कर रहा था, उसी समय पेयजल निगम ने 829.90 करोड़ रुपये की अनियमित भुगतान किए। आरोप है कि ठेकेदारों को खुले तौर पर लाभ पहुंचाया गया, न GST जमा, न बैंक गारंटी, फिर भी करोड़ों रुपये जारी कर दिए गए।
CAG रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि कई परियोजनाओं में निम्न गुणवत्ता के काम के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई और ठेकेदारों से न ब्याज वसूला गया और न रॉयल्टी।
एसआईटी या सीबीआई जांच की मांग
मुख्यमंत्री को भेजी गई शिकायत में कहा गया कि यह केवल वित्तीय गड़बड़ी नहीं, बल्कि सरकारी धन के संगठित दुरुपयोग की साजिश है। CAG रिपोर्ट में अधिकारियों–कर्मचारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत के संकेत स्पष्ट हैं।
अधिवक्ता नेगी ने मांग की है कि पूरे प्रकरण की जांच SIT या CBI से कराई जाए, ताकि राज्य के हजारों करोड़ के नुकसान की जिम्मेदारी तय हो सके।
मामले के सामने आने से पेयजल निगम की कार्यप्रणाली और शासन की पारदर्शिता पर कई गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।


