बिग ब्रेकिंग: कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व शिकारी कांड! आठ साल से अटकी जांच में नई हलचल, सुप्रीम कोर्ट में फिर पहुंचा मामला

कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व शिकारी कांड! आठ साल से अटकी जांच में नई हलचल, सुप्रीम कोर्ट में फिर पहुंचा मामला

देहरादून। कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में बाघों के संगठित शिकार का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। आठ साल से रुकी जांच को आगे बढ़ाने के लिए जोशीमठ के सामाजिक कार्यकर्ता अतुल सती ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सीबीआई जांच पर लगी रोक हटाने और सभी दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।

यह पूरा मामला 2015 में तब सामने आया था, जब नेपाल पुलिस ने सुनसरी जिले के इतहरी क्षेत्र में हरियाणा के दो तस्करों राम दयाल और राजू को गिरफ्तार कर उनके पास से बरामद बाघ की खाल को कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व से तस्करी कर ले जाने की पुष्टि की थी।

इसके बाद 2016 में हरिद्वार एसटीएफ ने भटिंडा निवासी रामचंद्र को गिरफ्तार कर उसके पास से पांच बाघों की खालें और 125 किलो बाघ की हड्डियाँ बरामद की थीं। वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) की फॉरेंसिक जांच में पाया गया कि इनमें से चार खालें कॉर्बेट की ही थीं।

NTCA की रिपोर्ट ने भी पार्क प्रबंधन की गंभीर लापरवाही और अधिकारियों की अनदेखी को उजागर किया। मामले पर 2018 में ‘टाइगर आई’ एनजीओ की याचिका के बाद हाईकोर्ट ने राज्य और केंद्र से जवाब मांगा और जांच वरिष्ठ IFS अधिकारी जयराज को सौंपी।

उनकी रिपोर्ट में तत्कालीन चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन डी.एस. खाती, CTR निदेशक समीर सिन्हा और अन्य दो अधिकारियों को जिम्मेदार बताया गया।

सितंबर 2018 में हाईकोर्ट ने अधिकारियों की कथित मिलीभगत को देखते हुए सीबीआई जांच के आदेश दिए, लेकिन आदेश में गलत याचिका नंबर दर्ज होने की छोटी सी त्रुटि ने पूरे मामले की दिशा ही बदल दी।

इसी तकनीकी खामी के आधार पर डी.एस. खाती सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और दलील दी कि उन्हें अपनी बात रखने का अवसर नहीं मिला।

सुप्रीम कोर्ट ने 22 अक्टूबर 2018 को सीबीआई जांच पर रोक लगा दी। 2023 में सीबीआई ने खुद सुप्रीम कोर्ट से रोक हटाने का अनुरोध किया, लेकिन सुनवाई आगे नहीं बढ़ सकी।

विवाद तब और गहरा गया, जब जून 2025 में आरोपी अधिकारियों में शामिल समीर सिन्हा को चयन समिति से महत्वपूर्ण जानकारियाँ छिपाकर उत्तराखंड का हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स (HoFF) नियुक्त कर दिया गया। इस नियुक्ति ने न सिर्फ जांच की निष्पक्षता, बल्कि सिस्टम की पारदर्शिता पर भी कई सवाल खड़े कर दिए।

अब 3 नवंबर 2025 को सामाजिक कार्यकर्ता अतुल सती ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर खुद को मामले में पक्षकार बनाने की मांग की है।

उन्होंने सीबीआई जांच पर लगी रोक हटाने के साथ ही डी.एस. खाती पर झूठा हलफनामा दाखिल करने के लिए IPC की धारा 193 के तहत कार्रवाई की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई इस पूरे मामले के भविष्य को तय करेगी।